दुनिया में न रहने के बाद भी परिवार को मिल रही प्रेरणा | #NayaSaveraNetwork
- भ्रातृत्व प्रेम को चरितार्थ करके दिखाया स्व. अशोक कुमार सिंह ने
- धार्मिक एवं राष्ट्र से जुड़े कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर लेते थे हिस्सा
हिम्मत बहादुर सिंह
जौनपुर। टीडीपीजी कालेज के पूर्व प्रबंधक स्व. ठाकुर अशोक कुमार सिंह दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनकी प्रेरणा आज भी परिवार वालों को मिल रही है। यह अपने कार्यकाल के दौरान किसी का भी अनहित नहीं किये। यही कारण है कि जाने के बाद भी कालेज परिवार सहित समाज के लोग आज भी उन्हें याद करते हैं।
गौरतलब हो कि सिरकोनी ब्लॉक के महरूपुर गांव में ठाकुर राम सूरत सिंह के घर में 12 नवंबर 1942 में जन्मे अशोक कुमार सिंह दो बहनें और भाई में सबसे छोटे थे। उनकी माता प्यारी देवी थीं। पिछले साल पंचायत चुनाव के दिन 15 अप्रैल 2021 को उन्होंने वाराणसी में एक निजी अस्पताल में इलाज के दौरान अंतिम सांस ली। सुबह प्रधानी के चुनाव में लोग लगे थे जैसे ही दोपहर में उनके निधन की सूचना आई पूरे जनपद में शोक की लहर दौड़ गई।
बचपन में ही उनके सिर से पिता का साया उठ गया था और उनके बड़े भाई उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री स्व. उमानाथ सिंह ने पूरे परिवार को जिस तरह से संभाला उसी पद चिन्हों पर चलकर ठाकुर स्व. अशोक कुमार सिंह भी परिवार को आगे ले जाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। उनके अंदर भातृत्व का प्रेम इस कदर रहा कि 13 सितंबर 1994 को बड़े भाई के निधन के बाद उनका लगातार उमानाथ सिंह सेवा समिति बनाकर उनकी पुण्यतिथि अपने पूरे जीवनकाल तक मनाते रहे। वह शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य किये वह जितने भी शिक्षण संस्थान स्थापित किये वह अपने बड़े भाई पूर्व मंत्री स्व. उमानाथ सिंह के नाम ही स्थापित किये।
1994 में उन्होंने बड़े भाई के निधन के बाद टीडीपीजी कालेज के प्रबंधक का कार्यभार संभाला जो 14 अप्रैल 2021 तक इस पद पर बने रहे। लगभग 28 साल तक यह टीडीपीजी कालेज के प्रबंधक के रूप में अपनी सेवा दी तथा राजनीति के क्षेत्र में भी उनकी अच्छी खासी पकड़ थी और वह भाजपा के जिलाध्यक्ष पद पर भी काफी दिनों तक रहे। वह ईंट भट्ठा संघ उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष एवं जौनपुर इकाई के आजीवन जिलाध्यक्ष रहे।
बताते चलें कि उनकी रूचि धार्मिक कार्यक्रमों एवं राष्ट्र से जुड़े कार्यक्रमों में रहती थी और इन कार्यक्रमों भाग लेने में पीछे नहीं रहते थे। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कोरोना के प्रथम लहर में उन्होंने जिला प्रशासन को सहयोग के रूप में कालेज से लगभग पांच लाख का चेक बनवाकर लोगों की सहायता के लिए दिये। यही नहीं वह अयोध्या में बन रहे भगवान श्री राम मंदिर के निर्माण में भी कालेज की तरफ से ट्रस्ट के नाम पांच लाख का चेक बनवाकर अयोध्या जाकर ट्रस्ट को सौंपा।
वह महीने में एक बार अयोध्या जाकर भगवान राम का दर्शन तथा वाराणसी में संकट मोचन जाना नहीं भूलते थे। उनकी पत्नी निर्मला देवी का निधन 30 जनवरी 2016 को ही हो गया था। पूजा पाठ करना उनकी दिनचर्या में शुमार थी। धार्मिक भावनाएं उनके अंदर इस कदर घर कर गई थी कि अगर किसी कार्यक्रम में उदबोधन के लिए खड़े होते थे तो वह अपने भाषण के दौरान रामायण की चौपाईयों का उल्लेख जरूर करते थे।
रामायण की काफी चौपाईयां उनको कंठस्थ थी और भाषण के दौरान रामायण और महाभारत पर प्रकाश डालने से नहीं चूकते थे। यही है कि बीते 28 फरवरी को टीडीपीजी कालेज का स्थापना दिवस के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि ने रामायण से जुड़ी कुछ प्रसंगों को जब सुनाया तो कुछ लोग यह कहते रहे कि पूर्व प्रबंधक भी अपने भाषण के दौरान इन प्रसंगों का जिक्र जरूर करते थे।
उनके परिवार में संस्कार और छोटे बड़ों का सम्मान सबसे बड़ी धरोहर है। वह अपने पीछे भरा पूरा परिवार छोड़ गये हैं। उनके बड़े पुत्र टीडीपीजी कालेज के प्रबंधक राघवेंद्र प्रताप सिंह, देवेंद्र प्रताप सिंह, शिवेंद्र प्रताप सिंह, धर्मेंद्र प्रताप सिंह एवं उनके भतीजे पूर्व सांसद डौ. कृष्ण प्रताप सिंह केपी, पूर्व मंत्री स्व. उमानाथ सिंह एवं स्व. अशेक कुमार सिंह के पद चिन्हों पर चलकर समाजसेवा में रमे हुए हैं।
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