जिम्मेदार | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
जिम्मेदार
छोटी सी उम्र थी तो लोग स्कूल
के लिए जगा दिए
बड़े हुए तो लोग परिवार से भगा दिए
आंखो में सबके मैं तब बस गया था
जब अपने सपनों को मैंने जिंदा जला दिए।
हर रात हमने बिस्तर पर सपने को संजोया
सुकून को भुला के अकेले रोया ,
कुछ पाने की चाहत इस कदर थी
यार ,घर ,परिवार सबको खोया ।
परिवार में उम्मीद लगी थी कि मैं
कुछ बड़ा करूंगा
झोपड़े को तोड़ कर महल खड़ा करूंगा ,
समय जब विपरीत हुआ तो सबने हाथ छुड़ा लिया,
मुझे क्या पता था कि मैं बेसहारा ही मरूंगा ।
जिम्मदारियो ने जिंदगी की डोर को जिलाया
मुझ मरते हुए को पानी पिलाया ,
मैं अधमरा ही पड़ा था मरीज बनके
जिम्मेदारियों ने फिर उस रास्ते पर वापस लाया ।
हम लड़के है लोग हमसे हमारी हैसियत पूछते हैं
आवारा निकल गए तो सब थूकते हैं
कुछ इंसानी जानवर ऐसे हैं जो खुद रोटी नहीं पाते
वो भी हमसे हमारी औकात पूछते हैं।
रितेश मौर्य
जौनपुर, उत्तर प्रदेश।
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