नया सवेरा नेटवर्क
बादल!
सांसों की हाला पिलाएगा बादल,
उजड़ी दुनिया बसाएगा बादल।
स्वागत करेगी प्यासी ये धरती,
प्रलय बाढ़ साथ में लाएगा बादल।
सूख गई है जो जीवन की डाली,
हरी- भरी धरा बनाएगा बादल।
अमराई जागेगी बागों में फिर से,
अधरों की प्यास बुझाएगा बादल।
पट जाएगी फिर ऋतुओं से धरती,
डालों पे झूला डलाएगा बादल।
चढ़ेगा नशा जड़ -चेतन के ऊपर,
भर-भरके प्याला पिलाएगा बादल।
कलियों की फूलों से भरेगा प्याला,
मखमली घासों पे सुलाएगा बादल।
रस से भर जाएँगी अंगूरी लतायें,
तपोवन को फिर सजायेगा बादल।
करेंगे प्रणय कलियों से भौंरे,
आँख - मिचौली सिखाएगा बादल।
संघर्ष करेगा, बढ़ेगा भी वही,
चढ़ी है जिसकी उतारेगा बादल।
खंडाला जाओ या अम्बाला जाओ,
बदन में लपट उठाएगा बादल।
महकती नहीं यूँ जीवन की क्यारी,
सोने के जैसा तापएगा बादल।
कौन निगल रहा हरियाली यहाँ,
उंगली पे उसको नचाएगा बादल।
झीलें हैं उसकी, नदिया हैं उसकी,
हँस -हँस के पानी पिलाएगा बादल।
बरसने का हुनर सबको आता नहीं,
ऐसा इल्म भी सिखाएगा बादल।
भरा पेट अपना, मैदान क्या मारा,
उसका जहर वो उतारेगा बादल।
पहले वाष्प बनना तुम भी सीखो,
स्वर्ग से अप्सरा उतारेगा बादल।
झूमेंगी बालें खेतों में एक दिन,
सबको अमृत पिलाएगा बादल।
रामकेश एम. यादव (लेखक ) मुंबई
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