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फिल्म धुरंधर : नारे लगाने से नहीं जागरूक रहने से जिंदा है देश भक्ति: डॉ मंजू

डॉ मंजू मंगलप्रभात लोढ़ा @ नया सवेरा 

मुंबई। फिल्म शुरू होने से पहले ही मन स्वतः नमन कर उठता है, उन अनदेखे धुरंधरों को,जो अपना नाम, पहचान, रिश्ते सब कुछ मिटाकर किसी और देश की ज़मीन पर हमारे चैन की नींद की कीमत चुकाते हैं।हम सुरक्षित रहें, इसके लिए वे हर पल मृत्यु से आँखें मिलाते हैं। साढ़े तीन घंटे की यह फिल्म दर्शक को बाँधकर रखती है। कई दृश्य ऐसे हैं जहाँ दिल दहल उठता है, यह सोचकर कि किस तरह पड़ोसी देश भारत के भीतर अपनी खुफिया जड़ें फैलाता हैं और उससे भी ज़्यादा डरावना सच यह कि उन्हें अपने ही देश के छिपे हुए गद्दारों का सहारा मिलता है। फिल्म मन में एक सवाल छोड़ती है कि क्या लोग अमर हैं?क्यों चंद सिक्कों, थोड़े से लालच के लिए

अपनी मिट्टी, अपनी माँ, अपने देश से ग़द्दारी कर बैठते हैं?अगर हर भारतीय यह ठान ले कि यह मेरा देश है और इसकी रक्षा मेरी भी ज़िम्मेदारी है,तो शायद 26/11 जैसी त्रासदियाँ इतिहास में ही सिमट जाएँ। अभिनय और निर्देशन फिल्म का अभिनय इसकी सबसे बड़ी ताक़त है। अक्षय खन्ना और रणवीर सिंह सचमुच बाज़ी मार ले जाते हैं।अक्षय खन्ना रहमान डकैत के रूप में एक खामोश, ठंडी और डर पैदा करने वाली उपस्थिति छोड़ते हैं। रणवीर सिंह बिना ज़्यादा संवादों के सिर्फ़ अपनी आँखों से पूरा दर्द, ग़ुस्सा और प्रतिबद्धता कह देते हैं। अर्जुन रामपाल, आर. माधवन, राकेश बेदी अपने-अपने किरदारों में पूरी ईमानदारी से ढले नज़र आते हैं।

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संजय दत्त की ख़ूँख़ार छवि कहानी में एक अलग ही भय और वज़न जोड़ती है।

निर्देशक आदित्य धर की निडरता काबिल-ए-तारीफ़ है। उन्होंने सड़े हुए, असहज और खतरनाक सच को

बिना किसी समझौते के परदे पर रखा है।

तकनीक, संगीत और माहौल कराची की गलियों में की गई शूटिंग,सब कुछ इतना वास्तविक लगता है कि दर्शक खुद को वहीं मौजूद महसूस करता है।बीच-बीच में पुराने गानों का इस्तेमाल फिल्म की रफ्तार को थामता है,बांधे रखता हैं,दर्शक को सांस लेने का मौका देता है। हर चैप्टर नया तनाव, नई परत और नया लक्ष्य खोलता है।कई जगह डर लगता है, ग़ुस्सा आता है,तो कई दृश्य आँखें बंद करने पर मजबूर कर देते हैं।

हाँ, हिंसा अधिक है

लेकिन शायद यही सच्चाई है। युद्ध और जासूसी की दुनिया कभी मुलायम नहीं होती। यह फिल्म सिर्फ़ मनोरंजन नहीं, चेतावनी और आत्ममंथन है। यह हमें याद दिलाती है कि देशभक्ति नारे लगाने से नहीं,जागरूक रहने से ज़िंदा रहती है। फिल्म का संदेश यही है कि यह दुश्मन को ही नहीं,हमारी अपनी कमजोरियों को भी उजागर करती है।धुरंधर उन फिल्मों में से है जो खत्म होने के बाद भी मन में चलती रहती हैं। इसके अगले भाग का इंतज़ार

सिर्फ़ कहानी के लिए नहीं,उस सच के लिए रहेगा,जिसे दिखाने का साहस बहुत कम लोग करते हैं।अगर जीवन की सच्ची और भयावह सच्चाई देखना चाहते हैं तो पिक्चर जरूर देखिए !

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