तुम जैसी.....!
–जितेंद्र कुमार दुबे अपर पुलिस उपायुक्त ,लखनऊ
नया सवेरा नेटवर्क
तुम जैसी.....!
मेरे आने की आहट सुनकर....!
तेरा...घूँघट में...ख़ुद ही शरमाकर...
दरवाजे के पीछे छुप जाना....
लाख ललक के बाद भी...!
सबसे बाद में ही मिल पाना....
वह भी सबकी चोरी से...
आज भी मुझे याद है.....
बदन में लेकर उष्ण प्रवाह....!
तप्त सांस,सजल आँखें गहरी अथाह
दिखाने पर जिनको.....!
डॉक्टर जरूर यही कहता,
बढ़ा हुआ है ब्लड प्रेशर....
मानता तो था मैं भी यही....पर....
मुझे याद है.... तू कहती थी न...
समाज में हुआ नहीं जाता है थेथर...
किसी अजनबी के आने पर....!
ननद या देवर को बुलाने का,
तुम्हारा वह निराला अंदाज....
कभी रसोई वाले चमचे से,
कभी दरवाजे की कुण्डी से....
कितना सुंदर सा...बनाया था रिवाज
खो ही गया है प्यारी....!
तुम्हारे बाद से....यह अद्भुत रिवाज..
पर ....मुझे तो अब भी याद है....
तुम्हारे सहज-सुंदर श्रृंगार पर....!
हमेशा लज्जा रही जो भारी...
बस इसी कारण ही तो....
हमने करी थी हमेशा मनुहारी....
तुम्हारी पायल के घुँघरू से,
होती थी जो सुबह शुरू....
सच मानो...मुझे अब भी याद है...
रात में तुम्हारा इंतजार भी....!
खत्म कराते थे न....यही घुँघरू....
मर्जी तुम्हारी...मानो या ना मानो...
चली गई है....रोटी की मिठास,
चूल्हे-चौके के संग-संग....!
फुकनी भी अब दिखती है उदास...
देखने को अब कभी नहीं मिलता....
घूँघट में चूल्हे के पास,
आग जलाने को परेशान....!
तेरा वह चेहरा हताश-निराश....पर...
लिए मुख पर अद्भुत मुस्कान-प्रकाश
अब तो...देखकर सूप-चलनी...और.
ओखल-मूसर,जाता-चक्की.....!
नई बहुरिया....सौ फ़ीसदी पक्की...
हो जाती है हक्की-बक्की....
तब तो तुम थी और तेरी फितरत थी
जिसे इन सब की जरूरत थी....
इसी बहाने सुनने को मिल जाता था
सोहर,कजरी,चैता जैसा गीत-संगीत
मुझे आज भी बख़ूबी याद है....
तुम्हारे लिए तो होती थी,
बच्चों में अकसर मारामारी
अब तो....नही दिखती है....
किसी के भी आगे-पीछे...!
सजती हुई....बच्चों की फुलवारी...
नहीं मिलती है...किसी के बक्शे में...
किशमिश-मिसरी-बतासा...या फिर..
गुड़ही-गुड़िया प्यारी-प्यारी...
मुझे तो अब तक याद है सब कुछ...
पर....गज़ब का परिवर्तन....
ज़माने में हुआ है प्यारी....
सच क्या है....पता नहीं मुझको....!
पर.... अब के दौर में....
तुम जैसी....नहीं दिखती है नारी....!
तुम जैसी....नहीं दिखती है नारी....!