Poetry: कागज और कलम साथ आए तो बनता इतिहास


नया सवेरा नेटवर्क

कागज और कलम साथ आए तो बनता इतिहास


–डॉ मंजू लोढ़ा, वरिष्ठ कवयित्री


खिड़की की मुंडेर पे बैठा,

एक कोरा काग़ज़ निहारता है।

बाहर की दुनिया रंगीन है,

और मैं... बस सफेद सा रह जाता हूं।


गाड़ियों की चहल-पहल,

बच्चों की किलकारी,

पेड़ों का झूमना,

और दिलों की भागदौड़…


कोई लड़ रहा है, कोई हँस रहा है,

कोई प्रेम में डूबा बाहों में बाहें डाले चल रहा है।


और मैं...?

बस बैठा हूं...

बिना किसी लफ़्ज़, बिना किसी रंग के।


काश... कोई आए...

मुझ पर कुछ लिखे...

अपने दिल की बात,

अपनी पीड़ा, अपनी कविता...

मुझे भी किसी कहानी का हिस्सा बना दे।


ऐ मेरे साज...

क्यों उदास है तू?

मैं हूं तेरी सखी — कलम।


तेरी सफेदी मेरा कैनवस है,

तेरी खामोशी मेरा सुर है।


तू कोरा है तो क्या हुआ?

मैं तुझ पर हर वो बात लिखूंगी,

जो दिल से निकलकर जुबां तक नहीं पहुंचती।


चल, आज हम मिलकर

किसी का दर्द उतारते हैं,

किसी का सपना सँवारते हैं।


तू ना होता, तो मैं अधूरी थी।

और मैं ना होती,

तो तू बस एक पन्ना भर था।


पर जब हम साथ होते हैं…

तो दुनिया बदलती है


जब कागज़ और कलम साथ आते हैं,

तो इतिहास बनता है।

कविता जनमती है,

विचार गूंजते हैं।


क्रांतियाँ उठती हैं,

प्रेम पत्र लिखे जाते हैं,

डायरी में छुपे जज़्बात बह जाते हैं।


ये सिर्फ़ वस्तुएं नहीं,

ये इंसान की आत्मा के विस्तार हैं।

कागज़ अगर दिल है,

तो कलम उसकी धड़कन है।


और जब दिल और धड़कन साथ होते हैं,

तो जीवन में संगीत भर जाता है।


जब भी कोई कोरा कागज़ देखो,

या कोई पुरानी कलम उठाओ,

तो याद रखना…

इनमें छिपी है एक दुनिया,

बस उन्हें साथ लाने की देर है।

कागज कलम और श्रोता जब मिल जाते हैं तब और भी कुछ अनोखा हो जाता है, जज्बातों की एक नई दुनिया बस जाती हैं।

9thAnniversary: उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ, जौनपुर के जिला उपाध्यक्ष राजेश सिंह की तरफ से नया सबेरा परिवार को 9वीं वर्षगांठ की बहुत-बहुत शुभकामनाएं



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