Poetry: तेरे जाने के बाद
नया सवेरा नेटवर्क
तेरे जाने के बाद
जिस दिन से तुम छोड़ गये हो ,
दो-दो आंसू रो लेती हूं ।
अपने झोपड़-पट्टी में नित ,
दुबक-सुबक गम पी लेती हूॅं ।
नहीं बचा है सार यहाॅं जीवन का मेरे ,
घनी व्यथा कुछ इनसे, उनसे कह लेती हूं ।
उस दिन का जो चाॅंद दिखा था आंगन में,
अब देखूं तो आॅंख बंद मैं कर लेती हूॅं ।
बातें दिल की दबी रही थी जो पहले की
उमड़-उभड़ गर आयी तो समझा लेती हूॅं ।
लेकिन बस में नहीं रहे अब नयन हमारे
इनकी झरती धार ज्वार में बह लेती हूॅं ।
कुछ भी दिल में चैन नहीं ,बेकल रहती हूॅं
स्मृतियों के बादल रह-रह टकराते हैं
तड़-तड़ात द्युति विद्युत् से मैं डर जाती हूॅं
शेष बचा जो, वो भी इक दिन मिट जायेगा
जो गुंजलक तना है मेरे तन में, मन में
वह भी लौकिक जीवन पथ से घट जायेगा
चंद हृदय की बंदिश यह अर्पित करती हूॅं।
---मुरलीधर मिश्र
देवरिया/वाराणसी


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