शीर्षक- स्वार्थ का सब खेल | #NayaSaveraNetwork
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शीर्षक- स्वार्थ का सब खेल
अपनों को अपने डसे, स्वार्थ का सब खेल,
इसके आगे अब सुनो, स्नेह हो गया फेल।
जीवन में जब दुख पड़ा, पता चला सब स्नेह,
कैसे कैसे लोग यहां है, बदले हैं सब भेष।
जीवन की पगडंडी से, मिला मुझे यह भेद,
अपने ही कांटे बनें, अब रिश्ते सारे हैं फेल।
थोड़ी सी लालच में आकर, रिश्ते दिये हैं तोड़,
अपने हित की चाह में, बिगड़ गए अब बोल।
रहा न कोई संबंधों का, इस धरती पर मोल,
निजी स्वार्थ की लालसा, बना दिये हैं मेंड़।
दिन बिगड़े जब आपके, अपने लिए मुंह फेर,
पता चला सब जान के, कोई नहीं अनमोल।
अपनों की ही शक्ल में, बैठे हैं सब ग़ैर,
पहन मुखौटा सब यहां, किये हैं सबसे बैर।
अपनों को अपने डसे, स्वार्थ का सब खेल,
इसके आगे अब सुनो, स्नेह हो गया फेल।
साहित्यकार एवं लेखक-
आशीष मिश्र उर्वर
कादीपुर, सुल्तानपुर उप्र।