Poetry: उपलब्धि...!
उपलब्धि...!
मुझसे...!
मेरे गाँव-देश-समाज के बच्चे...
कभी... खौफज़दा नहीं दिखते...
देखकर मुझको... दूर भी नहीं भागते
अक्सर... खिलखिलाकर...
अपने नन्हें हाथों की उँगलियों से,
मेरे माथे के बाल नोच लेते हैं...
नातेदार-रिश्तेदार और मेरे मित्र...!
कभी भी मुझसे नाराज नहीं होते...
गुरुजन-वृन्द देखकर मुझको...
मुदित हो जाते हैं... प्रसन्न हो जाते हैं...
मेरे दामन पर कोई दाग नहीं...
कचहरी की उलझन से...!
मैं एकदम मुक्त हूँ...
वैद्य-चिकित्सक को...!
घर आए जमाना हो गया है...
थाना-पुलिस से मेरा रिश्ता...!
ना काहू से दोस्ती,
ना काहू से बैर जैसा...
धरम-करम की गठरी मेरी...!
दिनों-दिन भारी होती जा रही है...
सबको पता है और सभी जानते हैं,
राजनीति का ककहरा भी...!
मैंने सीखा ही नहीं...
गाँव-देश के कुत्ते-बिल्ली,गाय-भैंस...
भेड़-बकरी और लोमड़-सियार...!
किसी से भी नहीं है मेरा बैर...
मेरे पड़ोसी को भी...!
कभी जरूरत ही नहीं पड़ी,
कि मनाये वह मुझसे अपनी खैर...
पड़ोसियों से तो...!
मैं मांग लिया करता हूँ...
उनके चूल्हे की आग... और...
नमक-तेल,धनिया-हल्दी-प्याज...
देकर उनको ऊँची आवाज़...
मानो या ना मानो प्यारे...
गाँव-देश-समाज में... मुझसे...!
कोई नहीं करता परदा...
अंदरखाने तक पहुँच है मेरी,
प्यारा है मुझे प्यारे...
मेरे गाँव-देश-समाज का...
हर एक घर... और... हर एक घरौंदा...
नदी-नाले, बाग-बगीचे, ताल-तलैया,
महल-मँड़ई, अरहर-गेहूँ-धान और
आलू-मकई और साग-सनई...
दूर नहीं हुआ हूँ...!
इनसे मैं अभी भी कत्तई...
अंदाज मेरा आज भी है,
वही पुराना गँवई...
मित्रों... यही है मेरी उपलब्धि... और...
मैं अपनी इस उपलब्धि पर...!
हर दम खुश रहता हूँ...
रचनाकार—— जितेन्द्र दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त, लखनऊ
![]() |
| विज्ञापन |

