पर्व प्रदूषण और बचकाने तर्क | #NayaSaveraNetwork

पर्व प्रदूषण और बचकाने तर्क | #NayaSaveraNetwork

नया सवेरा नेटवर्क

पं.जमदग्निपुरी

आज पूरा विश्व प्रदूषण से परेशान है|यह प्रदूषण कई तरह का है|वायु प्रदूषण,ध्वनि प्रदूषण,जल प्रदूषण,मन और बुद्धि प्रदूषणआदि आदि|वायु प्रदूषण कई तरह से होता है|गंदगी धुआँ गैस गोला बारूद आदि से वायु प्रदूषण होता है|जल प्रदूषण घर घर से निकलने वा मल मूत्र, होटल मिल  फैक्ट्री आदि से निकलने वाला गंदा व केमिकल युक्त पानी जब स्वच्छ जल में जा कर मिलता है तो जल प्रदूषण कहलाता है|ध्वनि प्रदूषण तेज वाद्य यंत्रों से गाड़ियों के साईलेंशर से मशीन से जो ध्वनि वातावरण में घुसती है|वह ध्वनि प्रदूषण कहलाती है|मन और बुध्दि से जो कुविचार बनते और निकलते हैं|उसे मन बुद्धि प्रदूषण कहते हैं|

वायु प्रदूषण स्वास्थ्य पर बड़ा भयानक असर डाल रहा है|लोग तरह तरह के रोगों से ग्रसित होते जा रहे हैं|असमय काल के गाल समा रहे हैं|तरह तरह से  विकलांग होते जा रहे हैं|जिसमें मांसिक विकलांगता बहुत प्रभावी है|लोगों से बार बार कहा जा रहा है,सोशल मिडिया, प्रिंट मिडिया,इलेक्ट्रानिक मिडिया में इसकी बहुत चर्चा व प्रचार भी हो रहा है|पर नतीजा सेफर ही है|इसी तरह अन्य प्रदूषण भी लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रहे हैं|और लोग हैं कि मानने को और अमल करने को तैयार नहीं हैं|यहाँ देखने वाली बात ये है कि जितने प्रदूषण हैं चाहे वायु हो ध्वनि हो जल हो सब उतने प्रभावी नहीं हैं जितना कि मन बुद्धि वाला है|लोग मगरुरई में जी रहे हैं|कितना भी समझाया जाय समझने और मानने को तैयार नहीं हैं|सरकार भी कमाई करने के लिए प्रतिबंध लगाकर वसूली में मस्त है|लोग अपनी गलतियों का दुष्परिणाम भुगत रहे हैं|तरह तरह से कभी दंड के नाम पर कभी दवा के नाम पर भारी कीमत चुका रहे हैं फिर बौद्धिक मांसिक प्रदूषण से मुक्त नहीं हो पा रहे|

मजे की बात यह है कि लोगों को यदि समझाओ कि पटाखा जलाने से वायु प्रदूषण होता है वायु जहरीली हो जाती है|जो हमें रोगी बना देगी|जवाब बचकाना आता है|बोलेंगे वो करते हैं तब तो ज्ञान नहीं बघारते|तब आपका ज्ञान कहाँ चला जाता है|हमारे ही पर्व पर ज्ञान क्यों बाँटते हो|क्या है कि हमारा भारत कई धर्मावलम्बियों का देश हैं यहाँ साल के 365 दिन कोई न कोई किसी न किसी का पर्व मनाया जाता रहता है|कुछ अल्पसंख्यक हैं कुछ बहुसंख्यक|मुख्य झगड़ा यहीं पर है|पर बहुसंख्यक समाज यह समझने को तैयार नहीं है कि हम स्वत: अपने ही खोदे कुँए में गिर रहे हैं|वायु प्रदूषण से अनेकों तरह की बिमारियों से आज हम जूझ रहे हैं|जिसमें काफी हद तक वायु प्रदूषण ही जवाबदेह है| और वायु को प्रदूषित हमी कर रहे हैं|कचरे की सड़ाध से,मिल फैक्टरियों के धुओं से,पटाखों के धुओं से,गाड़ियों के धुओं से|दुष्परिणाम भी हमी भुगत रहे हैं|आज कोई ऐसा घर नहीं बचा है|जिसमें दो चार दवा से न चल रहे हों|फिर भी हम अपनी गलती मानने को तैयार नहीं|अपने को सुधारने के लिए राजी नहीं हो रहे|

पर्व मनाइए मौज से मनाइए ऐसा मनाइए कि खुद तो खुश रहो ही औरों को भी खुश रखने का प्रयास करो|ऐसा न करो कि अपने तो खाँसते खाँसते चल लिए और आपका बच्चा साँस भी न ले पाये|इसलिए पर्व मनाइए बहुत से साधन हैं खुश रहने के|खेल कूद आयोजित कीजिए इससे शारीरिक मांसिक दोनो विकास होगा|नाचिए गाइए इससे भी शारीरिक मांसिक विकास होगा|ईश्वर का भजन गाइये या आयोजित करवाइए|सब सुखमय होगा हवन यज्ञ करवाइए वातावरण शुद्ध होगा|आर्थिक शारीरिक हानि से मुक्ति मिलेगी|जीवन सुखमय होगा|आनंद ही आनंद होगा|

कुतर्क करने से बचकानी बात करने से आप बर्तमान में तो खुश हो लोगे|वरन भविष्य में अपने लिए अपने परिवार के लिए समाज के लिए और देश के लिए विषबेल ही तैयार करोगे|जो सबकुछ धीरे धीरे स्वाहा कर देगी|इसलिए वो कर रहा है तो मैं भी करूँगा वाली नीति से ऊपर उठिए|अपने लिए अपने परिवार के लिए अपने देश के लिए कुतर्क न करके खुद रुको और उनको भी रोंकने का प्रयास करिए|जीवन सुखमय होगा|एक एक रुकेंगे तो इगारह हो जायेंगे|इसी तरह पूरा देश इसे मानने लगेगा और हम प्रदूषण मुक्त हो सुनहरा भविष्य तैयार करेंगे|रोग मुक्त भारत|शोक मुक्त भारत स्वस्थ भारत समृद्ध और सशक्त भारत बनायेंगे|प्रदूषण के चलते जो हमारा अर्थ दवा में जा रहा है,वह हमारे किसी और काम आयेगा|आज हमारी सरकार स्वास्थ्य पर बहुत खर्च कर रही है|हमारा कर्तव्य है कि हम इसे रोकने में देश की सहायता करें|ऊल जलूल हरकतों हे बाज आयें|कुतर्क से बचें और देश को समृद्ध बनाने के लिए हर उस वस्तु का त्याग करें जो प्रदूषण बढ़ाने में मददगार हैं|

याद करो 2020 और 2021 जब कोरोना पूरे विश्व को निगलने के लिए प्रकट हुआ|सबको घरों में दुबका दिया|तब बहुत पर्व अाये और चले गये|तब भी हमने पर्व मनाए,शांत और सौम्य तरीके से|बिना पटाखा जलाये ही गणपति दुर्गा विसर्जन भी किए और दीपावली भी मनाए|तब वायु और जल दोनो प्रदूषण मुक्त हो गये थे|लेकिन आज महानगरों की हालत खराब है|सरकार को प्रतिबंध लगाना पड़ रहा है|यह नौबत क्यों आ रही है|कि सरकार को प्रतिबन्ध  लगाना पड़ रहा|हम आजाद देश के नागरिक हैं फिर भी अपनी ना समझी और बचकाने हरकतों के कारण कई तरह के प्रतिबंधो से बँधे हैं|

लोगों के बचकाने और कुतर्कों को सुनकर एक किस्सा बता रहा हूँ|एक बच्चा साँप की पूँछ पकड़ कर अपनी तरफ लाना चाह रहा है|साँप दूर भाग रहा है|बच्चा खुश हो रहा है|पुन: साँप  की पूँछ पकड़कर खीचता है|साँप फिर  भागता है|यही चल रहा था कि एक वयस्क आये और साँप की पूँछ जैसे पकड़े साँप काट लिया|कहने का मतलब यह है कि बच्चा नहीं जान रहा था कि जिसे हम खिलवाड़ समझ कर पकड़ रहे हैं वह जहरीला है|उसके काटने से मेरी मृत्यु हो जायेगी|इसलिए वह बच रहा था|मगर वयस्क जानता था कि साँप जहरीला है इसके काटने से मेरी मृत्यु हो जायेगी|फिर भी जाकर पकड़ लिया|परिणाम जीवन से हाँथ धोना पड़ा|इसी तरह वो कर रहें तो हम भी करेंगे|वो 25% दूषित किए हैं तो हम सौ के सौ प्रतिशत करेंगे|यह बेवकूफी के सिवाय कुछ नहीं है|अपने पैर खुद कुल्हाड़ी मारना है|सरकार यदि आपके स्वास्थ्य के लिए चिंतित है तो आपका भी कर्तव्य है कि नहीं और की तो कम से कम अपनी चिंता करिए|छणिक सुख के लिए जीवन भर की परेशानियों को आमंत्रित मत करिए|जैसे दो साल मनाए वैसे ही आगे भी दिवाली होली मनाइए वातावरण शुद्ध करिए जल बचाइए|दोनो ही जीने की मुख्य कड़ी है|

हमें अपने सद्विचारों सद्गुणों से ऐसा वातावरण तैयार करना चाहिए कि सरकार हमें प्रतिबंधित ही न कर सके|लेकिन हो इसके उलट रहा है|हम अपने कुतर्कों और कूकर्मो के चलते कई प्रतिबंधों को  झेल रहे हैं|हम अगर ठान लें कि हम वही करेंगे जो स्वहित और देश हित में होगा तो जरूर हम प्रदूषण से मुक्त होंगे|अरे जब हमने संयम से एकजुट होकर कोरोना जैसी महामारी को भगा दिए तो ये प्रदूषण क्या है,इससे भी हम मुक्त हों लेंगे|सोंच बदलिए सबकुछ बदल जायेगा|भारत स्वच्छ होगा तो हम स्वस्थ होंगे|हम स्वस्थ होंगे तो देश समृद्ध होगा|लेकिन ए तब होगा जब हम बचकाने तर्कों से बाज आयेंगे|

आज हम देख रहे हैं जैसे किसी को खुद की ही परवाह न हो|हम वही कर रहे हैं जो हमें गर्त में धकेल रहा है|आज हमारा खान पान सब दूषित है|आलस्य के चलते हम जहर खाकर खुश हैं|मगर शुद्ध भोजन घर पर पका कर खाने में रो रहे हैं|विवाहादि में पहले लोग मिलजुलकर खुद बना लेते थे और जमके खाते थे|शुद्ध खाते थे|आज कैटरर्स से बनवाते हैं बफर से खाते हैं खड़े खड़े और रोगों को आमंत्रित करते हैं बड़े बड़े|उस पर सेखी भी बघारते हैं|इसी तरह रास्ते पर भी वही करते हैं जो नुकसादेह हो|कुल मिलाकर लोग अपना भला खुद नहीं चाहते|इसलिए सरकार को कूदना पड़ता है अपना भला करने के लिए|क्योंकि सरकार भी अच्छी तरह जानती है कि लोग जबतक दंड नहीं भरगें तब तक कहने से नहीं मानने वाले|क्योंकि लोग बचकानी बातें और कुतर्क करने में महारत हाॕसिल किए हुए हैं


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