नया सवेरा नेटवर्क
- प्रकृति और उसके संसाधनों को बचाने वाले मानव प्यार और सम्मान के पात्र हैं
- प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए बनाए गए अधिनियमों, नियमों, विनियमों अंतरराष्ट्रीय संधियों का पालन अपनी मां पृथ्वी को बचाने के लिए करना तात्कालिक ज़रूरी हैं - एडवोकेट किशन भावनानी गोंदिया
गोंदिया- प्राकृतिक संसाधनों के अथक मानव अति दोहन से प्राकृतिक मौसम पैटर्न अति असामान्य,जैव विविधता को नुकसान, वन्यजीवों के आवासों का विनाश, जीवो की जातियों प्रजातियों की विविलुप्ता, भूस्खलन तूफान, जंगलों में आग, ज्वालामुखी जैसी अनेकों घटाएं आज के प्राकृतिक मौसम पैटर्न परिपेपक्ष में भारी बदलाव दिखता है जिसका मुख्य कारण मां पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों का मानवीय जीव द्वारा अति दोहन है। इसलिए आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे कि आओ अपनी मां पृथ्वी को बचाएं,अपने कर्तव्यों को निभाए, सरकारों द्वारा बनाए गए अधिनियमों नियमों विनियमों अंतरराष्ट्रीय संधियों का कड़ाई से पालन करें।
साथियों बात अगर हम प्रकृति के संरक्षण की करें तो आज समय आ गया है कि हर मानव जीव को तात्कालिक इसके संरक्षण रूपी यज्ञ में अपने सहयोग रूपी आहुति देनी ही होगी क्योंकि यह सिर्फ पर्व या उत्सव मनाने, भाषण देने, वार्तालाप करने से नहीं बल्कि हमें इसके आचरण में उतरना होगा प्रकृति प्रेम तभी हो सकेगा जब पर्यावरण का संरक्षण होगा आइए, एक संकल्प लें कि अपनी ओर से पर्यावरण को संरक्षित करें। न केवल नए पौधे लगाएं बल्कि पुराने पेड़ों के संरक्षण का भी प्रयास करें। जलस्त्रोतों को संरक्षित करने में आगे आएं। विदेशों में आप देखेंगे कि सड़क के दोनों ओर हरियाली नजर आती है लेकिन अपने देश में सड़क के दोनों ओर पॉलीथिन उड़ते नजर आ जाएगी। सड़क पर दौड़ती कार के शीशे से चिप्स के रैपर, पॉलीथिन फेंकने वाले लोग भी हम ही हैं। वन्यजीवों के प्रति भी हमारे कान बंद हो गए हैं। चिड़िया पानी के बगैर तड़प रही हैं। पर्यावरण में पेड़ लगाने के साथ-साथ पारिस्थिति तंत्र को सुरक्षित रखने के लिए आगे आएं। घर के बाहर चिड़ियों के लिए पानी रखें। यह कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि गोवंश पानी के लिए तड़प रहे हैं, अगर हम उन्हें पानी पिला लें तो यह भी पर्यावरण के प्रति हमारा योगदान होगा।
साथियों बात अगर हम प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए भारत सरकार द्वारा बनाए गए अधिनियमों नियमों विनियमों कार्यक्रमों की करें तो राष्ट्रीय आर्द्रभूमि (वेटलेंड) संरक्षण कार्यक्रम,नगर वाहन उद्यान योजना प्रोजेक्ट टाइगरस्वच्छ भारत अभियान मगरमच्छ संरक्षण परियोजनायूएनडीपी समुद्री कछुआ परियोजना प्रोजेक्ट हाथी,मत्स्य पालन अधिनियम 1897 भारतीय वन अधिनियम 1927खनन और खनिज विकास विनियमन अधिनियम 1957 पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम 1960 वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972, जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 1974, वन संरक्षण अधिनियम 1980, वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 1981, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 जैविक विविधता अधिनियम 2002, आर्द्रभूमि संरक्षण और प्रबंधन नियम 2010 इत्यादि बनें हैं।
साथियों बात अगर हम मां पृथ्वी की करें तो, पृथ्वी ने हमें पानी, हवा, मिट्टी, खनिज, पेड़, जानवर, भोजन आदि जैसी जीने के लिए बुनियादी आवश्यकताएं प्रदान की हैं, इसलिए हमें प्रकृति को स्वच्छ और स्वस्थ रखना चाहिए। औद्योगिक विकास और कई अन्य कारक भी प्रकृति की बिगड़ती स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं। हम जो भी करते हैं, वह दुनिया को प्रभावित करता है, क्योंकि दुनिया एक है और किसी तरह एक साथ जुड़ी हुई है, इसलिए जरूरी है पर्यावरण संरक्षण: प्रकृति का संरक्षण बहुत आवश्यक है। यहां तक कि वैज्ञानिकों ने भी हमें निकट भविष्य में बड़े पैमाने पर विलुप्ति को लेकर चेतावनी दी है। प्रकृति के बारे में कई शोधों से पता चला है कि संसाधन बर्बाद हो रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण दिन-प्रतिदिन तापमान में वृद्धि हो रही है। तूफान और समुद्र का स्तर भी बढ़ रहा है और मीठे पानी के ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिससे जान का खतरा है। हम प्राकृतिक संसाधनों के साथ एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। ऐसे में दिन प्रतिदिन बिगड़ते पर्यावरण को लेकर चुनौती यह है कि सतत विकास को प्राप्त करने के लिए प्रकृति को कैसे संरक्षित किया जाए।
साथियों बात अगर हम प्रकृति संरक्षण के अर्थ की करें तो गिफोर्ड पिंचोट के अनुसार, संरक्षण का अर्थ मानव संसाधन की स्थायी भलाई के लिए पृथ्वी और उसके संसाधनों का बुद्धिमानी से उपयोग से हैं। पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों में हवा, खनिज, पौधे, मिट्टी, पानी और वन्यजीव शामिल हैं।संरक्षण इन संसाधनों की देखभाल और सुरक्षा है ताकि इन्हें आने वाली पीढ़ी के लिए संरक्षित किया जा सके।
साथियों इस दिन का उद्देश्य विश्व को स्वस्थ रखने के लिए पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता के बारे में जागरूकता पैदा करना है। साथ ही पौधों और जानवरों को बचाना, जो विलुप्त होने के कगार पर हैं। प्रकृति के विभिन्न घटकों जैसे वनस्पतियों और जीवों, ऊर्जा संसाधनों, मिट्टी के पानी और हवा को बरकरार रखना है।
साथियों बात अगर हम प्रकृति के संरक्षण के महत्व की करें तो, प्रकृति हमें हमारी दैनिक जरूरतों के लिए सभी आवश्यक चीजें प्रदान करती है। अधिकजनसंख्या और मानवीय लापरवाही केकारण हम अपने संसाधनों का अत्यधिक दोहन करने लगे। अगर ऐसा ही चलता रहा तो हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए कोई संसाधन नहीं बचेगा संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता है:पारिस्थितिक संतुलन का समर्थन करके जीवन का समर्थन करना यह सुनिश्चित करने के लिए कि आने वाली पीढ़ियां संसाधनों तक पहुंच सकें, जैव विविधता के संरक्षण के लिए मानव जाति के जीवित रहने को सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी हैं
साथियों बात अगर हम विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस के इतिहास की करें, पिछली शताब्दी के दौरान मानवीय गतिविधियों का प्राकृतिक वनस्पति और अन्य संसाधनों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। तेज़ी से बढ़ते औद्योगीकरण की तलाश और लगातार बढ़ती आबादी के लिए जगह बनाने के लिए वनों के आवरण को काटने से जलवायु परिवर्तन और अन्य पर्यावरणीय प्रभाव पैदा हुए हैं। अफसोस की बात है कि यह दुनिया भर में प्रकृति संरक्षण के लिए इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर जैसे संगठन महत्वपूर्ण हैं लेकिन उसके बावजूद भी हम प्रकृति को संरक्षित करने में सफल नहीं हो पाए हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन करउसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि आओ प्रथ्वी संरक्षण रूपी यज्ञ में अपने सहयोग रूपी आहुति दे प्रकृति और उसके संसाधनों को बचाने वाले मानव प्यार और सम्मान के पात्र हैं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए बनाए गए अधिनियमों नियमों विनियमों अंतरराष्ट्रीय संधियों का पालन अपनी मां पृथ्वी को बचाने के लिए करना तात्कालिक ज़रूरी है।
-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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