अस्ताचलगामी भगवान सूर्य को अघ्र्य: हर किरण से बरसा आशीष | #NayaSaveraNetwork





नया सवेरा नेटवर्क

घाटों से लेकर तालाब-कुंडों पर बिखरी छठ की छटा 

श्रद्धालुओं ने डूबते सूर्य को नमन कर दिया अघ्र्य, उमड़ा आस्थावानों का सैलाब 

व्रती महिलाओं ने भगवान सूर्य की उपासना कर मांगी अपने संतान की लंबी उम्र, समृद्धि व परिवार की खुशियों की मन्नत 

हर जुबान पर छठ मईया के गीत ने वातावरण को भक्तिमय बना दिया 

पूरा शहर छठ के रंग में सराबोर नजर आया, हर तरफ उत्साह का माहौल है 

गंगा से लेकर वरुणा तक के किनारों पर आस्था का अलौकिक नजारा देखा गया 

बड़ी संख्या में लोग गंगा व नदी घाट पहुंचे 

आज उदयागामी सूर्य को अघ्र्य देकर होगा व्रत का पारण और पर्व का समापन 

किसी के माथे पर सूप-दउरा किसी के कांधे पर ईख 

सुरेश गांधी 

वाराणसी। पिछले दो वर्षों से लोक आस्था का महापर्व छठ को लेकर लोगों में उत्साह थोड़ा फीका पड़ गया था, लेकिन इस बार उत्साह चरम पर है. धर्म एवं आस्था की नगरी काशी में छठ की धूम है। बारी जब ढलते सूर्य को अर्घ देने की आयी तो घाटों पर चारों तरफ आशीर्वाद रूपी किरणें ही बरसती दिखी। बाट जे पूछेला बटोहिया, बहंगी केकरा के जाय..., कांच ही बांस के बंहगिया, बहंगी लचकत जाए... सूर्योपासना के पावन पर्व छठ के मौके पर शहर से लेकर देहात तक की फीजा में यह छठ का पारंपरिक गीत गूंजता रहा। रविवार को अस्ताचगामी सूर्य को पहला अघ्र्य देने के लिए नदी घाट व सरोवरों की ओर बढते कदम और हर जुबान पर छठ मईया के गीत ने वातावरण को भक्तिमय बना दिया। 

हर सख्श छठ के रंग में सराबोर नजर आया। किसी के माथे पर सूप-दउरा किसी के कांधे पर ईख। हर तरफ उत्साह का माहौल है। गंगा हो नदी, तालाब हो या कुंड के किनारे आस्था का अद्भुत अलौकिक नजारा देखा गया। बड़ी संख्या में लोग गंगा व नदी घाट पहुंचे और छठ पूजन कर छठ मैया के गीत गाते हुए व्रती महिलाओं ने दीप जलाकर अस्तलाचलगामी सूर्य को अघ्र्य प्रदान किया। इस तरह पूरे असीम श्रद्धा व आस्था के साथ श्रद्धालुओं ने भागवान भास्कर को पहला अघ्र्य अर्पित किया और अपने संतान की लंबी उम्र, समृद्धि व परिवार की खुशियों की मन्नत मांगी। 31 अक्टूबर सोमवार को उदीयमान सूर्य को अघ्र्य दिया जाएगा। इसके बाद व्रत का पारण और समापन होगा।  31 अक्टूबर को सूर्याेदय सुबह 6.27 बजे होगा। 

घाटों पर सुबह से ही आज नजारा आम दिनों से अलग हट कर था। दोपहर बाद छठ मइया के भक्त बड़ी संख्या में डाला उठाए गंगा समेत जल स्थलों की ओर कूच कर गए। सूर्य अस्त होते ही व्रतियों का सैलाब घाट पर उमड़ गया। सायंकाल घाटों पर छठ मइया के पावन गीत गाते, गुनगुनाते कमर भर जल में खड़े होकर भगवान सूर्य देव के डूबने का इंतजार किया। आसमान में जैसे ही डूबते सूर्य की लालिमा छाते ही सस्वर मंत्रों के बीच श्रद्धालुओं ने जलांजलि व दुग्धाजंलि समर्पित कर दिया। व्रतियों ने कमर तक पानी में पैठ कर भगवान सूर्य की प्रदक्षिणा भी की। इस दौरान घाटों पर अपार भीड़ लगी रही। ग्रामीण अंचलों में भी व्रतियों ने जोड़े नारियल, सेव, केला, घाघरा निंबू, ठेकुंआ से अघ्र्य दिया। इससे पहले घाटों पर बच्चों ने जमकर आतिशबाजी की। सोलह श्रृंगार में सजी-धजी व्रती महिलाएं और उनके परिजन मौसमी फलों से भरा सूप सिर पर उठाए दउरा और दीपों और गन्नों की ढेरियों से सुसज्जित सुशुभिताएं छठ की छटा बिखेर रही थी। घाटों पर आस्था, विश्वास व त्रिवेणी बह उठी। पूजन-अर्चन के दौरान नजारा अलौकिक रहा। 

अस्सी और दशाश्वमेध समेत विभिन्न घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटी। कहीं शहनाई बज रही है तो कहीं बैंड बाजे। इस विहंगम दृश्य को देखने के लिए दूर-दराज से तो लोग आए ही हैं लेकिन विदेशियों के लिए यह मेला किसी अचरज से कम नहीं है। बता दें, साफ-सुथरे सूप व डलिया में सेब, संतरा, केला, शरीफा, कंदा, मूली, गन्ना, नारियल के साथ ही माला-फूल, धूपबत्ती व दीपक सजाकर पूजन की तैयारी की। संतति प्राप्ति व आरोग्य-मंगल की कामना से भी महिलाओं ने व्रत रहते हुए घर के आसपास के पांच घरों में जाकर भीख में पैसा मांगा। लोकाचार के अनुसार इन्हीं पैसों से उन्होंने पूजन सामग्री व डाल तैयार किया। सायंकाल चंद्रदर्शन के पश्चात नमक रहित भोजन के तहत नए चावल और गुड़ से बनी बखीर अथवा लौकी की खीर व रोटी का भोग लगाया। दूसरी ओर जो इस पर्व पर सिर्फ डाल चढ़ाते हैैं, उन लोगों ने मौसमी फल, नारियल, डलिया, सूप, माला-फूल व पूजन सामग्री की खरीदारी की। 

देखा जाएं तो छठ डूबते सूर्य की आराधना का पर्व है। डूबता सूर्य इतिहास होता है, और कोई भी सभ्यता तभी दीर्घ जीवी होती है जब वह अपने इतिहास को पूजे। अपने इतिहास के समस्त योद्धाओं को पूजे और इतिहास में अपने विरुद्ध हुए सारे आक्रमणों और षड्यंत्रों को याद रखे। छठ उगते सूर्य की आराधना का भी पर्व है। उगता सूर्य भविष्य होता है, और किसी भी सभ्यता के यशस्वी होने के लिए आवश्यक है कि वह अपने भविष्य को पूजा जैसी श्रद्धा और निष्ठा से सँवारे... हमारी आज की पीढ़ी यही करने में चूक रही है, पर उसे यह करना ही होगा..क्योकि यह दिन, भगवान सूर्य की उपासना करते हुए प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने का अनुपम उदाहरण है। 

*समस्त जनपद वासियों को शारदीय नवरात्रि, दशहरा, धनतेरस, दीपावली एवं छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं - ज्ञान प्रकाश सिंह, वरिष्ठ भाजपा नेता व चेयरमैन - श्रीमती अमरावती श्रीनाथ सिंह चैरिटेबल ट्रस्ट - #NayaSaveraNetwork*
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