नया सवेरा नेटवर्क
सुकूँ से जीना है तो...
कोई देर से कोई जल्दी से चला जाएगा,
किसी का पैर देर तलक टिक न पाएगा।
ये गलियाँ, ये मकाँ कब हुए हैं किसी के,
एकदिन इसका निशां मिट जाएगा।
जलवा -ए-हुस्न तो है दो पल का साथी,
शबाब का ये पानी भी उतर जाएगा।
अपनी-अपनी लाशें उठाए चल रहे लोग,
जिन्दा होने का ये भ्रम टूट जाएगा।
रहती है आँख कहीं पे,बात किसी और से,
आँखों से पीने का लम्हा गुजर जाएगा।
सुकूँ से जीना है तो फूलों से बात करो,
नहीं तो आँखों का आब सूख जाएगा।
छेड़ो, गुदगुदाओ, उसे मेंहदी लगाओ,
नहीं तो गुल -ए -मौसम रूठ जाएगा।
रोकेंगी दुनिया की ख्वाहिशें तेरा रास्ता,
जुल्फों के पेंच-ओ -खम में उलझ जायगा।
राह -ए -इश्क़ इतनी आसान होती नहीं,
तपती धूप में साया कोई मिल जाएगा।
एटम -बम के जेवर से मत सजा दुनिया,
चाँद -तारों का वो रंग उतर जाएगा।
रामकेश एम. यादव, मुंबई
(रॉयल्टी प्राप्त कवि व लेखक)
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