आशिक़ी | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
आशिक़ी
बदलेगा मौसम मगर धीरे-धीरे,
उठेगी जवानी मगर धीरे-धीरे।
पिएंगे प्यासे उन आँखों से मय को,
चढ़ेगी नशा वो मगर धीरे-धीरे।
ढाएगी कयामत जमाने पे एकदिन,
बढ़ेगी बेताबी मगर धीरे-धीरे।
राह -ए -तलब में छोड़ेगी दिल को,
होगा आशिक़ी का असर धीरे-धीरे।
करेगी इनायत किसी न किसी पर,
लुटाएगी जान-ओ-जिगर धीरे-धीरे।
जुल्फों में गुजरेगी रातें किसी की,
उस रात होगी सहर धीरे-धीरे।
बेखुदी का आलम घेरेगा उसको,
चुभाएगी नश्तर मगर धीरे-धीरे।
नग्मों का उसपे जब पड़ेगा फुहारा,
जलेगा बदन वो मगर धीरे-धीरे।
उजड़े दिलों को बसाएगी फिर से,
घिरेगी घटा वो मगर धीरे-धीरे।
इनकार, इकरार, इजहार करेगी,
चलाएगी तीर-ए-नजर धीरे-धीरे।
होशवाले गंवाएँगे वो होश अपना,
चढ़ेगा जहर सर मगर धीरे-धीरे।
ख़ता की सजा तो मिलके रहेगी,
देगी दवा वो मगर धीरे-धीरे।
तरसते सितारे हैं बाहर वो निकले,
बदलेगी गेयर मगर धीरे-धीरे।
नेचर है उसका बहुत खुशमिजाजी,
करेगी शरारत मगर धीरे-धीरे।
नहीं है जवाब उस छलकती नजर का,
गिराएगी बिजली मगर धीरे-धीरे।
रस से भरा है सारा बदन वो,
रखेगी अधर पे अधर धीरे-धीरे।
रामकेश एम. यादव, मुंबई, लेखक
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