जौनपुर: श्रमजीवी एक्सप्रेस ट्रेन बम विस्फोट कांड में दो आतंकियों को कोर्ट ने सुनाई फांसी की सजा | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
18 साल बाद आया फैसला, आतंकयों पर पांच-पांच लाख रु पए का जुर्माना भी लगा
28 जुलाई 2005 को जौनपुर के हरलपालगंज रेलवे स्टेशन के पास हुई थी घटना
14 यात्रियों की हुई थी मौत, 62 लोग हुए थे घायल
दो आतंकियों को 2016 में पहले ही कोर्ट ने सुनाया था फ ांसी की सजा
जौनपुर। श्रमजीवी एक्सप्रेस में बम विस्फोट कांड में आखिरकार बुधवार को 18 साल बाद अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम राजेश राय ने फैसला सुनाते हुए इस कांड में शामिल दो आतंकवादियो को भी फांसी की सजा के साथ साथ पांच पांच लाख रु पए का जुर्माना लगाकर पीडि़तों को न्याय दिलाने का काम किया है। इससे पूर्व न्यायालय ने दो आतंकवादियों को वर्ष 2016 में फांसी की सजा सुनाई थी जिसकी अपील हाईकोर्ट में विचाराधीन चल रही है। गौरतलब है कि बिहार के राजगीर रेलवे स्टेशन से चल कर नयी दिल्ली को जाने वाली श्रमजीवी एक्सप्रेस ट्रेन में लगभग आधा दर्जन आतंकवादियों ने पूरी योजना के साथ ट्रेन को बम से उड़ाने के लिए 28 जुलाई 2005 को बम रखा था जो सायंकाल लगभग पांच बजे के आसपास जौनपुर जिले के हरपालगंज रेलवे स्टेशन के पास हरिहरपुर रेलवे क्रासिंग पर जनरल कोच नम्बर 98466/1 में फटा था। इस घटना में 14 यात्रियों की मौत हो गई थी जबकि 62 यात्री गम्भीर रूप से घायल हो गए थे।
इस घटना के बाद जिला प्रशासन सहित देश और प्रदेश की सरकारो में हड़कंप मच गया था घटना के समय देश के तत्कालीन रेल मंत्री लाल ूप्रसाद यादव ने घटनास्थल पर पहुँच कर आतंकवादियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का निर्देश जारी किया था। इस बम विस्फोट की घटना को लश्कर के आतंकी यहिया खां ने बंगलादेश के आतंकवादी संगठन हूजी के साथ मिलकर 2 जुलाई 2005 को बंग्लादेश में घटना को अंजाम देने की साजिश रची थी और घटना को अंजाम देने में जुट गये थे। योजना के अनुसार 27 जुलाई 2005 को यहिया और ओबैदुर्रहमान ने यूसुफपुर रेलवे स्टेशन पर मिले इसके बाद पटना रेलवे स्टेशन पर हिलाल उर्फ हिलालुद्दीन और आलमगीर रोनी ने ट्रेन के कोच में बम रखा था। जो जौनपुर जिले के हरपालगंज स्टेशन के पास हरिहर पुर रेलवे क्रॉसिंग पर ब्लास्ट हुआ था। घटना के बाद जीआरपी पुलिस ने इस बम विस्फोट काण्ड के लिए सात आतंकवादियों को अभियुक्त बनाते हुए मुकदमा दर्ज किया था जिसमें आलमगीर उर्फ रोनी, ओबैदुर्रहमान, हिलालुद्दीन उर्फ हिलाल, नफीकुल वि·ाास, गुलाम पचदानी यहिया, कंचन उर्फ शरीफ, डॉ. सईद का नाम शामिल रहा। इसमें आतंकवादियों की तलाश में जुटी पुलिस आज तक डॉ सईद का पता नही लगा सकी। सईद को लापता रहने की दशा में विवेचनाधिकारी ने छह आतंकवादी आलमगीर, ओबैदुर्रहमान,हिलालुद्दीन, नफीकुल वि·ाास, गुलाम पचदानी और कंचन उर्फ शरीफ के खिलाफ अभियोग पत्र न्यायालय भेजा था। यहां बता दे कि वर्ष 2016 में 30 जुलाई को आलमगीर और 31 जुलाई को ओबैदुर्रहमान को फांसी की सजा अपर सत्र न्यायाधीश बुद्धिराम यादव ने सुनाया था। हलांकि अपर सत्र न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ अपील हाईकोर्ट में आज भी विचाराधीन है। इस फैसले के समय आतंकवादी अभियुक्त हिलाल उर्फ हिलालुद्दीन और नफीकुल वि·ाास दोनो आन्ध्र प्रदेश के चेरापल्ली जेल में एक दूसरी घटना के बाबत जेल में बन्द थे। न्यायाधीश ने दोनो की फाइल अलग करने के पश्चात आलमगीर और ओबैदुर्रहमान को लेकर फांसी पर लटकाने का फैसला सुनाया था। जिला शासकीय अधिवक्ता सतीश कुमार पांडेय ने बताया कि आज इस विस्फोट कांड के पीडि़तों को 18 साल बाद पूरी तरह से न्याय मिल गया है। आतंकवादियों को सजा सुनाने के दौरान दीवानी न्यायालय परिसर पुलिस सुरक्षा व्यस्था के चलते छावनी बन गयी थी। कोर्ट के अन्दर पुलिस का कड़ा पहरा लगा हुआ था। अदालत खचाखच भरी थी। सजा सुनने के बाद आतंकियों ने अपने को बेगुनाह साबित करते हुए हाइकोर्ट में अपील करने की बात कही।
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