Poetry: सुबह की बेला में..!



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सुबह की बेला में.....!

हर रोज सुबह की बेला में...!

जब शरीर यह "लोहिया" जाता है

सच बताउँ प्यारे मित्रों...

पिंजरे का कैदी पंछी...

होकर मुक्त....उड़े गगन में जैसे...

कुछ वैसे ही.....!

मन आज़ाद परिंदा हो जाता है....

यह अलग बात है प्यारे....कि....

पहले मन पर आलस होता है भारी,

कुछ पल को दिखती है बेहद लाचारी

औ....कुछ पल रहती चाल नशीली...

पर...यह भी सच है प्यारे मित्रों....

अगले पल में ही.....हर बात....

होती जाती है....मस्त-जोशीली....

ज्यों ही चढ़ता है.....!

यहाँ की हरियाली का सुरूर...

बढ़ जाता है प्यारे....खुद का गुरुर....

कदम-कदम पर मिलते यहाँ,

जो खिले-खिले से फूल....!

खुद आप बताओ मित्रों ...कि...

इस शोभा में...कष्ट हृदय का...!

कौन नहीं जाएगा भूल......

तर-ब-तर भले पसीने से,

होवे कितना ही कोई...पर.. 

विश्राम यहाँ....कभी नही चाहे कोई...

खिला-खिला सा ही हरदम दिखता...!

यहाँ चेहरा हर कोई...

शिकवे-गिले या बैर-शत्रुता,

एक दूजे से ना....यहाँ रखता कोई...

बस देख-देख लोगों की मुस्कान....!

मन बाग-बाग हो जाता है....

यहीं तेज चाल में चलते-चलते...!

बीच पार्क पटरी पर...चौचक खड़ा...

दिखता है जो इंजन का धड़ा....

देख-देख इसको मित्रों,

ज़िन्दगी....पटरी पर लाने को....!

हर मन धीरे से लामबंद हो जाता है..

घण्टे भर के इस हलचल से,

सच मानो कुछ ही देर सही...पर...

शरीर यहाँ...जीवन-जंज़ालों से...

एक बार तो...आज़ाद हो जाता है...

इतना ही नहीं....गौर करो तो प्यारे...

हँसी-ठिठोली के बीच...भले ही...

जूस करेला,जामुन,नीम,आँवला... !

बेहद ही कड़वा हो पर...इनसे तो...

जीवन जिंदाबाद हो जाता है...

इसीलिए कहता हूँ प्यारे...जीवन में...

संग मित्रों का हरदम बना रहे,

रंग जीवन का सदा हरा रहे....

सब हरदम भरें चौकड़ी,

कहीं किसी से ना दिखलाए....

जीवन में कोई भी हेकड़ी...क्योंकि...

गर छूटी इनमें से जो कोई कड़ी....!

विद्वानों का कहना है प्यारे...

झुक जाती है माथे की पगड़ी....

और...जीवन मुर्दाबाद हो जाता है....

अब ज्यादा और कहूँ क्या मित्रों....!

बस एक बात और सुनो तुम प्यारे...

सुबह-सुबह में...यहाँ आने भर से...

यार-दोस्तोँ के गरियाने भर से....

बहुतों का तन लोहा और मन....!

समाजवाद हो जाता है.... 

बहुतों का तन लोहा और मन....!

समाजवाद हो जाता है....

(लोहिया पार्क की सुबह पर एक काव्यात्मक संस्मरण)

रचनाकार.....

जितेन्द्र कुमार दुबे

अपर पुलिस उपायुक्त,लखनऊ

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