पालघर: डॉ उमेश चंद्र शुक्ल की गजल संग्रह माटी की आवाज का लोकार्पण सम्पन्न | #NayaSaveraNetwork


नया सवेरा नेटवर्क

पालघर। बोइसर पालघर में केसीएन क्लब मुंबई द्वारा भारतेंदु हरिश्चंद्र जयंती के अवसर पर टिमा सभागार तारापुर इंडस्ट्रीयल में आयोजित विराट कवि सम्मेलन , सम्मान समारोह में डॉ.उमेश चन्द्र शुक्ल कृत "माटी की आवाज" ग़ज़ल संग्रह का लोकार्पण, समारोह अध्यक्ष डॉ.सुधाकर मिश्र,डॉ.सागर त्रिपाठी,डॉ.कृपाशंकर मिश्र,नंदन मिश्र त्यागी राष्ट्रीय अध्यक्ष केसीएन क्लब,डॉ.लता विनोद नौवाल,डॉ.विनय दुबे ,कौशल श्रीवास्तव ,डॉ.कुमार कलहंस,राजकुमार छापरिया ,भोलानाथ तिवारी,भारतांचली  ,दिनेश पाठक ,अल्हड़ असरदार,अजय शुक्ल , लालबहादुर यादव, डॉ.चंद्रभूषण शुक्ल ,डॉ.अवनीश सिंह, मुकेश तिवारी, रमेशचंद्र यादव, विक्रम शुक्ल के हाथों किया गया। माटी की आवाज ग़ज़ल संग्रह पर बोलते हुए डॉ.कृपाशंकर मिश्र ने कहा कि  आर के पब्लिकेशन मुंबई से प्रकाशित डॉ.उमेश चन्द्र शुक्ल कृत माटी की आवाज ग़ज़ल संग्रह में एक-सौ बावन ग़ज़लें है। इसे हम कह सकते है कि हर ग़ज़ल अपने समय से संवाद स्थापित करती है। दुष्यंत कुमार की हिंदी ग़ज़ल परम्परा को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करेंगी। माटी की आवाज की ग़ज़लें अपने समय की हर धड़कन पर गहरी नज़र रखती है। वर्तमान समय की विसंगतियों से जुझते हुए गज़लकार समय से आंखें उठाकर,न ही आंखें झुकाकर बल्कि आंखें मिलाकर संवाद करता है। नंदन मिश्र त्यागी ने संचालन करते हुए कहा कि माटी की आवाज ग़ज़ल संग्रह की ग़ज़लें हिंदुस्तान के करोंड़ों बेजुबान लोगों की मुखर आवाज है । ग़ज़ल के कथन में जीवन के लिए स्थान है। जीवन मूल्यों के साथ खड़े रहकर विसंगतियों से जुझते हुए प्रतिरोध की शक्ति है। माटी की आवाज ग़ज़ल संग्रह की ग़ज़लें जीवन के सरोकारों को गति प्रदान करती है। डॉ. सुधाकर मिश्र ने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि माटी की आवाज ग़ज़ल संग्रह की ग़ज़लें जीवन की विसंगतियों, अव्यवस्थाओं का खुलकर प्रतिरोध करती है।जीवन के बेहतरी की संकल्पना के साथ गज़लकार पूरे दमखम से खड़ा है। आज बदलते समय के साथ बड़ी तेज गति से परिवर्तन हो रहा है। उमेश जी बदलते हुए उच्चतम मान मूल्य, सामाजिक मूल्यों के क्षरण को अच्छी तरह से पहचाने है । अवमूल्यन पर जबरदस्त प्रहार करते हैं। "हम कैसे कैसे शैतान हो ग‌ए बेटे, जैसे आंधी तूफान हो ग‌ए बेटे" ग़ज़ल में देखा जा सकता है। माटी की आवाज की ग़ज़लें हिंदुस्तान के रग-रग से वाकिफ समय से संवाद स्थापित करती है। डॉ.उमेश चन्द्र शुक्ल ने कहा ग़ज़ल हिंदी में आकर खुलकर आम आदमी से संवाद करती है। उनके कलम की रोशनाई हमेशा उजास लिखने के काम आती है। अपने समय की विसंगतियों से जुझते हुए स्याह का प्रतिरोध करते हुए जीवन के उजाले की तलाश करती है। माटी की आवाज ग़ज़ल संग्रह की ग़ज़लें आम पाठक को जीवन देखने के लिए खास दृष्टिकोण पैदा करने में महती भूमिका का निर्वाह कर सकता है। जीवन मूल्यों के साथ खड़े होकर प्रतिरोध की शक्ति के साथ सहजता से जीवन यापन किया जा सकता है।

सम्मान समारोह का संचालन विक्रम शुक्ल ने किया एवं कवि सम्मेलन एवं लोकार्पण समारोह का संचालन नंदन मिश्र त्यागी ने किया।सरस्वती वंदना डॉ.कृपाशंकर ने सरस्वती वंदना एवं संस्था के अध्यक्ष ने सभी अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया।

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