नया सवेरा नेटवर्क
गमैं अकेला हूंँ
दिल मानने को तैयार नहीं, मैं अकेला हूंँ।
चलते चले जाना है, किसी का अब इंतजार नहीं,
दिल को समझाऊंँ कैसे?
दिल मानने को तैयार नहीं, मैं अकेला हूं।
जीना तो है, जिएंगे हम, तुम बिन कैसे?
हमको बतला दो, किसी का अब साथ नहीं,
दिल मानने को तैयार नहीं, मैं अकेला हूंँ।
दिल बेचैन हुआ, दिल की तू सुन ले,
किसे सुनाऊँ दिल का हाल, दिल मेरा परेशान हुआ,
दिल मानने को तैयार नहीं, मैं अकेला हूंँ।
सुन ले एक दफ़ा, रहमत कर मुझ पर ए! ख़ुदा!
संगिनी बिन जीना दुश्वार हुआ,
काश, कोई चमत्कार हो जाए,
मैं भी! प्रफुल्लित हो जाऊंँ,
दिल मानने को तैयार नहीं, मैं अकेला हूंँ।
(मौलिक रचना)
चेतना प्रकाश चितेरी, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश।
@ सर्वाधिकार सुरक्षित
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