जाते हुए लम्हें! | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
ख्वाहिशों की ये बारिश देर तक नहीं टिकती,
रितु चाहे हो कोई देर तक नहीं टिकती।
लूटो नहीं दुनिया को चार दिन का मेला है,
गिनकर दिया साँसें देर तक नहीं टिकती।
आँखें उसकी हिरनी-सी पागल कर देती है,
जवानी की ये खुशबू देर तक नहीं टिकती।
करती हैं कत्ल लड़कियाँ इल्जाम लगता नहीं,
ऐसी तलब मन में देर तक नहीं टिकती।
कभी जान होते थे उसकी हम साँसों का,
आशिक़ी की ये शमा देर तक नहीं टिकती।
साँसें टूट जाती हैं देखो चरागों की,
नींद उन सितारों की देर तक नहीं टिकती।
जाते हुए लम्हें वो लौट के नहीं आते,
कोई कली शाँखों पे देर तक नहीं टिकती।
इन सुर्ख होंठों को तू छूने से मत रोको,
पीने दो ये हाला देर तक नहीं टिकती।
खेलने दो बच्चों को दौर फिर न आएगा,
ये कच्ची उमर देखो देर तक नहीं टिकती।
सोने की रोटी को खाता नहीं कोई,
ऐसी बुलंदी भी देर तक नहीं टिकती।
रामकेश एम. यादव
(रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक ), मुंबई
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