UP News: डॉ. प्रिया सक्सेना ने ऑस्ट्रेलिया के 10वें विश्व पुरातत्व सम्मेलन में पढ़ा शोधपत्र
निर्भय सक्सेना @ नया सवेरा
बरेली। महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति विभाग में सह प्रोफेसर डॉ. प्रिया सक्सेना को ऑस्ट्रेलिया के डार्विन शहर में हुए 10वें विश्व पुरातत्व सम्मेलन (डबलू ए सी -10) में भाग लेकर "भारतीय कला में प्रतीकात्मकता के माध्यम से कथा समावेशिता: एक अवलोकन" पर अपना शोध पत्र पढ़ा।ऑस्ट्रेलिया में हुआ यह सम्मेलन पुरातत्व के क्षेत्र में वैश्विक नीति निर्माण, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और शोध को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है जिसमें 70 से अधिक देशों के प्रतिनिधि भाग लिया है। यह सम्मेलन 22 से 28 जून 2025 तक फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी और चार्ल्स डार्विन यूनिवर्सिटी के नॉर्दर्न इंस्टीट्यूट द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है।
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इस सम्मेलन में डॉ. सक्सेना ने शोध पत्र "इमब्लम ऑन दा मूव सेशन" में पढ़ा। भारतीय कला सदियों से प्रतीकों के माध्यम से गूढ़ अर्थों और कथाओं को दर्शाने का माध्यम रही है। यह प्रतीकवाद केवल सौंदर्य तक सीमित नहीं है, बल्कि उसमें धार्मिक, दार्शनिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कहानियाँ समाहित होती हैं। प्राचीन पुरा स्थलों से प्राप्त मूर्तियों औऱ कथा पैनल का अध्ययन किया गया है जिसमें कला के माध्यम से धार्मिक समावेशिता का चित्रण किया गया। डॉ प्रिया द्वारा प्रस्तुत शोधपत्र के माध्यम से विश्व के सभी शोधकर्ता न केवल भारतीय प्राचीन कला को समझे बल्कि यह भी जान सके कि हमारी सांस्कृतिक विरासत कितनी समृद्ध और विविधतापूर्ण रही है। यह अध्ययन इतिहास को जीवंत रूप में देखने का एक अत्यंत प्रभावशाली माध्यम है।
इस सम्मलेन से वैश्विक ऐतिहासिक दृष्टिकोण को भी नये आयाम मिले है। इससे भारत को वैश्विक सांस्कृतिक धरोहर का केन्द्र बनने, विदेशों में भारतीय विषयों पर रिसर्च फैलाने, भारतीय तत्वों को विश्व सभ्यता में जोड़ने और सांस्कृतिक संवाद बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ज्योतिबा फुले विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. के पी सिंह ने डॉ. सक्सेना को इस उपलब्धि पर बधाई देते हुए कहा, "डॉ. प्रिया सक्सेना का शोधपत्र न केवल उनके व्यक्तिगत शोध कौशल को दर्शाता है, बल्कि विश्वविद्यालय की अकादमिक उत्कृष्टता को भी रेखांकित करता है।
इस सम्मेलन के प्रमुख आकर्षण में ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी समुदायों की कला, संगीत और 65 हजार वर्ष पुरानी परंपराओं का प्रदर्शन और पुरातात्विक स्थलों के विशेष भ्रमण आदि कार्यक्रम सम्मिलित हैं।चयनित शोध पत्रों का स्प्रिंगर द्वारा प्रकाशित किया जाएगा। डॉ. सक्सेना की भागीदारी से भारतीय पुरातत्व और कला इतिहास को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा मिलेगी।
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