मुंबई | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
मुंबई
किस्मत की लकीर बदल देती है मुंबई,
जद्दोजहद करना सिखाती है मुंबई।
पारिजात के जैसे गमकती है दिनरात,
फूलों की पंखुड़ियों पे सोती है मुंबई।
झुकाती है आसमान देखो पसीने से,
हर किसी का हौसला बढ़ाती है मुंबई।
पहले तो सब्र का ये लेती है इम्तिहान,
परों को खोलना भी सिखाती है मुंबई।
लिबासों के जैसे मन मैला होने नहीं देती,
अपनी पनाह में ये सुलाती है मुंबई।
कहकशां की तरह रखो इसे साफ-पाक,
रोज नई फस्ल उगाती है मुंबई।
ढूँढने पे यहाँ आदमी में फरिश्ता मिल जाएगा,
नहीं दिल किसी का दुखाती है मुंबई।
होने नहीं देती आंसुओं का टुकड़ा-टुकड़ा,
गंगा-जमुनी तहजीब सिखाती है मुंबई।
लोकल यहाँ की है देखो जीवन-रेखा,
बॉलीवुड का स्वागत करती है मुंबई।
हथोड़े खा-खाकर पत्थर बनता है मूर्ति,
जिन्दगी रंगीन बनाती है मुंबई।
रखती है अपना दिल आसमान के जैसा,
अमीरी का शजर लगाती है मुंबई।
पसीने की स्याही से जो लिखता है किस्मत,
भूखा नहीं उसको सुलाती है मुंबई।
मंजिलें लाख कठिन आती हैं, तो आएँ,
दिन में होली तो रात दिवाली मनाती है मुंबई।
जिसके पास हुनर है उसकी तो बात छोड़ो,
जुगनू को भी चाँद-सा चमकाती है मुंबई।
बेवफाई न करना कभी कोई इससे,
नहीं तो बे-कफ़न उसे दफनाती है मुंबई।
बिछ जाते हैं चाँद-सितारे इसके क़दमों में,
जवाँ होंठों पे गुल खिलाती है मुंबई।
खाती है चोट ये लहरों का निशदिन,
तूफानों से लड़ना सिखाती है मुंबई।
सकारात्मक सोच सब में करती है पैदा,
सुबह बनारस,शाम अवध लगती है मुंबई।
सोने-चाँदी की नगरी कहते हैं इसे,
सिर का बोझा उतारती है मुंबई।
यहाँ न बची है जमीं और न ही आसमां,
फिर भी अपनी पलक बिछाती है मुंबई।
रामकेश एम. यादव, मुंबई
(रॉयल्टी प्राप्त कवि व लेखक)