Poetry: जागा भारत का अभिमान
नया सवेरा नेटवर्क
जागा भारत का अभिमान
डॉ मंजू मंगल प्रभात लोढ़ा, वरिष्ठ साहित्यकार
शिखर के आगे और शिखर हैं, अब निरंतर उनको छूते जाना हैं।
"सुनहरा इतिहास रचा गया, चमका तिरंगे का मान
सैंतालीस बरस की साध में, जागा भारत का अभिमान ।
डी वाई पाटिल का मैदान, धड़कनों की धुन बना
जज़्बा ऐसा उमड़ा कि पूरा विश्व झुक गया।
सपनों ने हार नहीं मानी, पग-पग पर हिम्मत बोई
सपनों को सच होना क्या होता, भारतकी बेटियों ने दुनिया को बतलाया।
कैच लिया, फिर व्हीलचेयर पर बैठ भी गई
पर जज्बे की लौ दहकी, तन रुका मगर मन न रुका कहीं।
धुआंधार प्रहार हुए, कलाईयों में थी आग
एक-एक गेंद पर गूंजा भारत, हर दिल में लगा परचम का राग।
हरमनप्रीत की कप्तानी जैसे पर्वत की दृढ़ नज़र
हौसले की कमान थामे, बढ़ीं बेटियां निडर।
स्मृति मंधाना की नज़ाकत, शेफाली वर्मा की तड़प
104 रन की साझेदारी, तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज गया मैदान।
15वें ओवर की तीसरी बार पर वह छक्का,
लगा मानो कह रही हो दुनिया से, “अब भारत को कौन रोकेगा?”
एक और एक मिलकर बने ग्यारह, ग्यारह नहीं देवियां थीं
हर स्विंग में था साहस, हर स्ट्रोक में प्रार्थनाएं थीं।
नया इतिहास लिखा गया, दिलों में दीप जले,
भारत चौथा देश बना, महिला विश्व कप के मेले में ।
नमन उन बेटियों को, सलाम उनकी जीत को, सपने ऐसे हो जो सोने ना दे, सपने वही साकार होते हैं जो जागती आंखों से देखे जाए।
हो गया सपना सच्चा, परों ने नई उड़ान भरी,शिखर को छू लिया, आसमान को झुका दिया।"


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