नज़्म: जग को बचाना ! | #NayaSaveraNetwork




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जग को बचाना ! 

आग से दोस्ती तू कभी न निभाना,

बिगड़े हालात से जग को बचाना।

नभ, जल, थल से मिसाइलें उठी हैं,

खाक में साँसें न किसी की मिलाना।


दाग के छींटे किसपे नहीं हैं,

काँटों की राहें कहीं न बनाना।

पलट करके देखो सियासत है प्यासी,

दहशत जहां से मिलके मिटाना।


न सुबह ताजगी है, न रात में रौनक,

झुलसे सितारों पे मरहम लगाना।

इस बदनसीबी का क्या नाम दूँ मैं,

बहारों का गर्दन कभी न दबाना।


वक़्त के नकाब से न छिपेगी हक़ीक़त,

नई कोंपलों को धुआँ से बचाना।

खिंजाँ से न उजड़े जग का चमन ये,

तलब अपने ख़्वाबों की अधिक न बढ़ाना।


जाग-जागकर ये रातें कटी हैं,

जमींनी फरिश्ता न किसी को बनाना।

आँखों की बरसात कोई तो रोके,

बम बेगुनाहों पे कभी न गिराना।

रामकेश एम. यादव, मुंबई

(रॉयल्टी प्राप्त कवि व लेखक )


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