Varanasi News: संघ के शताब्दी वर्ष का डाक टिकट : राष्ट्र जीवन की कर्तव्यनिष्ठ यात्रा का सम्मान
संघ के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र के लिए गौरव का क्षण है : रमेशजी
डाक टिकट मात्र सरकारी औपचारिकता नहीं होती, यह समय और समाज के उस भाव को अमर करती है, जो आने वाली पीढ़ियों तक संदेश पहुंचाती है
सुरेश गांधी
वाराणसी। 1925 में विजयादशमी के दिन शुरू हुआ यह संगठन आज अपने 100 वर्ष पूरे कर रहा है। यह यात्रा किसी राजनीतिक सत्ता का नहीं, बल्कि कर्तव्य आधारित राष्ट्र सेवा का प्रतीक है। संघ ने समाज को यह सिखाया कि अधिकार मांगने से पहले कर्तव्यों को निभाना आवश्यक है। शाखाओं में स्वयंसेवकों को अनुशासन, सेवा, राष्ट्रप्रेम और त्याग का संस्कार दिया जाता है। यही कारण है कि समाज जीवन के हर क्षेत्र में संघ के कार्यकर्ता निस्वार्थ भाव से योगदान करते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी वर्ष पर डाक टिकट का विमोचन केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि उस संकल्प का प्रतीक है, जिसने संगठन को राष्ट्र जीवन की मुख्यधारा में एक अनुशासित और समर्पित शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित किया है। यह टिकट महज एक कागज़ का टुकड़ा नहीं, बल्कि उस ऐतिहासिक यात्रा का सम्मान है, जो बताती है कि संगठित होकर, कर्तव्य और अनुशासन के पथ पर चलने वाला समाज किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विमोचन अवसर पर कहा, संघ के शताब्दी वर्ष का यह डाक टिकट, भारत के उन मूल्यों का स्मरण कराता है, जो हमें कर्तव्य को सर्वोपरि मानने की शिक्षा देते हैं। यह टिकट एक संगठन की स्मृति नहीं, बल्कि राष्ट्र जीवन की उस ऊर्जा का प्रतीक है, जिसने भारत को आत्मनिर्भरता, अनुशासन और सेवा के मार्ग पर आगे बढ़ाया है। नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित इस समारोह में वातावरण अनुशासन और गरिमा से भरा हुआ था। मंच पर प्रधानमंत्री मोदी के साथ केंद्रीय संचार मंत्री, डाक विभाग के वरिष्ठ अधिकारी तथा संघ के प्रमुख पदाधिकारी मौजूद रहे।
जैसे ही टिकट का अनावरण हुआ, पूरे सभागार में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। उपस्थित जनों में स्वयंसेवकों, शिक्षाविदों, सांस्कृतिक क्षेत्र की हस्तियों और कई राज्यों से आए प्रतिनिधियों की उपस्थिति इस अवसर को ऐतिहासिक बना रही थी। हर चेहरे पर गर्व और उत्साह का भाव साफ झलक रहा था। इसी विषय पर आज तक, हिन्दुस्तान व जनसंदेश टाइम्स जैसे प्रतिष्ठित समचार पत्रों में काम कर चुके सीनियर रिपोर्टर सुरेश गांधी की विशेष बातचीत में संघ के काशी प्रान्त प्रचारक रमेश जी ने अपने विचार रखे। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश :-
प्रश्न : प्रधानमंत्री द्वारा संघ के शताब्दी वर्ष पर डाक टिकट जारी होने को आप किस रूप में देखते हैं?
रमेश जी : यह संघ के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र के लिए गौरव का क्षण है। डाक टिकट मात्र सरकारी औपचारिकता नहीं होती, यह समय और समाज के उस भाव को अमर करती है, जो आने वाली पीढ़ियों तक संदेश पहुंचाती है। संघ के शताब्दी वर्ष पर यह टिकट, भारत के राष्ट्र जीवन में अनुशासन, संगठन और कर्तव्य की परंपरा को मान्यता देने जैसा है।
प्रश्न : इसे आप संघ के कार्य और योगदान की स्वीकृति मानते हैं?
रमेश जी : बिल्कुल। संघ की यात्रा 1925 में शुरू हुई थी, और आज सौ वर्ष पूरे होने पर यह टिकट इस बात का प्रमाण है कि संघ केवल एक संगठन नहीं, बल्कि समाज जीवन की वह धारा है, जिसने राष्ट्र निर्माण के हर मोर्चे पर सकारात्मक योगदान दिया है। यह सम्मान उस सामूहिक तपस्या का है, जो लाखों स्वयंसेवकों ने निःस्वार्थ भाव से की है।
प्रश्न : क्या आप मानते हैं कि यह टिकट एक प्रतीकात्मक संदेश से आगे बढ़कर कुछ और है?
रमेश जी : हां, यह टिकट केवल अतीत का सम्मान नहीं, भविष्य का संकल्प भी है। यह याद दिलाता है कि संगठित होकर, अनुशासन और कर्तव्यनिष्ठा के साथ काम करने वाला समाज कोई भी लक्ष्य हासिल कर सकता है। जिस प्रकार संघ ने शिक्षा, संस्कृति, सेवा और राष्ट्रीय एकता के क्षेत्र में काम किया है, उसी तरह आगे भी यह टिकट प्रेरणा देगा।
प्रश्न : संविधान में कर्तव्य और अधिकार दोनों की बात की गई है। इस पर आपका दृष्टिकोण?
रमेश जी : भारतीय संविधान ने हमें अनेक अधिकार दिए हैं, लेकिन साथ ही मौलिक कर्तव्यों का भी उल्लेख किया है। संघ का दृष्टिकोण सदैव यही रहा है कि अधिकार तभी सुरक्षित रहते हैं, जब उनके पीछे कर्तव्यों की शक्ति हो। यदि नागरिक केवल अधिकारों पर जोर देंगे और कर्तव्यों को भूल जाएंगे, तो राष्ट्र का संतुलन बिगड़ जाएगा। संविधान ने हमें जीवन, समानता, अभिव्यक्ति और शिक्षा जैसे अनेक मौलिक अधिकार दिए हैं, लेकिन अनुच्छेद 51(ए) में उल्लिखित मौलिक कर्तव्यों का पालन किए बिना ये अधिकार अधूरे रह जाते हैं। महात्मा गांधी ने चेताया था, “अधिकार तभी सुरक्षित रह सकते हैं, जब उनके पीछे कर्तव्यों की शक्ति हो।” स्वतंत्रता आंदोलन में उन्होंने केवल आज़ादी का अधिकार नहीं मांगा, बल्कि स्वच्छता, सत्य, अहिंसा, चरखा, स्वदेशी और आत्मानुशासन जैसे कर्तव्यों को भी जीवन में उतारने का आग्रह किया।
प्रश्न : काशी जैसे सांस्कृतिक और धार्मिक नगर में इसका संदेश किस प्रकार गूंजेगा?
रमेश जी : काशी भारत की आत्मा का प्रतीक है। यहां से उठने वाला कोई भी संदेश दूर-दूर तक पहुंचता है। डाक टिकट के माध्यम से संघ का शताब्दी वर्ष काशी में भी एक नई चेतना जगाएगा। यह हमें याद दिलाएगा कि काशी केवल पूजा और परंपरा की नगरी नहीं, बल्कि अनुशासन और राष्ट्र सेवा की धारा का भी केंद्र है।
प्रश्न : आप व्यक्तिगत तौर पर इसे किस रूप में अनुभव कर रहे हैं?
रमेश जी : मुझे लगता है, यह टिकट हर स्वयंसेवक की साधना का प्रमाण है। यह हमें और अधिक निष्ठा और समर्पण से काम करने की प्रेरणा देता है। यह क्षण वास्तव में पूरे समाज के लिए ऐतिहासिक है।
प्रश्न : युवा पीढ़ी और समाज के लिए शताब्दी का संदेश क्या है?
रमेश जी : युवाओं को समझना होगा कि राष्ट्र निर्माण केवल सरकारों से नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग की भागीदारी से होता है। उनका कर्तव्य है कि वे अपने संस्कारों, परंपराओं और महापुरुषों के विचारों को आचरण में उतारें। शताब्दी वर्ष उन्हें यही संदेश देता है कि जब नागरिक कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन करेंगे, तब भारत विश्वगुरु के रूप में स्थापित होगा।
प्रश्न : प्रधानमंत्री मोदी द्वारा जारी टिकट को लेकर समाज में किस प्रकार का भाव है?
रमेश जी : यह टिकट गर्व और प्रेरणा दोनों का स्रोत है। यह केवल संघ का सम्मान नहीं, बल्कि उस कर्तव्यनिष्ठ भारतीय समाज का सम्मान है, जो अनुशासन और संगठन से राष्ट्र निर्माण करता है। आने वाली पीढ़ियाँ जब इस टिकट को देखेंगी, तो यह उन्हें कर्तव्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देगा।
संघ की 100 वर्षों की प्रमुख उपलब्धियाँ
राष्ट्रीय एकता का भाव : सांप्रदायिक सद्भाव और अखंड भारत की अवधारणा को मजबूत किया।
शैक्षिक व सामाजिक सेवा : विद्यालय, छात्रावास और सेवा परियोजनाओं के माध्यम से ग्रामीण-शहरी जीवन में बदलाव।
आपदा सेवा : भूकंप, बाढ़, महामारी जैसी परिस्थितियों में स्वयंसेवकों की त्वरित राहत व पुनर्वास सेवा।
संस्कृति संरक्षण : भारतीय परंपरा, भाषा, कला और गौरवशाली इतिहास के प्रचार-प्रसार में योगदान।
राष्ट्रीय राजनीति में प्रभाव : लोकतंत्र को सशक्त करने में अप्रत्यक्ष योगदान, जनसेवा और राष्ट्रहित को प्राथमिकता।
एक पत्रकार के नाते मेरा मानना है कि संघ की शताब्दी और प्रधानमंत्री मोदी द्वारा जारी स्मारक डाक टिकट वास्तव में एक ऐतिहासिक क्षण है। यह डाक टिकट केवल एक स्मृति चिह्न नहीं, बल्कि राष्ट्र जीवन की अनुशासनबद्ध यात्रा का प्रतीक है। यह टिकट कर्तव्य आधारित जीवन का शाश्वत प्रतीक बनकर दर्ज होगा। यह उस संदेश को पुष्ट करता है कि जब समाज संगठित होता है, तो असंभव लक्ष्य भी संभव हो जाते हैं। यह राष्ट्र के कर्तव्यनिष्ठ जीवन का वो दस्तावेज है, जो हमें याद दिलाता है कि अनुशासन और संगठन के साथ काम करने वाला समाज किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
प्रकृति और कर्तव्य
आज का मनुष्य संसाधनों का दोहन तो करता है, लेकिन संरक्षण को भूल जाता है। नदियां जिन्हें भारत माता का दर्जा देता है, वही नदियां प्रदूषण से कर