नया सवेरा नेटवर्क
- लिंगानुपात असंतुलन की बढ़ती खाई को मिटाने केंद्र और राज्यों को मिलकर काम करने की ज़रूरत
- बढ़ती लैंगिक असमानता को दूर करने, जन भागीदारी के साथ पीसी-पीएनडीटी अधिनियम में संशोधन की ज़रूरत को रेखांकित करना ज़रूरी - एडवोकेट किशन भावनानी गोंदिया
गोंदिया - वैश्विक स्तरपर संयुक्त राष्ट्र ने अप्रैल 2023 की अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि अब भारत चीन को पीछे छोड़ते हुए 142.86 करोड़ की आबादी वाला देश बनकर दुनियां का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है वहीं अब भारत में विशेष रूप से गरीबी में उल्लेखनीय कमी दिखी है 15 वर्षों (2005-06 से 2019-2021) की अवधि में 41.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले हैं यह भारत या अन्य कोई नहीं बल्कि स्वयं संयुक्त राष्ट्र ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है। अब हमें अपने स्तरपर चिंतन करने की ज़रूरत है कि हमें लिंगानुपात में समानता करने की ओर कदम उठाने हैं। हमें अब अपनी जनता को रूढ़िवादी पुरानी सोच से निकालकर बेटियों के प्रति जन जागरण अभियान में तेजी लाने की ज़रूरत है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, लिंगानुपात असंतुलन की बढ़ती खाई को मिटाने केंद्र और राज्यों को मिलकर काम करने की ज़रूरत है।
साथियों बात अगर हम भारत में कन्या, भ्रूण से जुड़े कानूनों की करें तो, कन्या भ्रूण हत्या का मतलब है माँ की कोख से मादा भ्रूण को निकल फेंकना। जन्म-पूर्व परीक्षण तकनीक (दुरुपयोग के नियमन और बचाव) अधिनियम 2002 की धारा 4 (1) (b,c )के तहत के अनुसार भ्रूण को परिभाषित किया गया है, निषेचन या निर्माण के सत्तानवे दिन से शुरू होकर अपने जन्म के विकास की अवधि के दौरान एक मानवीय जीव। भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत प्रावधान भारतीय दंड संहिता की धारा 312 कहती है, जो कोई भी जानबूझकर किसी महिला का गर्भपात करता है जब तक कि कोई इसे सदिच्छा से नहीं करता है और गर्भावस्था का जारी रहना महिला के जीवन के लिए खतरनाक न हो, उसे सात साल की कैद की सजा दीजाएगी इसके अतिरिक्त महिला की सहमति के बिना गर्भपात (धारा 313) और गर्भपात की कोशिश के कारण महिला की मृत्यु (धारा 314) इसे एक दंडनीय अपराध बनाता है। धारा 315 के अनुसार मां के जीवन की रक्षा के प्रयास को छोड़कर अगर कोई बच्चे के जन्म से पहले ऐसा काम करता है जिससे जीवित बच्चे के जन्म को रोका जा सके या पैदा होने का बाद उसकी मृत्यु हो जाए, उसे दस साल की कैद होगी धारा 312 से 318 गर्भपात के अपराध पर सरलता से विचार करती है जिसमें गर्भपात करना, बच्चे के जन्म को रोकना, अजन्मे बच्चे की हत्या करना (धारा 316), नवजात शिशु को त्याग देना (धारा 317), बच्चे के मृत शरीर को छुपाना या इसे चुपचाप नष्ट करना (धारा 318)। हालाँकि भ्रूण हत्या या शिशु हत्या शब्दों का विशेष तौर पर इस्तेमाल नहीं किया गया है , फिर भी ये धाराएं दोनों अपराधों को समाहित करती हैं। इन धाराओं में जेंडर के तटस्थ शब्द का प्रयोग किया गया है ताकि किसी भी लिंग के भ्रूण के सन्दर्भ में लागू किया जा सके। हालाँकि भारत में बाल भ्रूण हत्या या शिशु हत्या के बारे में कम ही सुना गया है। भारतीय समाज में जहाँ बेटे की चाह संरचनात्मक और सांस्कृतिक रूप से जुड़ी हुई है, वहीँ महिलाओं को बेटे के जन्म के लिए अत्यधिक सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दबाव झेलना पड़ता है। इन धाराओं ने कुछ और जरूरी मुद्दों पर विचार नहीं किया है जिनमें महिलाएं अत्यधिक सामाजिक दबावों की वजह से अनेक बार गर्भ धारण करती हैं और लगातार गर्भपातों को झेलती हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन के अधिकार की घोषणा करता है। अनुच्छेद 51A (e) महिलाओं के प्रति अपमानजनक प्रथाओं के त्याग की व्यवस्था भी करता है। उपरोक्त दोनों घोषणाओं के आलोक में भारतीय संसद ने लिंग तय करने वाली तकनीक के दुरुपयोग और इस्तेमाल से कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए जन्म-पूर्व परीक्षण तकनीक (दुरुपयोग का नियमन और बचाव ) अधिनियम, 1994 पारित किया। इस अधिनियम के प्रमुख लक्ष्य हैं-गर्भाधान पूर्व लिंग चयन तकनीक को प्रतिबंधित करनालिंग-चयन संबंधी गर्भपात के लिए जन्म-पूर्व परीक्षण तकनीकों के दुरूपयोग को रोकनाजिस उद्देश्य से जन्म-पूर्व परीक्षण तकनीकों को विकसित किया है, उसी दिशा में उनके समुचित वैज्ञानिक उपयोग को नियमित करनासभी स्तरों पर अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करनाइस अधिनियम को बड़े जोर-शोर से पारित किया गया लेकिन राज्य इसे समुचित तरीके से लागू करने के लिए माकूल व्यवस्था करने में नाकामयाब रहा। क्लीनिकों में अधूरे अभिलेखों अथवा अभिलेखों के देख-रेख के अभाव में यह पता करना मुश्किल हो जाता है कि कौन-सेअल्ट्रा-साउंड का परीक्षण किया गया था। यहाँ तक कि पुलिस महकमा भी सामाजिक स्वीकृति के अभाव में इस अधिनियम के तहत कोई मामला दर्ज करने में असफल रहा है। डॉक्टरों द्वारा कानून का धड़ल्ले से उल्लंघन जारी है जो अपने फायदे के लिए लोगों का शोषण करते हैं। गर्भाधान के चरण के दौरान एक्स और वाई गुणसूत्रों को अलग करना, पीसीजी इत्यादि नयी तकनीकों के दुरुपयोगों ने इस अधिनियम को नयी स्थितियों में बेअसर बना दिया है।इस अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए और मौजूदा कानून में खामियों पर जीत हासिल करने के लिए स्वास्थ्य एवम परिवार कल्याण मंत्रालय ने संशोधनों की एक श्रृखंला प्रस्तावित की थी जिसे संसद में मंजूर कर लिया गया था। इससे पीएनडीटी अधिनियम 2002 दिसम्बर में अस्तित्व में आया।बाद में इस अधिनियम को गर्भाधान पूर्व-प्रसव पूर्व परीक्षण तकनीक (लिंग चयन प्रतिबन्ध) अधिनियम कहा गया। इसके बाद स्वास्थ्य एवम परिवार कल्याण मंत्रालय ने प्रसव-पूर्व परीक्षण (दुरुपयोग का नियम एवम बचाव) अधिनियम 2003 ने 14 फरवरी को 1996 के नियम को विस्थापित कर दिया।
साथियों बात अगर हम पीसी-पीएनडीटी अधिनियम के प्रतिबंधों की करें तो, पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट के तहत प्रतिबंधित कृत्य(1) लिंग चयन या लिंग का पूर्व-निर्धारण की सेवा देने वाले विज्ञापनों का प्रकाशन;(2) गर्भाधान-पूर्व या जन्म-पूर्व परीक्षण तकनीकों वाले क्लीनिकों कापंजीकृत नहीं होना या क्लिनिक या संस्थान के भीतर सबको दिखाई देने वाले पंजीकरण प्रमाणपत्र को प्रदर्शित नहीं करना;(3) अजन्मे बच्चे के लिंग का निर्धारण करना;(4) गर्भवती को लिंग निर्धारण परीक्षण के लिए मजबूर करना;(5)लिंगचयन की प्रक्रिया में सहयोग या सुविधा प्रदान करना;(6) चिकित्सक द्वारा गर्भवती या अन्य व्यक्ति को अजन्मे बच्चे के लिंग के बारे में किसी भी तरह सूचित करना।(7) पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट के अंतर्गत पंजीकृत क्लीनिकों द्वार अभिलेखों को भली-भांति सहेज कर नहीं रखना।पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट की प्रमुख विशेषताएं, इस अधिनियम ने सभी परीक्षण प्रयोगशालाओं के पंजीकरण को अनिवार्य बना दिया है। और अल्ट्रा साउंड के उपकरणों के निर्माता को अपने उपकरणों को पंजीकृत प्रयोगशालाओं को बेचने के निर्देश दिए हैं। इसके अनुसार कोई भी निजी संगठन समेत व्यक्ति ,अल्ट्रा साउंड मशीन, इमेजिंग मशीन, स्कैनर या भ्रूण के लिंग के निर्धारण में सक्षम कोई भी उपकरण निर्माता, आयातक, वितरक या आपूर्तिकर्ता के लिए इन्हें बेचना, वितरित करना, आपूर्ति करना, किराये पर देना या भुगतान या अन्य आधार पर इस अधिनियम के तहत अपंजीकृत किसी आनुवंशिक परामर्श केंद्र, जेनेटिक प्रयोगशाला, जेनेटिक क्लिनिक, अल्ट्रा साउंड क्लिनिक, इमेजिंग स्क्रीन या अन्य किसी निकाय या व्यक्ति को ऐसे उपकरणों या मशीनों के प्रयोग की अनुमति नहीं दे सकता है। (पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम के नियम 3 ए के
इस अधिनियम के अन्तर्गत ऐसी मशीनों और उपकरणों के पंजीकृत निर्माताओं को सम्बन्ध राज्य, केंद्र शासित प्रदेश और केंद्र सरकार के उपयुक्त प्राधिकारियों को तीन महीने में एक बार अपने उपकरणों के क्रेताओं की सूची देनी होगी और ऐसे व्यक्ति या संगठन से उसे हलफनामा लेना होगा कि वह इन उपकरणों का इस्तेमाल भ्रूण के लिंग चयन के लिए नहीं करेंगे। पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम की धारा 4 के तहत केवल निम्न परिस्थितियों में प्रसव-पूर्व परीक्षण तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है, जब:महिला की आयु 35 वर्ष से अधिक हो।गर्भवती 2 या 2 से अधिक गर्भपात या भ्रूण की हानि को झेल चुकी हो।गर्भवती संभावित रूप से हानिप्रद अभिकर्म्कों जैसे मादक पदार्थ, विकिरणों, संक्रमण या रसायनों के संपर्क में आ चुकी हो।
गर्भवती या उसके पति के परिवार में किसी को मानसिक विकार या शारीरिक विकृति रही हो जैसे अन्य अनुवांशिक रोग; या मंडल द्वारा तय की गयी कोई अन्य दशा।सभी परामर्श केन्द्रों, अनुवांशिक प्रयोगशालाओं, और अल्ट्रा साउंड क्लिनिक्स को जो किसी गर्भवती स्त्री पर स्कैन, टेस्ट या अन्य प्रक्रियाओं को संचालित कर रहे हैं, इन परीक्षणों का पूरा विवरण रखना होगा जिसमें कि नाम, पति का नाम, चिकित्सक का नाम- पता और परीक्षण, स्कैन याप्रक्रियाओं की आवश्यकता के कारण। इन जानकारियों को फॉर्म ‘ऍफ़’ में दर्ज होना चाहिए। (पीएनडीटी अधिनियम का नियम 9 (4))जब भी कोई गर्भवती महिला अनुमति प्राप्त उद्देश्यों के अतिरिक्त प्रसव पूर्व परीक्षण तकनीक से जाँच कराती है तो यह माना जाएगा की उस पर उसके पति या अन्य रिश्तेदारों ने परीक्षण करने का दबाव बनाया है और उन्हें इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाएया।( पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम की धारा 24)
साथियों बात अगर हम कन्या भ्रूण हत्या के प्रतिरोध में सुझाव की करें तो, कन्या भ्रूण हत्या के प्रतिरोध के लिए सुझाव केवल कानून बना देने से सामाजिक बुराई का अंत नहीं हो सकता। महिलाओं के प्रति भेदभाव आम बात है और ख़ास तौर पर कन्या के प्रति उपेक्षा हमारे समाज में गहरे जड़ों तक धंसी है। तमाम कानूनों के बावजूद समाज में पुरुषों की श्रेष्ठता की गलत अवधारणा समाज के लिए खतरनाक है। आम जनता को महिलाओं के सम्मान के विरुद्ध भेदभाव रखने वाली प्रथाओं के उन्मूलन के लिए संवेदनशील बनाने की तत्काल आवश्यकता है।गिरते लिंग अनुपात को सँभालने की जरुरत है और इसमें राज्य, मीडिया पत्रकारों, गैर-सरकारी संगठनों, चिकित्सकों, महिला संगठनों और जनता को साथ खड़े होने की आवश्यकता है ताकि इस बात को सुनिश्चित किया जा सके कि कन्या भ्रूण हत्या विरोधी कानून पूरे तरीके से और कारगर ढंग से लागू हो पाएं। निगरानी, शैक्षिक अभियान और प्रभावी कानूनी क्रियान्वन, इन सबके संयोजन से लोगों के मन में गहरी बैठी महिला और कन्या विरोधी मानसिकता और कुप्रथाओं को दूर किया जा सकता है। इस संबंध में धार्मिक नेताओं को भी आगे आना चाहिए। उन्हें धर्मग्रंथों के सम्बन्ध में भ्रांतियों के बारे में स्पष्ट करना चाहिए और वैज्ञानिक, तार्किक और मानवीय दृष्टिकोण को बढ़ावा देना चाहिए। पारंपरिक रूप से पुत्र के जन्म तक सीमित धार्मिक कर्मकांडों को बेटी के सन्दर्भ में भी विस्तृत करना चाहिए।
कई राज्यों ने कन्याओं के लिए योजनाएं जारी की हैं जैसे कि कन्या के जन्म पर माता-पिता को नकदी देना, स्नातक स्तर तक मुफ्त शिक्षा, कुछ पॉलिसी में किश्तों में भुगतान किया जाता है जो कन्या के विवाह के समय परिपक्व होती हैं, इत्यादि। जमीनी स्तर पर स्थानीय पंचायतों को भी कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए। स्थानीय नेताओं को अपने इलाके के शिक्षित लोगों को जागरूक करने, जनता को शिक्षित करने के लिए नियुक्त करनाचाहिए ताकि लोगों का सबलीकरण हो और कन्या भ्रूण हत्या विरोधी अभियानों में महिलाओं को अभियानों में सबसे आगे खड़ा करना चाहिए। सूचना देने वालों को पुरस्कार देना चाहिए। इस कुप्रथा की भयावहता और गंभीरता के बारे में मीडिया में व्यापक प्रचार होना चाहिए। गैर-सरकारी संगठनों को जनता को इस सम्बन्ध में शिक्षित करने की भूमिका निभानी चाहिए।राष्ट्रीय महिला आयोग, गैर सरकारी संगठन, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को मौजदा कानूनों को समुचित ढंग से लागू करने के लिए बेहतर योजनायें बनानी चाहिए और अख़बारों, रेडियो, दूरदर्शन और इन्टरनेट पर व्यापक स्तर पर जन अभियान चलाने चाहिए। चिकित्सा व्यवसाय और इसके संगठनों जैसे भारतीय चिकित्सा संगठन, रेडियोलाजिस्ट एसोसिएशन, प्रसूति विशेषज्ञ तथा स्त्री रोग विशेषज्ञों के संगठन इत्यादि के साथ चिकित्सा जगत को मानवता के व्यापक हित में अपने तुच्छ स्वार्थों को छोड़ना चाहिए। चिकित्सकों के लिए एक मजबूत आचार संहिता बनाने की आवश्यकता है। भारतीय चिकित्सा परिषद् अधिनियम,1956, चिकित्सा परिषद् की नैतिक आचार संहिता, 1970 वर्तमान कानूनों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए संशोधित किया जाना चाहिए और सबसे बड़ी बात महिलाएं जो जननी हैं उन्हें बेटा पैदा करने की थोपी हुई जिम्मेदारी से स्वयं को मुक्त करना चाहिए। चाहे लड़का हो या लड़की, एक बच्चे को स्वास्थ्य रूप से जन्म लेने का अधिकार है और यह माता पिता की जिम्मेदारी है कि वह शिशु को उसके विकास के लिए सुरक्षित, देखभाल से भरा वातावरण प्रदान करें। सभी महिलायें, चाहे वो माँ हों या सास, सभी को अपने स्तर पर इस दुर्व्यवहार को रोकना चाहिए। हमें अपनी बेटियों को बेटों की तरह पालना चाहिए और उन्हें समान रूप से सफ़ल बनाना चाहिए और इस पुरानी धारणा को खारिज करना चाहिए कि लड़कियों की शिक्षा केवल विवाह के लिए ही काम आती हैं दुनिया का सामना करने के लिए शिक्षा एक हथियार है। भारतीय समाज में कन्या भ्रूण हत्या की गंभीर चुनौती को रोकने के लिए हमें महिलाओं को सशक्त बनाना
साथियों बात अगर हम,कन्या भ्रूण हत्या के प्रतिरोध के लिए सुझावों की करें तो, केवल कानून बना देने से सामाजिक बुराई का अंत नहीं हो सकता। महिलाओं के प्रति भेदभाव आम बात है और ख़ास तौर पर कन्या के प्रति उपेक्षा हमारे समाज में गहरे जड़ों तक धंसी है। तमाम कानूनों के बावजूद समाज में पुरुषों की श्रेष्ठता की गलत अवधारणा समाज के लिए खतरनाक है। आम जनता को महिलाओं के सम्मान के विरुद्ध भेदभाव रखने वाली प्रथाओं के उन्मूलन के लिए संवेदनशील बनाने की तत्काल आवश्यकता है।गिरते लिंग अनुपात को सँभालने की जरुरत है और इसमें राज्य, मीडिया पत्रकारों, गैर-सरकारी संगठनों, चिकित्सकों,महिला संगठनों और जनता को साथ खड़े होने की आवश्यकता है ताकि इस बात को सुनिश्चित किया जा सके कि कन्या भ्रूण हत्या विरोधी कानून पूरे तरीके से और कारगर ढंग से लागू हो पाएं। निगरानी, शैक्षिक अभियान और प्रभावी कानूनी क्रियान्वन, इन सबके संयोजन से लोगों के मन में गहरी बैठी महिला और कन्या विरोधी मानसिकता और कुप्रथाओं को दूर किया जा सकता है। इस संबंध में धार्मिक नेताओं को भी आगे आना चाहिए। उन्हें धर्मग्रंथों के सम्बन्ध में भ्रांतियों के बारे में स्पष्ट करना चाहिए और वैज्ञानिक, तार्किक और मानवीय दृष्टिकोण को बढ़ावा देना चाहिए। पारंपरिक रूप से पुत्र के जन्म तक सीमित धार्मिक कर्मकांडों को बेटी के सन्दर्भ में भी विस्तृत करना चाहिए।कई राज्यों ने कन्याओं के लिए योजनाएं जारी की हैं जैसे कि कन्या के जन्म पर माता-पिता को नकदी देना, स्नातक स्तर तक मुफ्त शिक्षा, कुछ पॉलिसी में किश्तों में भुगतान किया जाता है जो कन्या के विवाह के समय परिपक्व होती हैं, इत्यादि। जमीनी स्तर पर स्थानीय पंचायतों को भी कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए। स्थानीय नेताओं को अपने इलाके के शिक्षित लोगों को जागरूक करने, जनता को शिक्षित करने के लिए नियुक्त करना चाहिए ताकि लोगों का सबलीकरण हो और कन्या भ्रूण हत्या विरोधी अभियानों में महिलाओं को अभियानों में सबसे आगे खड़ा करना चाहिए। सूचना देने वालों को पुरस्कार देना चाहिए। इस कुप्रथा की भयावहता और गंभीरता के बारे में मीडिया में व्यापक प्रचार होना चाहिए। गैर-सरकारी संगठनों को जनता को इस सम्बन्ध में शिक्षित करने की भूमिका निभानी चाहिए। राष्ट्रीय महिला आयोग, गैर-सरकारी संगठन, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को मौजदा कानूनों को समुचित ढंग से लागू करने के लिए बेहतर योजनायें बनानी चाहिए और अख़बारों, रेडियो, दूरदर्शन और इन्टरनेट पर व्यापक स्तर पर जन अभियान चलाने चाहिए।चिकित्सा व्यवसाय और इसके संगठनों जैसे भारतीय चिकित्सा संगठन, रेडियोलाजिस्ट एसोसिएशन, प्रसूति विशेषज्ञ तथा स्त्री रोग विशेषज्ञों के संगठन इत्यादि के साथ चिकित्सा जगत को मानवता के व्यापक हित में अपने तुच्छ स्वार्थों को छोड़ना चाहिए। चिकित्सकों के लिए एक मजबूत आचार संहिता बनाने की आवश्यकता है। भारतीय चिकित्सा परिषद् अधिनियम ,1956, चिकित्सा परिषद् की नैतिक आचार संहिता, 1970 वर्तमान कानूनों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए संशोधित किया जाना चाहिए और सबसे बड़ी बात महिलाएं जो जननी हैं उन्हें बेटा पैदा करने की थोपी हुई जिम्मेदारी से स्वयं को मुक्त करना चाहिए। चाहे लड़का हो या लड़की, एक बच्चे को स्वास्थ्य रूप से जन्म लेने का अधिकार है और यह माता-पिता की जिम्मेदारी है कि वह शिशु को उसके विकास के लिए सुरक्षित, देखभाल से भरा वातावरण प्रदान करें। सभी महिलायें, चाहे वो माँ हों या सास, सभी को अपने स्तर पर इस दुर्व्यवहार को रोकना चाहिए। हमें अपनी बेटियों को बेटों की तरह पालना चाहिए और उन्हें समान रूप से सफ़ल बनाना चाहिए और इस पुरानी धारणा को खारिज करना चाहिए कि लड़कियों की शिक्षा केवल विवाह के लिए ही काम आती हैं दुनिया का सामना करने के लिए शिक्षा एक हथियार है। भारतीय समाज में कन्या भ्रूण हत्या की गंभीर चुनौती को रोकने के लिए हमें महिलाओं को सशक्त बनाना है।
साथियों बात अगर हम कन्या भ्रूण हत्या की घटनाएं रोकने के उपायों की करें तो सरकार ने देश में कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए बहुआयामी रणनीति अपनाई है। इसमें जागरुकता पैदा करने और विधायी उपाय करने के साथ साथ महिलाओं को सामाजिक-आर्थिक रूप से अधिकार संपन्न बनाने के कार्यक्रम शामिल हैं।इनमें से कुछ उपायनीचे दिए गए है-गर्भ धारण करने से पहले और बाद में लिंगचयन रोकने और प्रसवपूर्व निदान तकनीक को नियमित करने के लिए सरकार ने एक व्यापक कानून, गर्भधारण से पूर्व और प्रसवपूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन पर रोक) कानून 1994 में लागू किया। इसमें 2003 में संशोधन किया गया।
सरकार इस कानून को प्रभावकारी तरीके से लागू करने में तेजी लाई और उसने विभिन्न नियमों में संशोधन किएजिसमें गैर पंजीकृत मशीनों को सील करने और उन्हें जब्त करने तथा गैर-पंजीकृत क्लीनिकों को दंडित करने के प्रावधान शामिल है। पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड उपकरण के इस्तेमाल का नियमन केवल पंजीकृत परिसर के भीतर अधिसूचित किया गया। कोई भी मेडिकल प्रैक्टिशनर एक जिले के भीतर अधिकतम दो अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर ही अल्ट्रा सोनोग्राफी कर सकता है। पंजीकरण शुल्क बढ़ाया गया।स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने सभी राज्य सरकारों से आग्रह किया कि वे अधिनियम को मजबूती से कार्यान्वित करें और गैर-कानूनी तरीके से लिंग का पता लगाने के तरीके रोकने के लिए कदम उठाएं। माननीय पीएम ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से आग्रह किया था कि वे लिंग अनुपात की प्रवृति को उलट दें और शिक्षा और अधिकारिता पर जोर देकर बालिकाओं की अनदेखी की प्रवृत्ति पर रोक लगाएंगे।स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय ने राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों से कहा है कि वे इस कानून को गंभीरता से लागू करने पर अधिकतम ध्यान दें।पीएनडीटी कानून के अंतर्गत केंद्रीय निगरानी बोर्ड का गठन किया गया और इसकी नियमित बैठकें कराई जा रही हैं।वेबसाइटों पर लिंग चयन के विज्ञापन रोकने के लिए यह मामला संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के समक्ष उठाया गया।राष्ट्रीय निरीक्षण और निगरानी समिति का पुनर्गठन किया गया और अल्ट्रा साउंड निदान सुविधाएं के निरीक्षण में तेजी लाई गई। बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब, उत्तराखंड, राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश में निगरानी का कार्य किया गया।राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत कानून के कार्यान्वयन के लिए सरकार सूचना, शिक्षा और संचार अभियान के लिए राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों को वित्तीय सहायता दे रही है।राज्यों को सलाह दी गई है कि इसके कारणों का पता लगाने के लिए कम लिंग अनुपात वाले जिलों/ब्लाकों/गांवों पर विशेष ध्यान दें, उपयुक्त व्यवहार परिवर्तन संपर्क अभियान तैयार करे और पीसी और पीएनडीटी कानून के प्रावधानों को प्रभावकारी तरीके से लागू करे।धार्मिक नेता और महिलाएं लिंग अनुपात और लड़कियों के साथ भेदभाव के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान में शामिल हैं।भारत सरकार और अनेक राज्य सरकारों ने समाज में लड़कियों और महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए विशेष योजनाएं लागू की गई हैं। इसमें धनलक्ष्मी जैसी योजना शामिल है।
अतः अगर हम उपरोक्त विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि आओ लिंगानुपात असंतुलन की बढ़ती खाई को मिटाने चिंतन करें
लिंगानुपात में समानता लाने पीसी-पीएनडीटी कानून2003 में संशोधन सहित मिशन मोड पर काम करनें की ज़रूरत।लिंगानुपात असंतुलन की बढ़ती खाई को मिटाने केंद्र और राज्यों को मिलकर काम करने की ज़रूरत।बढ़ती लैंगिक असमानता को दूर करने, जन भागीदारी के साथ पीसी-पीएनडीटी अधिनियम में संशोधन की ज़रूरत को रेखांकित करना ज़रूरी है।
-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास गोंदिया महाराष्ट्र
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