Poerty: अवसाद बहुत गहरा है.....!
नया सवेरा नेटवर्क
अवसाद बहुत गहरा है.....!
बचपन में हम सब.....!
खुशी मन से किताब मँगाते थे....
उन पर...अच्छे से अच्छा...
कवर चढ़ाते थे....फिर.....
अलमारी में क्रम से उन्हें सजाते थे...
किताब....कोई अंग्रेजी तो...
कोई हिंदी-संस्कृत सिखलाती....
कोई गणित-विज्ञान पढ़ाती...तो....
कोई दर्शन...समाज का करवाती....
कोई सदाचार का पाठ पढ़ाती,
कोई होती....राजनीति का पोथी...
कोई होती...धरम-करम की थाती....
कुल मिलाकर मित्रों....किताबों में...
जीवन का हर एक ककहरा था....
संग इनके मित्रों....सच मानो....
उन दिनों मन चंचल....और बदन....
हम सबका छरहरा था......
मित्रों.......!
अटपटे गोले...और...
आड़ी-तिरछी लाइनों से....
शुरू हुई जिंदगी....!
यात्रा में कई पड़ाव से गुजरती हुई,
अक्षर-शब्द-वाक्य और फिर....
पैराग्राफ-निबंध-कहानी से होती हुई,
उपन्यास और किताब हो गई.....
और अब....समझ में नहीं आता...
कि सहेज़ी हुई किताबों को.....!
रखना कितना पास है....और....
इन किताबों में रखा क्या खास है...?
समझ मे भी नहीं आता कि,
इन किताबों का.....!
कौन सा पन्ना कितना अहम है...
और किन-किन पन्नों पर....?
ध्यान देना महज एक वहम है....
मित्रों.....सच बताऊँ तो....
पन्ना क्या....यहाँ तो.....!
पूरी की पूरी किताब,
फटी हुई सी दिखती जाती है....
पहले के दिनों की.....!
किताब सजाने वाली बात,
बस....मन ही में धरी रह जाती है....
साफ देख रहा हूँ भाई....कि यहाँ....
जिंदगी की किताब में.....!
अवसाद बहुत गहरा है...
हर एक पन्ने का,
यहाँ अलग से हिसाब-किताब है...
और उस पर,
अलग-अलग पहरा है...
किताबी ज्ञान से अलग जाकर....
हर व्यक्ति हो गया जज़्बाती है...
वह भूल गया है यह कि.....!
यहाँ जिंदगी.....गाहे-ब-गाहे....
हमको-आपको-सबको......!
अपने हिसाब से आजमाती है....
अपने हिसाब से आजमाती है....
रचनाकार.....
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त, लखनऊ


,%20%E0%A4%A8%E0%A4%88%E0%A4%97%E0%A4%82%E0%A4%9C%20%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BE,%20%E0%A4%9C%E0%A5%8C%E0%A4%A8%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%20%20%E0%A4%AB%E0%A5%8B%E0%A4%A8%20%E0%A4%A80%207355%20358194,%2005452-356555.jpg)