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Poetry: परिवर्तन ऐसा....कि....!

नया सवेरा नेटवर्क

परिवर्तन ऐसा....कि....!

मुझे अभी भी याद हैं.....!

मेरे बचपन के दिनों में,

अगल-बगल से उठते हुए

हर एक सवाल......

छोटी-मोटी बातों पर,

घर-मोहल्ले,गाँव-देश में

जब-तब हुए....ढेर सारे बवाल... 

याद है मुझे....वह सब भी....!

जिसे लोग कहा करते थे,

खोपड़ी या जिअरा के जंजाल....

इसी कड़ी में....मुझे याद हैं....

वे लोग भी जो कहे जाते थे....!

गाँव-देश की भाषा में,

भडुआ-बहुरूपिया और दलाल....

इतना सब याद रखने का कारण है...

मिल न सका था मुझे तब,

भाषा-विद्या,सुर-लय-ताल....

बिठा न सका था मैं,

लोगों से कोई तुक-ताल....

इन्हीं कारणों के निवारण की.....!

कोशिशें...अभी भी जारी हैं....

लिहाजा जोड़ना चाहता हूँ,

सबसे ही....नजदीक का रिश्ता.....!

इसीलिए ले लेता हूँ....अक्सर....

घूम-फिर कर....सबके हाल-चाल...

बनने की अभिलाषा रखकर.....!

सबके लिए....कवच-ढाल....

पर यहाँ तो....दुनिया भी अजीब है...

अभी भी सब वैसे का वैसा ही है

सब के सब मिलते हैं.....!

यहाँ परेशान हाल-बेहाल....

कहने को तो विकास है....पर ...

बदले नहीं है यहाँ कोई सूरत-ए-हाल

हर रोज मिल ही जा रहे हैं यहाँ

भडुआ-चू...या और दलाल....

और तो और....!

परिवर्तन ऐसा....कि...

पहले तो कुछ मिल जाते थे...पर...

अब उँगली पर भी गिनने को....

नहीं मिलते हैं नमक हलाल.....

नहीं मिलते हैं नमक हलाल.....


रचनाकार.....

जितेन्द्र कुमार दुबे

अपर पुलिस उपायुक्त, लखनऊ

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