नया सवेरा नेटवर्क
- आओ युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से प्रेरणा लेने के लिए प्रोत्साहित करें
- आधुनिक युग में हमें बुजुर्गों, स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन से सबक लेने की ज़रूरत - एडवोकेट किशन भावनानी गोंदिया
गोंदिया - भारत में हम बीते एक वर्ष से आजादी के 75 वें अमृत महोत्सव के उपलक्ष में बड़े ही धूमधाम से अनेक वेबीनार, प्रोग्राम, कार्यक्रम किए हैं अब स्वर्ण काल की ओर बढ़ गए हैं। साथियों हमने कार्यक्रम और वेबीनार ही नहीं करीब-करीब हर केंद्रीय मंत्रालय स्तर पर अनेक विकास कार्यों की नींव भी रखी है जो हमें रोज़ प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से पता चलता है, जिससे मन में जोश, नए भारत आत्मनिर्भर भारत बनने की कड़ी में उत्साह भरा माहौल उत्पन्न हो गया है।
साथियों बात अगर हम स्वतंत्रता संग्राम के 75 में अमृत महोत्सव मनाकर अब स्वर्ण काल में स्वतंत्रता दिवस महोत्सव 2047 के विज़न के बड़े-बड़े रणनीतिक रोडमैप, विकास की योजनाएं व इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने की करें तो हमें यह भी जरूर याद रखना होगा कि यह स्वतंत्रता हमें किन की बदौलत मिली है, उन महापुरुषों, स्वतंत्रता सेनानियों और हमारे बुजुर्गों को हमें याद रखना ज़रूरी है। उनके द्वारा दिखाए गए रास्ते, निर्धारित उच्च मानकों का अनुसरण करते हुए हमें आगे बढ़ना होगा, क्योंकि आज हम जो खुली हवा में सांस ले रहे हैं यह सब उनकी ही देन है।
साथियों बात अगर हम इस विषय पर युवा भारत के युवाओं की करें तो इस अनुसरण की ज़रूरत खासकर हमारे युवा साथियों को है जिनको स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन कर और बुजुर्गों, स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन से सबक लेने की ज़रूरत है। हालांकि आज का युवा पढ़ा लिखा, बुद्धिजीवी है बड़े बड़े वैज्ञानिक अनुसंधानों में सफलताएं प्राप्त कर रहा है परंतु साथियों बड़े बुजुर्गों, स्वतंत्रता सेनानीं तो आखिर कर हमारी शान है। हम नए भारत आत्मनिर्भर भारत की सीढ़ियों पर कदम रखने शुरू हो गए हैं अब समय आ गया है कि हमें इन महापुरुषों के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन कर अनेक अनपढ़ई बातों को समझें, उनके जीवन से सबक लेने की कोशिश करें, क्योंकि इन स्वतंत्रता सेनानियों बुजुर्गों महापुरुषों के कारण ही हम 75 वां अमृत स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं और विज़न 2047 की तैयारी शुरू किए हुए हैं! हमें हर पल इन्हें अपने करीब दिलो दिमाग में संजोकर रखने की जरूरत है।
साथियों बात अगर हम आज धरातल पर मौजूद याने जीवित हमारे स्वतंत्रता सेनानियों, हमारे बूढ़े बुजुर्गों की करें जिन्होंने अंग्रेजों के जुल्म सहे, उनसे लोहा लेकर उन कठिनाई भरे दिनों को जिया उनकी करें तो, हमें आज उनको पूरा मान सम्मान देना बहुत ज़रूरी है। साथियों शासन प्रशासन द्वारा उन्हें आर्थिक सहायता, मानधन, पेंशन, सहयोग तक ही सीमित नहीं रखना है,उन्हें अपनापन, अपनों के प्यार, व्यवहार, साथ की भी ज़रूरत है जो शायद अनेक ऐसे महापुरुषों को नहीं मिल पाता होगा क्योंकि हम आज की युवा पीढ़ी में दिखावा, पाश्चात्य संस्कृति, मौज मस्ती, आधुनिकता, पैसे कमाने का ज़ज्बा, पाश्चात्य फैशन, पाश्चात्य सोच की ओर धीरे-धीरे फिसलते हुए देख रहे हैं, और हमारे परम आदरणीय बुजुर्गों, स्वतंत्रता सेनानियों, महापुरुषों को ओल्डमैन का दर्जा देकर मौन धारण की ओर धकेला जा रहा है। हालांकि सब ऐसे नहीं है परंतु जो हैं उन्हें अब स्वतः संज्ञान लेकर नए भारत आत्मनिर्भर भारत में उनको साथ लेकर मान सम्मान, ख़ुशी अपनापन, प्यार मोहब्बत देकर उन्हें अपनी जिंदगी के करीब रख़ और आगे बढ़ने की ज़रूरत है। क्योंकि आज के भारत के 68 प्रतिशत लोग युवा हैं और इस युवा भारत में ज़वाबदारी, जिम्मेदारी का बोझ हर युवा को उठाना होगा और अपने बूढ़े बुजुर्गों, माता-पिता, रिश्तेदारों, स्वतंत्रता सेनानियों, महापुरुषों का ध्यान रखना होगा।
साथियों बात अगर हम माननीय पूर्व उपराष्ट्रपति द्वारा एक कार्यक्रम में संबोधन की करें तो पीआईबी के अनुसार उन्होंने भी,युवाओं से भारत के स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने और स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन से सबक लेने की अपील की। उन्होंने युवाओं से औपनिवेशिक शासन के दौरान भारतीयों के दिमाग में डाले गए फूट डालो और राज करो की मानसिकता से उबरकर राष्ट्र निर्माण में योगदान देने का आग्रह किया। उन्होंने आज भारतीय इतिहास का उद्देश्यपूर्ण पुनर्मूल्यांकन बेहतर तथ्य आधारित शोध के जरिये करने की आवश्यकता बताई। भारत के अतीत के औपनिवेशिक परिप्रेक्ष्य में तथ्यों को तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत करने का उल्लेख करते हुए उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों और नेताओं पर अधिक पुस्तकों के साथ भारतीय इतिहास के लिए एक नए दृष्टिकोण का आह्वान किया। उन्होंने विभिन्न भारतीय भाषाओं में स्वतंत्रता सेनानियों पर और अधिक पुस्तकें लाने की आवश्यकता पर बल दिया क्योंकि देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। उन्होंने राज्यों से इस संबंध में आगे आने और अपने-अपने क्षेत्रों के नेताओं पर किताबें प्रकाशित करने का आह्वान किया।उन्होंने सुझाव दिया कि आज के कानून निर्माताओं को हमारे स्वतंत्रता सेनानियों और संविधान निर्माताओं द्वारा निर्धारित उच्च मानकों का आत्मनिरीक्षण और अनुकरण करने की आवश्यकता है। हाल की कुछ घटनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि निर्वाचित प्रतिनिधियों को यह याद रखना चाहिए कि वे संसद का अनादर और लोकतंत्र का स्तर नीचा नहीं कर सकते हैं।
साथियों बात अगर हम माननीय पीएम द्वारा लाल किले से संबोधन करने की करें तो उन्होंने भी कहा था,आज आजादी के इस अमृत महोत्सव के पावन पर्व पर देश अपने सभी स्वातंत्र्य सेनानियों को, राष्ट्र रक्षा में अपने आप को दिनरात खपाने वाले, आहूत करने वाले वीर वीरांगनाओं को आज देश नमन कर रहा है। आजादी को जन आंदोलन बनाने वाले, पूज्य बापू हो, या आजादी के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान जैसे महान क्रांतिवीर हो, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई हो, चित्तूर की रानी चेन्नम्मा हो या रानी गाइदिन्ल्यू हो, या असम में मातंगिनी हाजरा का पराक्रम हो, देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू जी हो, देश को एकजुट राष्ट्र में बदलने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल हो भारत के भविष्य की दिशा निर्धारित करने वाले, रास्ता तय कराने वाले बाबा साहब अंबेडकर सहित देश हर व्यक्ति को, हर व्यक्तित्व को आज याद कर रहा है। देश इन सभी महापुरुषों का ऋणी है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि,आओ युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से प्रेरणा लेने के लिए प्रोत्साहित करें।आधुनिक युग में हमें बुजुर्गों, स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन से सबक लेने की ज़रूरत तथा युवा भारत के युवकों को बुजुर्गों, स्वतंत्रता सेनानियों, महापुरुषों द्वारा निर्धारित उच्च मानकों का आत्मनिरीक्षण और अनुसरण करने की तात्कालिक ज़रूरत है।
-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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