Poetry: यहाँ मुश्किलें तमाम हैं....!
नया सवेरा नेटवर्क
यहाँ मुश्किलें तमाम हैं....!
आकर गाँव में...देखो तो प्यारे....!
गली-रास्ते सभी हुए बियावान हैं.....
हर उम्र की परवरिश के...
जहाँ तरीके तमाम थे....
हर एक के लिए जहाँ...
होते...मज़बूत से लग़ाम थे....
जहाँ बाग और बागवान...दोनों...
कभी बेहद आबाद थे....
वही गाँव...आज हुआ वीरान है....
नहाने को जहाँ गाँव में....!
नदी-पोखर तमाम थे....
उसी गाँव में....आज प्यारे...
घर-घर में बने हमाम हैं....
पापी पेट के सवाल पर...ही सही...
या...आपसी प्रेम वश....
जहाँ सेवक...हमराह...मददगार...
ख़ुद ही मिलते तमाम थे.....
देख लो प्यारे....वहीं पर....
आज...मनरेगा मेहरबान है....
गीत-संगीत से जहाँ....!
कोठियाँ दिन-रात आबाद थीं...
गाँव के उन घरों में....
दीवार पर....टँगी टी वी में....!
सास-बहू....आती तमाम हैं....
गाँव में अब प्यारे...अनायास की...!
आपस में रंजिशें तमाम है....
माना कि पहले....बंदिशें बहुत थीं....
पर आज तो...यहाँ साजिशें तमाम हैं
गिरा कर किसी को....यहाँ....
अपने किसी दाँव से....!
तरक्की ख़ुद की हथियाने की प्यारे,
यहाँ ख्वाहिशें तमाम है....
मानो या न मानो आप प्यारे.....
गाँव में....मीठे बोल तो....!
अब अजनबी हो गए हैं ....
सच है यही कि....लोगों के बोल में...
आज....तपिश बेहद तमाम है...
इसीलिए....कहता हूँ बरखुरदार...!
खुद ही सम्भाल लो खुद को,
अपने गाँव-देश में प्यारे......
अब तो यहाँ गाँव में मित्रों.....!
कीचड़ भरी बारिशें तमाम है.....
मजलिसों का दौर दिखता नहीं यहाँ,
गर कहीं शुरू भी हुई तो.....!
ज़ाहिर है....यहाँ बे-अंदाज़ी तमाम है
मुफलिसी में भी प्यारे....
अब कट ना पाएगी जिंदगी यहाँ....
क्योंकि अब तो गाँव में....!
सुनने को ताने तमाम है....
देख लो तुम....खुद ही प्यारे....
उतर कर ज़मीन पर.....!
बदल गए है आज के गाँव सारे....
और...यहाँ मुश्किलें तमाम हैं....!
और...यहाँ मुश्किलें तमाम है....!
रचनाकार.....
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त,लखनऊ