गोल्डन पीरियड | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
गोल्डन पीरियड
वो स्कूल का जाना
न जाने का बहाना बनाना,
अगर चले गए स्कूल तो हाफ समय में
घर के लिए भाग जाना।
उस समय लगता था की ये बंदिशे थी पर आज लगता है वो पल सुहाने थे,
सुबह जाना होता था स्कूल तो पेट दर्द, उल्टी जैसे हम लोग बनाते बहाने थे।
सुबह सबसे पहले जाकर बेंच को बदल लेना
फ्रंट सीट की जगह के लिए झगड़ लेना,
वो पल याद आते हैं तो आंखे नम हो जाती है।
यूं ही किसी का टिफिन खा लेना
झगड़ने के बाद कट्टी और मिट्ठी कर लेना,
सब दोस्त यार इस तरह से छूट गए
जैसे हम सब बिना हथियार के लुट गए।
हर खेल में एक मस्ती का वास था
उससे मत बोलना ये भी बकवास था,
कितना भी झगड़ा होता था हम सबके बीच
पर सब बोलेंगे फिर ये विश्वास था।
वो टीचर की डांट खाने के बाद भी
गलतियां करना
कभी कभी गुस्से में फब्तियां कसना,
कितना भी हम झगड़ लेते थे पर
एक दूसरे के लिए जान देते थे।
वो दिन अब याद आते है तो आंखे बरस जाती हैं
दोस्तों से मिलने के लिए सांसे थम सी जाती हैं
सब अपने अपने मंजिल की ओर निकल गए
उतना तो हम लोगों का वक्त नहीं बदला
जितना की कॉलेज से निकलने के बाद दोस्त बदल गए।
–रितेश मौर्य
जौनपुर, उत्तर प्रदेश।
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