पौर्वात्य -पाश्चात्य
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पौर्वात्य -पाश्चात्य
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नहीं पुरातन ,सत्य सनातन ज्ञान हमारा
काल खण्ड के, पृष्ठ भूमि पर जन्म तुम्हारा ।
शालभंजिका क्रीड़ा में प्रसवन की पीड़ा
जन्म तथागत ले लेता है बुद्ध हमारा ।
माया महा प्रसव करती है ज्ञान की धारा
अपनी कथा नहीं लिक्खे,पर वैभव सारा ।
नहीं समाता शौर्य राम इतिहास तुम्हारा
सब इतिहास राम में पाया जाननिहारा
रश्मिमंत देवासुर प्रणमित नभ का प्रखर प्रभाकर
हर दिन यहां उदित होता है बन करके दीवाकर
पूरब के हम वासी भानु उदय होता है
तूं पश्चिम है जहां भानु जा छुप जाताहै।
अपना तूं इतिहास लिखो छोड़ो जाने दो
तूं ससीम मुझको असीम जानो जाने दो
उत्तर प्रहरी राज हिमालय दक्षिण इन्दु सरोवर
पच्छिम में वह्लीक अवस्थित पूरब कपिल सरोवर
वेद उपनिषद् आरण्यक और ब्राह्मण शास्त्र पुराने
देव भूमि है द्वीप जम्बु पर सूमेरू
जग जाने
सिंधु सरस्वति गंग जमुन जल बहती पावन धारा
कण कण में शिव रचेबसे हैं सत्य अहिंसा नारा
भिन्न जाति पर चित्ति एक है एक आत्म है प्यारा
सुकृति भूमि में चाह रहे हैं देवा जन्म दुबारा
---मुरलीधर मिश्र
वाराणसी/देवरिया
15-10-2025
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