ठंडी कितना सता रही है | #NayaSaveraNetwork


नया सवेरा नेटवर्क

ठंडी कितना सता रही है

भीतर भीतर तन में सिहरन 

मुंह में मन में ईश्वर सुमिरन 

तरुओं पर जो धूल जमी थी 

ओस बरस के बहा रही है 

वृष्टि, पवन दोनों ही एक हो 

ठंडी कितना सता रही है ।


शीतलहर कंपन के कारण 

धरती अम्बर सिमट रहे हैं 

कुहरे धुंध के अंधियारों में 

वे आपस में लिपट रहे हैं 

ओस, गलन और धुंध ये कोहरा

साथ पवन पश्चिम की देखो 

मिलकर ठंडक बढ़ा रही है 

ठंडी कितना सता रही है ।


अम्बर की बदली चादर सी 

दिनकर को ढक लेती है 

कभी वृष्टि तो छाया से वह 

धरा ठंड कर देती है 

चारों तरफ ठंड का साया 

बादल ओले बारिश मिलकर 

फसलों को भी गिरा रही है 

ठंडी कितना सता रही है ।


शीत ठंड से कांपे काया 

फिर भी मन खोजे है माया 

सूर्यातप का दरस नहीं 

देखो जिधर उधर ही छाया 

शीतलहर ये ठंड की मार 

निर्धन ओढ़े तन अखबार 

काया शीत से कंपा रही है 

ठंडी कितना सता रही है ।


जल की रानी सागरतल में 

देखो गोता खाए 

खिले पुष्प हरीतिमा देखकर 

सागर भी लहराए 

गांव गली हर घर के देखो 

चद्दर में लिपटी वो अम्मा 

सांझ अंगीठी जला रही है 

ठंडी कितना सता रही है । 


दिवस हुए छोटे-छोटे अब 

रातें लम्बी आई हैं 

चुभे अंग में पवन शूल सी 

ये सौगातें लाई हैं 

वस्त्र अलग हो काया से ज्यों 

तरुओ के तन से पत्तों को 

कुछ ऐसे ही गिरा रही है 

ठंडी कितना सता रही है ।


गिरिशिखरों पर हिम चद्दर 

लगती कितनी न्यारी है 

धरती फसल फूल से ढक 

दिखे रंग बिरंगी प्यारी है 

सांझ सवेरे चहूं दिशा में 

देखो धुन्ध छाया जो वो

दिन को भी रात्रि बना रही है 

ठंडी कितना सता रही है ।


हाथ पैर सब सुन्न हुए 

अब कुछ भी काम न आता 

यात्राओं का नाम ही सुनकर 

दिल ये घबरा जाता 

बाहर नहीं निकलता कोई 

गली सड़क सुनसान हुए 

घर में सबको बिठा रही है 

ठंडी कितना सता रही है ।


बच्चों की भूख मिटाने को 

चिड़िया दाना चुग जाती 

और ठंड से उन्हें बचाने को 

पंखों के बीच छुपाती 

घास फूस पर बैठ चहचहा 

अपने बिछौने को देखो वो 

कैसे ठंडा बता रही है 

ठंडी कितना सता रही है ।


धूप सुहानी आंगन की जब 

अंगों को छू जाए 

शीत सुशोभित मन्द पवन से 

तापमान खो जाए 

धूप की गर्मी शीत की ठंडी 

शीत गरम सबका 'एहसास' 

ये ठंडी कैसे दिला रही है 

ठंडी कितना सता रही है। 


उस नवजात को शीत गरम तो 

कुछ भी समझ न आता 

बच्चे का रोना ना सोना 

मां को कभी न भाता 

चुम्बन कर बच्चे की मां 

अपने तन से लिपटा करके 

मां बच्चे को सुला रही है

ठंडी कितना सता रही है ।

- अजय एहसास

अम्बेडकर नगर (उप्र)


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