एससीओ शिखर सम्मेलन, वैश्विक शक्ति संतुलन और ट्रंप के खिलाफ़ नया पावर शो-एक मंच पर मोदी-पुतिन और जिनपिंग- दिखेगा शक्ति प्रदर्शन
एससीओ शिखर सम्मेलन में विश्व के बड़े नेता एक ही मंच पर मौजूद रहेंगे जो ट्रंप की टैरिफ नीति और उनके "अमेरिका फर्स्ट" एजेंडे के खिलाफ़ एक सामूहिक शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा है-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र
नया सवेरा नेटवर्क
गोंदिया - वैश्विक स्तरपर एससीओ शिखर सम्मेलन चीन के तियानजिन में हो रहा है, बदलते वैश्विक परिपेक्ष में इसपर पूरे विश्व की नजरें लगी हुई है।उधरभारत के पीएम ने जापान यात्रा के दौरान कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए और भारत-जापान संबंधों को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया।जापान में तकनीकी, व्यापारिक, रक्षा और बुनियादी ढाँचे से जुड़ी अभूतपूर्व उपलब्धियाँ हासिल करनेके तुरंत बाद पीएम सीधे चीन के तियानजिन पहुँचे, जहाँ 31 अगस्त 2025 से शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का वार्षिक शिखर सम्मेलन आरंभ हो रहा है। यह महज एक राजनयिक यात्रा नहीं बल्कि एशिया और विश्व राजनीति की दिशा तय करने वाला कदम माना जा रहा है। इस शिखर सम्मेलन में मोदी,शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन एक ही मंच पर मौजूद रहेंगे और यह उपस्थिति अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति और उनके "अमेरिका फर्स्ट" एजेंडे के खिलाफ एक सामूहिक शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखी जा रही है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, एससीओ शिखर सम्मेलन वैश्विक शक्ति संतुलन और ट्रंप के खिलाफ़ नया पावर शो-एक मंच पर मोदी-पुतिन और जिनपिंग- दिखेगा शक्ति प्रदर्शन।
साथियों बात अगर हम जापान में मोदी की कूटनीतिक जीत की करें तो,उनकी जापान यात्रा और उसके तुरंतबाद चीन के तियानजिन में होने जा रहे शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन ने एशिया और विश्व राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। जापान में भारत की ऐतिहासिक उपलब्धियों के बाद मोदी जब चीन पहुँचे तो यह केवल एक राजनयिक औपचारिकता नहीं बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन की दिशा बदलने वाला कदमसाबित हुआ।उनकी जापान यात्रा इस लिहाज से ऐतिहासिक रही कि भारत और जापान ने बुलेट ट्रेन,रक्षा साझेदारी, सेमीकंडक्टर निर्माण, अक्षय ऊर्जा और डिजिटल सहयोग जैसे क्षेत्रों में रिकॉर्ड स्तर के समझौतों पर सहमति जताई। जापान ने भारत को न केवल वित्तीय सहयोग बल्कि तकनीकी हस्तांतरण में भी बड़ा कदम उठाया। इन समझौतों ने एशिया में भारत की स्थिति को और मजबूत किया है।जापान पहले से ही भारत का रणनीतिक साझेदार है, लेकिन इस बार हुए समझौतों ने दोनों देशों को "भविष्य के सह-निर्माता" के रूप मेंस्थापित कर दिया है। इस सफलता के झंडे गाड़ने के बाद मोदी का चीन पहुँचना इस बात का प्रतीक है कि भारत अब केवल द्विपक्षीय रिश्तों तक सीमित नहीं, बल्कि बहुपक्षीय वैश्विक गठबंधनों में निर्णायक भूमिका निभाना चाहता है।
साथियों बात अगर हम चीन में एससीओ शिखर सम्मेलन की अहमियत की करें तो,चीन के तियानजिन में होनेवाला यह शिखर सम्मेलन ऐसे समय पर हो रहा है जब दुनियाँ अमेरिका की व्यापारिक नीतियों से असहज है। ट्रंप ने हाल ही में भारत, चीन, रूस और अन्य कई देशों पर भारी-भरकम टैरिफ लगाने की धमकी दी है। इसके जवाब में एससीओ देशों का यह मंच एकजुटता का संदेश देने जा रहा है। मोदी, जिनपिंग और पुतिन की मौजूदगी अपने आप में यह संकेत है कि एशिया और यूरेशिया के देश अमेरिका की नीतियों को चुनौती देने के लिए तैयार हैं। भारत का इस मंच पर सक्रिय होना भी दर्शाता है कि वह केवल अमेरिका पर निर्भर नहीं है, बल्कि बहु-ध्रुवीय विश्व व्यवस्था की ओर कदम बढ़ा रहा है।
साथियों बात अगर हम एससीओ सम्मेलन ट्रंप केखिलाफ एक पावर शो साबित होने की करें तो, शिखर सम्मेलन में मोदी, जिनपिंग और पुतिन की एकजुटता को पश्चिमी मीडिया ने पहले से ही "एंटी-ट्रंप पावर शो" करार दिया है। इन तीनों नेताओं की उपस्थिति अमेरिकी राष्ट्रपति को यह कड़ा संदेश देती है कि उनकी एकतरफा नीतियाँ अब विश्व को स्वीकार्य नहीं हैं। यह मंच दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या, सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं और सबसे सशक्त सैन्य ताकतों का प्रतिनिधित्व करता है। जब ये शक्तियाँ एकजुट होकर ट्रंप की टैरिफ नीति के खिलाफ खड़ी होती हैं, तो यह संदेश साफ़ है कि वैश्विक व्यापार और राजनीति केवल वॉशिंगटन की शर्तों पर नहीं चलेगातियानजिन सम्मेलन में जिनपिंग की अगुवाई में होने वाली "विक्ट्री परेड" में 26 से अधिक राष्ट्राध्यक्ष शामिल हो रहे हैं। इसे महज़ एक परेड नहीं बल्कि दुनिया की नई शक्ति-व्यवस्था का प्रदर्शन कहा जा रहा है। रेड कारपेट पर मोदी, पुतिन और जिनपिंग की मौजूदगी यह संकेत देती है कि अमेरिका और यूरोप के पारंपरिक प्रभुत्व के दिन अब चुनौती के घेरे में हैं। चीन इस सम्मेलन को अपनी कूटनीतिक जीत के रूप में दिखाना चाहता है, वहीं भारत इस मंच के ज़रिए संतुलित लेकिन मज़बूत भूमिका निभाने जा रहा है।
साथियों बात कर हम इस सम्मेलन के थ्रू अमेरिका को कड़ा संदेश देने की करें तो,एससीओ शिखर सम्मेलन से निकलने वाला सबसे बड़ा संदेश अमेरिका के लिए होगा। यह संदेश साफ़ है कि "हम आपके टैरिफ से डरने वाले नहीं हैं।" एससीओ के सदस्य देश और उनके साझेदार यह जताना चाहते हैं कि वे मिलकर न केवल अपने क्षेत्रीय हितों की रक्षा करेंगे बल्कि वैश्विक स्तर पर भी नई राह बनाएंगे। अमेरिका के 50 पर्सेंट टैरिफ के बावजूद भारत, चीन और रूस जैसी अर्थव्यवस्थाएँ मजबूती से साथ खड़ी हैं। यह संकेत है कि ट्रंप की नीतियाँ अब विश्व राजनीति को बाँटने में असफल हो रही हैं और इसके बजाय देश आपसी सहयोग के नए रास्ते खोज रहे हैं।
साथियों बात अगर हम विक्ट्री परेड और नई वैश्विक तस्वीर के रूप में देखने की करेंतो,जिनपिंग की अगुवाई में होने वाली विक्ट्री परेड केवल चीन की शक्ति का प्रदर्शन नहीं बल्कि सामूहिक एकता का प्रतीक है।इसमें शामिल 26 से अधिक राष्ट्राध्यक्षों की उपस्थिति यह दर्शाती है कि दुनियाँ अमेरिका की एकतरफा नीतियों से निकलकर सामूहिक नेतृत्व की ओर बढ़ रही है। भारत का इसमें शामिल होना विशेष महत्व रखता है क्योंकि भारत ने हमेशा संतुलित कूटनीति अपनाई है। अब वह खुलकर वैश्विक शक्ति संतुलन का हिस्सा बन रहा है। यह परेड आने वाले वर्षों में विश्व राजनीति का नया नक्शा खींचने वाली साबित हो सकती है।
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साथियों बात अगर हम अमेरिका में ट्रंप के खिलाफ माहौल बनने की करें तो,दिलचस्प बात यह है कि ट्रंप की टैरिफ नीति से सिर्फ बाहर की दुनिया ही परेशान नहीं है, बल्कि अमेरिका के भीतर भी उनके खिलाफ माहौल बन चुका है। अमेरिकी किसान, टेक कंपनियाँ और उपभोक्ता समूह लगातार विरोध जता रहे हैं कि टैरिफ ने उनकी लागत बढ़ा दी है और प्रतिस्पर्धा कमजोर कर दी है। ऐसे में जब बाहर की दुनिया ट्रंप के खिलाफ खड़ी हो और अमेरिका के भीतर भी उनकी नीतियों पर सवाल उठ रहे हों, तो यह माना जा रहा है कि तियानजिन सम्मेलन वैश्विक राजनीति में "टर्निंग प्वाइंट" साबित हो सकता है।
साथियों बात अगर कर हम वैश्विक गठबंधनों की नई तस्वीर,अमेरिका को कड़ा संदेश:"हम डरने वाले नहीं" की करें तो,एससीओ सम्मेलन से जो सबसे बड़ी आवाज़ निकलेगी, वह होगी-"टैरिफ हमें रोक नहीं सकते।"यह संदेश सीधे अमेरिका को है। भारत, चीन, रूस और अन्य देश यह बताना चाहते हैं कि वे विकल्प तैयार कर सकते हैं। नई मुद्रा व्यवस्था, वैकल्पिक व्यापार नेटवर्क,डिजिटलभुगतान तंत्र और क्षेत्रीय आपसी समझौते, ये सब अमेरिकी डॉलर और टैरिफ के प्रभाव कोकमजोर करेंगे। भारत की "प्लान 40" नीति (40 देशों के नए बाजार खोजने की रणनीति) पहले ही संकेत दे चुकी है कि टैरिफ के बावजूद भारत पीछे हटने वाला नहीं है।इस सम्मेलन से यह साफ हो गया है कि आने वाले वर्षों में वैश्विक गठबंधन नई दिशा लेंगे। नाटो और यूरोपीय संघ का प्रभाव पहले ही सीमित हो रहा है। ब्रिक्स और एससीओ जैसे मंच अब विकल्प बन रहे हैं। भारत-जापान साझेदारी, रूस- चीन करीबी और एशिया-मध्य एशिया का एकीकरण-यह सब मिलकर वैश्विक राजनीति का नया नक्शा खींच रहे हैं। यह स्थिति अमेरिका के लिए कठिन है क्योंकि उसकी पारंपरिक रणनीति "डिवाइड एंड रूल" अब काम नहीं आ रही।
साथयों बात अगर हम भविष्य का परिदृश्य की कपिल कल्पना करने की करें तो,एससीओ सम्मेलन और मोदी- जिनपिंग- पुतिन की तिकड़ी केवल ट्रंप विरोध तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि यह नई आर्थिक और सामरिक व्यवस्था की नींव रख सकती है। बहुध्रुवीय विश्व की ओर बढ़ते कदम से अमेरिका का एकछत्र वर्चस्व चुनौती के घेरे में आएगा। भारत के लिए यह अवसर है कि वह अपनी "रणनीतिक स्वायत्तता" को बनाए रखते हुए एक बड़ेशक्ति-गठबंधन का हिस्सा बने। रूस और चीन की साझेदारी के बीच भारत का संतुलनकारी रोल भविष्य में एशिया के शक्ति समीकरण को और मज़बूत बना सकता है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे किएससीओ शिखर सम्मेलन, वैश्विक शक्ति संतुलन और ट्रंप के खिलाफ़ नया पावर शो-एक मंच पर मोदी-पुतिन और जिनपिंग- दिखेगा शक्ति प्रदर्शनभारत क़ी यह महज एक राजनयिक यात्रा नहीं बल्कि एशिया और विश्व राजनीति की दिशा तय करने वाला कदम माना जा रहा है।
-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र 9226229318
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