Poetry: बापू.....!
नया सवेरा नेटवर्क
बापू.....!
जब भी कभी....किसी बात पर...
मैं या मेरा बचपन,
कोई ज़िद लेकर अड़ा....
देखते ही देखते...सामने ही सबके...
बापू ने गाल पर दो-चार थप्पड़...!
मुझको जड़ा ही जड़ा....
इस माया जगत में....!
हर इक गलत राह पर,
उनकी पारखी नजरों ने,
झट से मुझे तड़ा ही तड़ा....
समझ पाए हम भले देर से,
पर रंग चेहरे का मेरे मित्रों....!
वहीं का वहीं....उड़ा ही उड़ा....
कुछ कहने का ...यहाँ तक कि...
भाव अपना रखने का...!
सारा का सारा उत्साह,
ठंडा...वहीं पर पड़ा ही पड़ा...
देखकर बालपन के इस दौर को,
बड़ा ही आसान है प्यारे....!
कह देना...बापू को अपने....
गुस्सैल बेहद और बेहद कड़ा....
पर...उलट इसके प्यारे....!
देखा है मैंने....यह भी यहाँ...
बापू हमेशा ही....हम सबके लिए...
रहा धन वैभव का भरा सा घड़ा....
खुला हो सकता है जो कभी,
कभी धरती की गहराई में गड़ा....
छाया उसकी...शीतल ही रही हरदम
चाहे सूखा रहा हो या रहा हो हरा...
चाहे पास में खड़ा मिला हो या....!
कहीं कोने में हो पड़ा.....
लेकर गिला-शिकवा-शिकायत कोई
अपने बापू से जो...कभी कोई लड़ा..
सच मानिये....खुद ही उसने...!
काट डाला...खुद का अपना ही धड़ा...
कुछ ही दिनों में खुद को....
पाता है...वह धरती पर पड़ा...और..
कहते हुए दिखतें हैं लोग कि,
देखो बदबू दे रहा है....यह सड़ा-सड़ा...
और ज़्यादा क्या लिखूँ...मैं प्यारे..
बापू पर तो लिख सकता हूँ,
कई निबंध मैं बड़ा से बड़ा....पर...
सूक्त वाक्य वह आज कहता हूँ ...
जिसे अंगूँठी के नगीने सा....!
रखा है मैंने जड़ा....कि...
बापू तो कहते थे सदा...!
कि सुनो मेरे प्यारे...सुनो बेटे हमारे...
बाप की नजर में....!
बेटा कभी...नहीं हो सकता है बड़ा...
गूढ़ बात उनकी यह प्यारे ,
भले समझ ना आई थी....तब हमको
पर याद बहुत आई मुझे...
जब वो पावन हंस....!
मुक्त गगन में अकेला ही उड़ा....
सच कहूँ तो उसी दिन से प्यारे.....
ख़ुद-ब-ख़ुद विचार मन में आने लगा,
कि उठो यार अब दुनिया को समझो,
होना ही पड़ेगा...तुमको अब बड़ा....
होना ही पड़ेगा...तुमको अब बड़ा....
रचनाकार....
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त, लखनऊ