Poetry: दोस्ती | Naya Sabera Network
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दोस्ती
चंद ही दोस्त है मेरे,
मैं ज़्यादा भीड़ नहीं रखता हूँ।
लोगों को रिझाने की ख़ातिर ,
दुआ- ताबीज़ नहीं रखता हूँ॥
शहर के शोर में, यूँ ही नहीं,
बहलता है दिल मेरा॥
मैं तन्हाई में भी अपना ,
इक मुकम्मल आसमान रखता हूँ॥
घर छोटा सा है मेरा ,
जिसमें मुहब्बत और ईमान रखता हूँ॥
मैं अपने दोस्तों के लिए,
वफ़ा के सब सामान रखता हूँ॥
कोई आये जो देखे ,
मेरे दिल की गहराई॥
मैं बड़े सलीके से, अपने दोस्तों को
दिल में रखता हूँ॥
प्रियंका सोनी
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