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लक्ष्य
निकला हूं उन रास्ते पर
जिसका इंतजार सबको है
कर्म करने में कोई कमी नहीं
वो ब्रह्मास्त्र मुझमें है।
डरना तो तब था जब
लक्ष्य धुंधले थे,
डर उस समय था जब
रास्ते पर पहली बार चले थे ।
अब तो लक्ष्य को हासिल कर
जीवन को सार्थक कर लूं,
या फिर बंद कर दू किताबे
जीवन को निरर्थक कर दूं।
विपत्ति ने हर समय सीख दी
जहा बोल न पाए वहां चीख दी,
आवाजों से धरती गूंजती है
मेहनतकश के चरण लक्ष्य भी चूमती है ।
कवि सोती हुई प्रतिभा को जगा देती है
कितना भी आलस हो भगा देती है ,
टूटी हुई चेतना को वाणियों द्वारा
पुनर्निर्माण कर देती है ।
लक्ष्यों की तरफ गतिमान रहें
किसी की उपेक्षा को हृदय से न लें
देना है अगर किसी को उत्तर तो
अपनी सफ़लता के परिणाम से दे।
–रितेश मौर्य
जौनपुर, उत्तर प्रदेश
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