भींगलै मोर चुनरिया! | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
भींगलै मोर चुनरिया!
अरे रामा! मनवाँ में उठे लहरिया,
बरस रहल पानी ए हरी।
उमड़ -घुमड़ के बरसे बदरिया,
सइयाँ घर नहीं, गए शहरिया।
अरे रामा ! भींगलै मोर चुनरिया,
बरस रहल पानी ए हरी।
अरे रामा! मनवाँ में उठे लहरिया,
बरस रहल पानी ए हरी।
रहि -रहि के घन बिजुरी चमके,
रहि -रहि जियरा हमरो दहके।
अरे रामा! तड़पै लै हमरो सेजरिया,
बरस रहल पानी ए हरी।
अरे रामा! मनवाँ में उठे लहरिया,
बरस रहल पानी ए हरी।
झूला पड़ि गयल डारी -डारी,
सखियाँ झूलें पारा- पारी।
अरे रामा! खेलब हम के से कजरिया,
बरस रहल पानी ए हरी।
अरे रामा! मनवाँ में उठे लहरिया,
बरस रहल पानी ए हरी।
नागिन जइसन डंसे ले रतिया,
उठेे दरद रोज मोरी छतिया।
अरे रामा! हूक उठावे कोयलिया,
बरस रहल पानी ए हरी।
अरे रामा! मनवाँ में उठे लहरिया,
बरस रहल पानी ए हरी।
रोज बोलावे हमके बगीचा,
प्यासल कलेजवा साजन सींचा।
अरे रामा! तोहके सुताईब अँचरिया,
बरस रहल पानी ए हरी।
अरे रामा! मनवाँ में उठे लहरिया,
बरस रहल पानी ए हरी।
रामकेश एम. यादव, (कवि व लेखक) मुंबई
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