जौनपुर के लाल का हिंदी जगत में बड़ा नाम, मुंबई में संघर्ष कर बनाई अलग पहचान, पढ़िए दुबे सर की अनसुनी कहानी सिर्फ नया सबेरा पर | #NayaSaveraNetwork

नया सवेरा नेटवर्क

जौनपुर। 'मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती...' जी हां! जौनपुर की भी मिट्टी में भी कुछ ऐसी ही बात है जिसने अपने गर्भ से पद्मश्री स्वामी रामभद्राचार्य जी महाराज, फिंगर प्रिंट के जनक डॉ. लालजी सिंह, बॉलीवुड, भोजीवुड, टॉलीवुड और गोरखपुर के सांसद रविकिशन जैसी कई ऐसी हस्तियों को जन्म दिया, जिन्होंने न सिर्फ जिले का बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश का गौरव बढ़ाने का काम किया है। सर्वाधिक आईएएस, पीसीएस देने वाला देश का एकलौता गांव माधोपट्टी भी यही है। अब ज्यादा देर न करते हुए आज जौनपुर के एक और लाल से आपको मिलाते हैं जो हिंदी जगत में अपनी प्रतिभा के दम पर आज महाराष्ट्र जैसे प्रदेश पर राज कर रहे हैं। वो कोई और नहीं बल्कि डॉ. शीतला प्रसाद दुबे सर हैं। डॉ. दुबे, दुबे सर के नाम से जाने जाते हैं। महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष एवं HSNC विश्वविद्यालय के हिंदी अध्ययन मंडल अध्यक्ष, के.सी. महाविद्यालय के हिन्दी विभाग अध्यक्ष एवं शोध निर्देशक आचार्य डॉ. शीतला प्रसाद दुबे हिन्दी शिक्षा एवं साहित्य जगत का जाना पहचाना नाम है। 

जौनपुर (उत्तर प्रदेश) के मड़ियाहूं के रघुनाथपुर में 20 जनवरी 1958 में जन्म लेने वाले सुप्रसिद्ध साहित्यकार, रचनाकार, आलोचक डॉ. दुबे की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई. इसके पश्चात उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए मुंबई की ओर रूख किया. उन्होंने डॉ. सुधाकर मिश्र के मार्गदर्शन में 'जयशंकर प्रसाद का गीतिकाव्यÓÓ' विषय पर शोध कर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। इनकी दर्जन भर मौलिक, संपादित पुस्तकें तथा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इनके सैकड़ों लेख एवं शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। आकाशवाणी पर 40 से भी ज्यादा वार्ताएं तथा इनके लिखे कई रूपक भी प्रसारित हुए हैं। 

संभाल रहे महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष का भार

दुबे सर के मार्गदर्शन में अब तक 22 विद्यार्थियों ने डॉक्टरेट तथा 14 विद्यार्थियों ने एम.फिल की उपाधि प्राप्त की है। मुंबई विश्वविद्यालय हिन्दी अध्ययन मंडल की अध्यक्षता के साथ-साथ इन्होंने कई समितियों की अध्यक्षता के दायित्व का सफलता पूर्वक निर्वहन किया है। वहीं अन्य कॉलेज एवं विभिन्न विश्वविद्यालयों की कई समितियों में सदस्य तथा अध्यक्ष हैं। इन्होंने सैकड़ों राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में अध्यक्ष, प्रमुख वक्ता एवं विषय विशेषज्ञ के दायित्व का निर्वहन किया है। वर्तमान में वह महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष भी हैं।

खुद ही बताई संघर्ष भरी कहानी, जिसने पढ़कर आपकी भी आंखें हो जाएंगी नम

नया सबेरा डॉट कॉम से विशेष बातचीत के दौरान अपने जीवन से जुड़ा महत्वपूर्ण किस्सा साझा करते हुए दुबे सर ने बताया कि आज मेरा नाम मुझे मुंबई विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालयों के सर्वप्रथम प्रोफेसर के रूप में लिया जाता है तो मुझे याद आती है अपने संबंधियों और साथियों की वह राय जिसमें वे मुझे कुछ न कर पाने की तरह प्रस्तुत करते थे। एक बार ननिहाल में मेरे ही सामने माँ से उनकी चाची ने पूछा - तुम्हारा वो बुद्धू लड़का कुछ कर रहा है कि नहीं? माँ ने हँसकर कहा कि ज्येष्ठ पुत्र है भरोसा तो उसी का है। मेरे मन में यह भरोसा शब्द घर कर गया और मैंने तय किया कि कुछ भी करके इस विश्वास को सही साबित करना है। 5 भाइयों में सबसे बड़ा होने के नाते मुझ पर जिम्मेदारी ज्यादा थी, यह अलग बात है कि माँ ने मुझे कभी इसका एहसास नहीं होने दिया। १२वीं की परीक्षा देने के पश्चात सन १९७८ में मुंबई आना हुआ और इसके बाद मुंबई मेरी और मैं मुंबई का होकर रह गया। उन दिनों पिताजी दादर में एक छोटी सी दुकान चलाया करते थे। रहना, खाना सबकुछ उसी दुकान में था। कीर्ति कॉलेज में बी.ए. में प्रवेश के बाद मुझे वहां रह कर पढ़ना अटपटा लगता था, जिसे भांपकर पिताजी ने अप्रत्यक्ष रूप से कहा - बिना संघर्ष के शक्ति नहीं प्राप्त होती और मुंबई कमजोर को रुकने नहीं देती। मुझे यह बात ब्रह्मवाक्य की तरह प्रतीत हुई। इस बात ने मुझे पूरी तरह बदल दिया। माँ के दिए संस्कार और पिताजी की विवेकपूर्ण कर्मठता हर कदम पर मेरा संबल बनी रही।

'डॉ. सुधाकर मिश्र जी से मिलना भी एक सुखद संयोग'

दुबे सर ने नया सबेरा डॉट कॉम को बताया कि साधन के अभाव में भी मैंने मन में ठाना कि मुझे आगे बढ़ना ही है, और इसमें साथ दिया मित्र रवीन्द्र सिंह ने। बी.ए. अंतिम वर्ष में कीर्ति कॉलेज से के.सी. कॉलेज आना हुआ। इसी दौरान भाई रवीन्द्रसिंह ने मेरा परिचय एम.ए. तथा उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाले अन्य मित्रों से कराया। यहाँ से मेरे जीवन में एक नया मोड़ आया। के.सी. कॉलेज हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ. विनोद गोदरे जी ने यूनियन बैंक में चलने वाली केंद्रीय हिन्दी शिक्षण योजना (प्रवीण, प्रबोध, प्राज्ञ) में मुझे शामिल होने का अवसर दिया। इसके अंतर्गत बैंक के कर्मचारियों को राजभाषा हिन्दी का ज्ञान दिया जाता है। यहीं से मेरे अंदर का शिक्षक जागृत हुआ, जिसकी परिणति के.सी. कॉलेज में हिन्दी प्राध्यापक के रूप हुई। पी-एच.डी. करने के उद्देश्य से एलफिंस्टन कॉलेज में डॉ. सुधाकर मिश्र जी से मिलना भी एक सुखद संयोग से कम न था। उन्होंने पहले अच्छे शिक्षक के गुणों को आत्मसात करने के लिए कहा और फिर शोध के लिए 'जयशंकर प्रसाद का गीतिकाव्य विषय निश्चित किया।

'पुरानी पुस्तकें ढूंढ़ते कितनी शामें गुजरी होंगी याद नहीं'

उन्होंने नया सबेरा डॉट कॉम को बताया कि मित्रों के साथ घूमना, खूब पढऩा और मेहनत से कक्षा में पढ़ाना ये तीनों बातें मेरी आदत बन गईं। रविवार या अवकाश के दिन भी किसी न किसी से मिलना या किसी नई जगह घूमने की आदत ने मुझे बहुत कुछ सिखाया। राजाबाई टॉवर के पुस्तकालय और उसके बाहर लॉन में बैठकर पुस्तकें पढ़ना तथा बुद्धिजीवियों से बहस करना मेरी आदत बन चुकी थी। उन दिनों मैंने भारतीय दर्शन, मनोविज्ञान और कार्लमार्क्स के सिद्धांतों का विशेष अध्ययन किया। फाउंटेन के फुटपाथ पर पुरानी पुस्तकें ढूंढ़ते हुए मेरी कितनी शामें गुजरी होंगी याद नहीं। डेविड ससून पुस्तकालय के लॉन में बैठकर चाय की चुस्कियों के साथ पढ़ने का अलग ही आनंद था। रिदम हाऊस की केबिन में बैठकर घंटों मुकेश, लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी के गाने सुनना मेरी दिनचर्या बन चुकी थी। अध्यापन के दौरान ये सभी चीजें मेरी मददगार साबित होती हैं। 

'शोध के लिए एक जैसे विषय को नहीं चुना'

उन्होंने बताया कि हर विषय, व्यक्ति या वस्तु को अलग-अलग नजरिये से देखने, परखने एवं समझने की मेरी प्रवृत्ति आज भी है। इस प्रवृत्ति का ही प्रभाव है कि शोध निर्देशक के रूप में मैंने कभी भी शोध के लिए एक जैसे विषय को नहीं चुना। विद्यार्थियों से खुलकर बात करना, उन्हें अपने विचारों को रखने का पूरा अवसर देना मेरी कमजोरी मानी जा सकती है। मुझे इस बात का गर्व है कि मेरे विद्यार्थियों ने विभिन्न क्षेत्रों में सफलता के नये आयाम स्थापित किये हैं। प्राध्यापकीय पेशे को मैंने मात्र नौकरी के रूप में न लेकर पूरी संजीदगी से अपनाया है। अध्यापन के साथ ही कॉलेज एवं विश्वविद्यालय के प्राध्यापक संगठन (बुक्टू) में सक्रिय भागीदारी कर प्राध्यापकों को उनके अधिकारों के प्रति जागृत करने के कार्य ने मुझे अत्यंत आत्मसंतुष्टि प्रदान की है। यहाँ बुक्टू कार्यकारिणी के सदस्य और के.सी. कॉलेज भौतिक विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रो. शैलेन्द्र सिंह का उल्लेख करना आवश्यक है। यूनियन के कार्यकलापों के साथ साहित्य, समाज, राजनीति और मानव जीवन के गहन अध्येता के रूप में इन्हें देखा जा सकता है। किसी भी मुद्दे पर चर्चा-परिचर्चा के दौरान ये उन तमाम विषयों को स्पर्श करते हैं, जो मानव जीवन से गहरे जुड़े हैं। वैसे तो कॉलेज में मेरा हर किसी के साथ सौहार्दपूर्ण व्यवहार है, लेकिन अनुज शैलेन्द्र सिंह एवं बहन शारदा बालसुब्रमण्यन और मेरी तिकड़ी प्रसिद्ध है।

'निरन्तर सीखने की कोशिश'

उन्होंने बताया कि यह सब कर पाने की शक्ति मिलती है सहधर्मिणी गीत से। यह स्वीकार करने में मुझे कोई संकोच नहीं कि मैं जितना अव्यवस्थित हूँ वे उतनी ही व्यवस्थित हैं। मेरी पेशेगत प्रगति में प्रच्छन्न रूप से उनका महत्वपूर्ण योगदान है। गृहिणी होने के नाते वे साधिकार तारीफ के साथ मेरी कमजोरियों को रेखांकित करती रहती हैं, जिससे मुझे आत्म मूल्यांकन करने का अवसर मिलता है। सच कहूँ तो मुझे घर और बाहर दादा बनाया तो पौत्र सात्विक ने जन्म लेकर। उसके साथ खेलकर, बातें कर उसकी बाल सुलभ उत्कंठा को देखकर मैं अपने बचपन को जीने लगता हूँ। वह आत्मिक सुख वर्णनातीत है। पुत्र आलोक और पुत्रवधू उषा भी मेरे सुख के साधन जुटाने में प्रयत्नशील रहते हैं, लेकिन पौत्र सात्विक से प्राप्त आनंद का कोई पर्याय नहीं। हाँ इतना अवश्य है कि बच्चे हों या उम्रदराज, बौद्धिक हों या अनपढ़, शिक्षक हों या विद्यार्थी मैं सबके साथ बैठकर, बातें कर कुछ कह-सुन कर निरन्तर सीखने की कोशिश करता रहता हूँ।

प्रकाशित पुस्तकें        :

  • 1. जयशंकर प्रसाद का गीतिकाव्य
  • 2. छायावादी काव्य : संदर्भ वैविध्य 
  • 3. मध्यकालीन काव्य वैभव
  • 4. छायावाद एवं उत्तर काव्यालोक (महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी द्वारा नंददुलारे वाजपेयी पुरस्कार प्राप्त)
  • 5. साहित्य, समाज और मीडिया (संपादित),
  • 6. आदिवासी विमर्श और हिन्दी साहित्य (संपादित)
  • 7. अलका सरावगी का कहानी साहित्य
  • 8. अलका सरावगी का उपन्यास साहित्य.
  • 9. सुधाकर मिश्र अभिनंदन ग्रंथ (संपादित)
  • 10. भूमंडलीकरण और हिन्दी
  • 11. समकालीन हिंदी कथा साहित्य का मूल्यांकन  (संपादित)
  • 12. समकालीन हिंदी कथा साहित्य : कथ्य एवं चेतना - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में शताधिक आलेख प्रकाशित
  • 13. सुधाकर मिश्र के "रामोदय" का काव्यसौष्ठव का संपादन

संबद्धता            :     

  • सदस्य, हिन्दी अध्ययन मंडल, सेंट ज़ेवियर्स स्वायत्त महाविद्यालय, मुंबई
  • सदस्य, हिन्दी अध्ययन मंडल, के. जे. सोमैया स्वायत्त महाविद्यालय, मुंबई
  • सदस्य, अकादमी समिति, गुरुनानक खलसा कॉलेज, मुंबई
  • उपाध्यक्ष, हिन्दी प्रचार एवं शोध संस्थान
  • विशेष कार्यकारी अध्यक्ष, महाराष्ट्र शासन - 1995 से 1999
  • अकादमी के सदस्य, पूर्व संयोजक, पूर्व एवं वर्तमान कार्याध्यक्ष
  • चैयरमैन, BOS, हिंदी, HSNC यूनिवर्सिटी

पुरस्कार एवं सम्मान :         

  • हिन्दी सेवी सम्मान : 2015 हिन्दी साहित्य अकादमी, मॉरिशस
  • साहित्य शिरोमणि सम्मान : 2015 हिन्दी प्रचारिणी सभा, मॉरिशस
  • आचार्य नंददुलारे वाजपेयी पुरस्कार :  2013 म.रा.हि.सा. अकादमी 
  • विशिष्ट शिक्षक सम्मान : हिन्दी प्रचार एवं शोध संस्थान, मुंबई-2013
  • अचीवर ऑफ द ईयर 2005 के.सी. कॉलेज
  • पं. दीनदयाल उपाध्याय शिक्षक सम्मान- 2005
  • विशेष कार्यकारी अधिकारी, महाराष्ट्र शासन - 1995 से 1999

विशेष             :    

  • पूर्व अध्यक्ष, हिन्दी अध्ययन मंडल, मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई

संप्रति            :

  • कार्याध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी
  • आचार्य, पूर्व अध्यक्ष एवं शोध निर्देशक, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, के.सी. कॉलेज, चर्चगेट, मुंबई-


जौनपुर के लाल का हिंदी जगत में बड़ा नाम, मुंबई में संघर्ष कर बनाई अलग पहचान, पढ़िए दुबे सर की अनसुनी कहानी सिर्फ नया सबेरा पर | #NayaSaveraNetwork


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