Article: बढ़ती आत्महत्याओं की घटनाएं, एक वैश्विक चुनौती-रोकथाम की सख़्त आवश्यकता

सभी देशों को आत्महत्या रोकथाम को अपनी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति का हिस्सा बनाना समय की माँग

आत्महत्या केवल व्यक्तिगत समस्या नहीं,बल्कि वैश्विक चुनौती हैँ,इसके समाधान के लिए सरकारों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों, समुदायों और परिवारों को मिलकर काम करना होगा। एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र 

नया सवेरा नेटवर्क

गोंदिया - वैश्विक स्तरपर मानव सभ्यता की प्रगति के साथ -साथ मानसिक,सामाजिक और आर्थिक जटिलताएँ भी बढ़ती गई हैं। इन्हीं जटिलताओं से जुड़ा एक अत्यंत गंभीर विषय है,आत्महत्या। यह केवल किसी व्यक्ति का निजी निर्णय नहीं होता,बल्कि इसके पीछे सामाजिक़ मनोवैज्ञानिक, सांस्कृतिक और आर्थिक कारकों का गहरा प्रभाव होता है। अंतरराष्ट्रीय स्तरपर आत्महत्या को सार्वजनिक स्वास्थ्य की सबसे गंभीर चुनौतियों में से एक माना जाता है।विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार, हर साल लगभग 7 लाख लोग आत्महत्या करके अपनी जान गंवाते हैं, जिसका अर्थ है कि हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति आत्महत्या करता हैँ। मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूं कि  इससे यह स्पष्ट होता है कि यह केवल व्यक्तिगत समस्या नहीं,बल्कि वैश्विक संकट है। जिसका समाधान अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सम्मिट बुलाकर करना समय की मांग है। बता दे भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति  की घोषणा की है। यह देश में अपनी तरह का पहला कार्यक्रम है,जिसमें वर्ष  2030  तक आत्महत्या  मृत्यु दर में 10 पर्सेंट की कमी लाने के लिये समयबद्ध कार्य योजना और बहु- क्षेत्रीय सहयोग शामिल है।यह रणनीति आत्महत्या की रोकथाम के लिये  विश्व  स्वास्थ्य  संगठन की दक्षिण-पूर्व  एशिया  क्षेत्र रणनीति के अनुरूप है।

साथियों बात अगर हम  आत्महत्या क्या है और क्यों की जाती है? किस देश में सबसे ज्यादा आत्महत्या होती है?इसको समझने की करें तो, आत्महत्या का सामान्य अर्थ है, व्यक्ति द्वारा जानबूझकर अपनी जान लेना। यह निर्णय किसी क्षणिक आवेग का नहीं, बल्कि लंबे समय तक चले मानसिक और सामाजिक दबाव का परिणाम होता है। डब्लूएचओ की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, आत्महत्या करने वालों में से लगभग 77 पर्सेंट लोग निम्न और मध्यम आय वाले देशों से होते हैं,जहाँ मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ सीमित होती हैं और सामाजिक कलंक के कारण लोग मदद माँगने से कतराते हैं। आत्महत्या के मुख्य कारणों में डिप्रेशन,बाइपोलर डिसऑर्डर, सिज़ोफ्रेनिया, नशे की लत, तथा सामाजिक अलगाव प्रमुख हैं। इसके अलावा रिश्तों में असफलता, बेरोजगारी, आर्थिकw तंगी,घरेलू हिंसा और युवाओं पर शिक्षा व करियर का दबाव भी आत्महत्या के प्रमुख कारक हैं।वैश्विक स्तर परआत्महत्या की दर हर देश में अलग-अलग है।डब्ल्यूएचओ की 2022 की रिपोर्ट बताती है कि लिथुआनिया दक्षिण कोरिया,रूस, गुयाना और जापान जैसे देशों में प्रति 1 लाख आबादी पर आत्महत्या दर सबसे अधिक दर्ज की गई है। उदाहरण के लिए, लिथुआनिया में यह दर लगभग 25.7 प्रति 1 लाख है, जबकि दक्षिण कोरिया में लगभग 20.2 प्रति 1 लाख। वहीं भारत और चीन जैसे देशों में कुल आत्महत्याओं की संख्या सबसे अधिक है,क्योंकि यहाँ जनसंख्या बहुत बड़ी है। भारत में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरब) 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, एक साल में 1.64 लाख से अधिक आत्महत्याएँ दर्ज की गईं, यांनें हर दिन औसतन 450 से अधिक लोग आत्महत्या करते हैं। इनमें सबसे अधिक संख्या दैनिक वेतन बोगियों, छात्रों और किसानों की है। जापान में आत्महत्या लंबे समय से सामाजिक समस्या रही है,जहाँ हर साल लगभग 20,000 से अधिक लोग जीवन समाप्त कर लेते हैं। 

साथियों बात अगर हम आत्महत्या केवल व्यक्तिगत समस्या नहीं, बल्कि सामाजिक चुनौती होने की करें तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह स्वीकार किया गया है कि आत्महत्या को केवल व्यक्तिगत समस्या मानना उचित नहीं है।डब्ल्यूएचओ और अंतर्राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम संघ (आईएएसपी) के विशेषज्ञ मानते हैंकि आत्महत्या दरअसल मानसिक,सामाजिक,आर्थिक और सांस्कृतिक कारकों का परिणाम है।2021 में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया कि आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं के पीछे गरीबी, सामाजिक असमानता, लैंगिक भेदभाव और शिक्षा का अभाव जैसी समस्याएँ भी प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं।युवाओं मेंआत्महत्या की दर विशेष रूप से चिंताजनक है।15-29 वर्ष आयु वर्ग में आत्महत्या मृत्यु का चौथा सबसे बड़ा कारण है। डिजिटल युग में साइबर बुलिंग, ऑनलाइन दबाव और सोशल मीडिया की अवास्तविक अपेक्षाएँ भी युवाओं को आत्महत्या की ओर धकेल रही हैं। 

साथियों बात अगर हम आत्महत्या रोकने के उपायों की करें तो शोध और डेटा संग्रह आत्महत्या रोकथाम की दिशा में सबसे महत्वपूर्ण कदम है। डब्लूयुएचओ की "मेन्टल हेल्थ अटलस 2020" रिपोर्ट बताती है कि दुनियाँ के 80 पर्सेंट से अधिक देशों में आत्महत्या से संबंधित डेटा उपलब्ध नहीं है या अधूरा है। इससे नीतियों का निर्माण कठिन हो जाता है। आईएएसपी लगातार इस दिशा में अनुसंधान और प्रशिक्षण को बढ़ावा दे रहा है। अमेरिका और यूरोप के देशों ने आत्महत्या रोकथाम पर व्यापक शोध कियाe है,जिससे यह साबित हुआ है कि कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी), साइकोसोशल सपोर्ट, हेल्पलाइन सेवाएँ और सामुदायिक सहयोग आत्महत्या रोकने में बहुत प्रभावी हैं।पेशेवरों को प्रशिक्षित करना भी इस दिशा में अत्यंत आवश्यक है डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाँ भर में प्रति 1 लाख लोगों पर औसतन केवल 13 मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर हैं, जबकि विकसित देशों में यह अनुपात बहुत अधिक है। इस असमानता के कारण निम्न और मध्यम आय वाले देशों में आत्महत्या रोकथाम चुनौतीपूर्ण बन जाती है। यदि डॉक्टर, शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता और पुलिसकर्मी आत्महत्या के संकेतों को पहचानने और सही समय पर हस्तक्षेप करने में प्रशिक्षित हों, तो कई जिंदगियाँ बचाई जा सकती हैं। 

साथियों बात अगर हम आत्महत्याओं को रोकने के लिए शिक्षा और संवाद की आवश्यकता सबसे मजबूत हथियार होने की करें तो, आईएएसपी और डब्लूयुएचओ दोनों ही यह मानते हैं कि सार्वजनिक जागरूकता से आत्महत्या की प्रवृत्ति को काफी हद तक कम किया जा सकता है। डब्लूयुएचओ की 2022 की रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया है कि मानसिक स्वास्थ्य पर संवाद बढ़ाने से आत्महत्या दर में 20 पर्सेंट तक की कमी लाई जा सकती है।आज भी अधिकांश समाजों में मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या को लेकर सामाजिक कलंक मौजूद है। लोग इस विषय पर बात करने से कतराते हैं।इसका परिणाम यह होता है कि पीड़ित व्यक्ति अकेलेपन और शर्मिंदगी का शिकार हो जाता है। युवाओं के बीच संवाद को बढ़ावा देना और उन्हें यह समझाना कि मदद माँगना कमजोरी नहीं बल्कि साहस है,अत्यंत आवश्यक है। स्कूलों और विश्वविद्यालयों में काउंसलिंग सेवाएँ, हेल्पलाइन नंबर, मानसिक स्वास्थ्य कार्यशालाएँ शुरू करना उपयोगी साबित हो सकता है। उदाहरण के लिए, दक्षिण कोरिया और जापान ने स्कूल स्तरपरमानसिक स्वास्थ्य शिक्षा लागू की है, जिससे आत्महत्या की दर कम करने में मदद मिली है। 


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साथियों बात अगर हम आत्महत्या की रोकथाम के वैज्ञानिक और सामाजिक उपायों की करें तो,आत्महत्या रोकथाम के लिए बहुआयामी उपाय आवश्यक हैं।डब्लूयुएचओ की "लाइव लाइफ" रणनीति (2021) में चार प्रमुख उपाय सुझाए गए हैं (1) हानिकारक साधनों की उपलब्धता को कम करना (जैसे कीटनाशक, आग्नेयास्त्र,दवाइयाँ), (2) मीडिया रिपोर्टिंग के लिए जिम्मेदार दिशानिर्देश बनाना,(3) किशोरों और युवाओं में सामाजिक व भावनात्मक कौशल विकसित करना,(4) जल्दी पहचान और सहायता उपलब्ध कराना।इन उपायों से आत्महत्या की दर में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है। उदाहरण के लिए, श्रीलंका ने कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाकर आत्महत्या की दर को 70 पर्सेंट तक घटा दिया। इसी तरह ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन ने हेल्पलाइन और काउंसलिंग सेवाओं का विस्तार करके आत्महत्या रोकथाम में सफलता प्राप्त की हैँ। 

साथियों बात अगर हम इसका रोकथाम दिवस मनाकर इसपर जबरदस्त नियंत्रण की करें तो,10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस  मनाया जाता है,आत्महत्या की समस्या वैश्विक है और इसका समाधान भी वैश्विक सहयोग से ही संभव है।डब्लूएचओ, आईएएसपी और यूएन लगातार आत्महत्या रोकथाम पर काम कर रहे हैं। जिसका उद्देश्य जागरूकता फैलाना और सामूहिक प्रयासों को बढ़ावा देना है।भविष्य की दिशा यह होनी चाहिए कि सभी देश आत्महत्या रोकथाम को अपनी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति का हिस्सा बनाएँ। डिजिटल तकनीक का उपयोग करके एआई आधारित हेल्पलाइन, 24x7 ऑनलाइन काउंसलिंग, मोबाइल एप्स विकसित किए जाएँ, ताकि संकट की घड़ी में लोग तुरंत मदद पा सकें। इसके अलावा आत्महत्या के प्रयास करने वालों को अपराधी मानने की बजाय रोगी समझा जाए और उन्हें उचित चिकित्सा एवं परामर्श दिया जाए। 

अतः अगर हम अपने पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि  इस प्रकार, आँकड़ों और अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों के आधार पर यह स्पष्ट है कि आत्महत्या केवल व्यक्तिगत समस्या नहीं है, बल्कि एक जटिल सामाजिक और वैश्विक चुनौती है। इसके समाधान के लिए सरकारों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों, समुदायों और परिवारों को मिलकर काम करना होगा। 


-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र 9226229318


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