नया सवेरा नेटवर्क
प्रेम ऐसा भी
पहली बार जो क्लास में वो आई
हलका सा देखा और मुस्कुराई,
मैंने भी हल्के से उसको देखा
प्रेम की प्रथम दृष्टि मैंने पाई।
फिर चल पड़ा मैं प्रेम के रास्ते
जीने लगा सिर्फ उसके ही वास्ते ,
धीरे धीरे हवा में खुशबू महक गई
वो भी कुछ पल के लिए बहक गई
समय ने अपना रंग दिखाया
हम दोनों के बीच दूरी को बढ़ाया,
उसकी नजरें हमसे फिरने लगीं
वो अलग होने के सपने बुनने लगी
मैं ठहरा थोड़ा मासूम सा बच्चा
इश्क और महोब्बत में कच्चा,
वो शायद ज्यादा ही चालाक थी
जिम्मेदारी शब्द से आज़ाद थी।
मैं जिम्मेदारी को झेलने वाला
बचपन में भी न खेलने वाला ,
मैं अनबुझ रहा वो छोड़ गई
सारे रिश्ते पल में तोड़ गई।
हम टूटे दिल के साथ जिए
कभी मन किया तो दो घूंट लिए ,
धीरे धीरे नशा का सहारा लिया
फिर अपना जीवन नर्क किया ।
इश्क में पड़े तो बरबाद हो गए
कुछ समय के लिए साथ हो गए,
प्रेम समझदारी से करना ए दोस्त
मन भरते ही पंछी आज़ाद हो गए।
इस तरह से इश्क का पड़ाव आया
दिल में बहुत सा बहाव आया
देखा जिधर मैंने इश्क के रोगी को
उधर लाइलाज घाव नजर आया।
–रितेश मौर्य
जौनपुर , उत्तर प्रदेश
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