Jaunpur News: सहचर हिंदी संगठन ने प्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु प्रभाकर की जयंती पर उन्हें याद करते हुए की पुस्तक परिचर्चा
नया सवेरा नेटवर्क
विश्व हिंदी संगठन से समन्वित सहचर हिंदी संगठन, नई दिल्ली (पंजी.) द्वारा हर महीने 'पुस्तक परिचर्चा कार्यक्रम के तहत विष्णु प्रभाकर जी की जयंती पर विशेष आयोजन रखा गया। 21 जून 2025, दिन- शनिवार को शाम 7 बजे डॉ. विष्णु गोविंदराव राठोड़ द्वारा लिखित पुस्तक विष्णु प्रभाकर के नाटकों में अभिव्यक्त जीवन मूल्य पर लाइव ऑनलाइन परिचर्चा हुई, जिसमें देश भर के साहित्यकारों ने जुड़कर विद्वानों को सुना।
आदरणीय अर्चना प्रभाकर जो श्री विष्णु प्रभाकर जी की सुपुत्री हैं,वे कार्यक्रम से जुड़ी और उन्होंने सहचर हिंदी संगठन द्वारा हर साल किए जाने वाले इस कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि मूलतः वे अपने को कहानीकार मानते थे। मानवीय मूल्यों को प्रभाकर जी न सिर्फ़ लिखा बल्कि ताउम्र जिया और हमें जीवंतता सिखाया। रंगमंचीय नाटकों के साथ ही साथ रेडियों नाटक के क्षेत्र में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
इस पुस्तक के लेखक डॉ. विष्णु राठोड़ ने बताया कि डॉक्टर नाटक पढ़ने के बाद उनके मन में जिज्ञासा का भाव उत्पन्न हुआ और उन्होंने निश्चय किया कि विष्णु प्रभाकर जी के समग्र अध्ययन के पश्चात इस पुस्तक को लिखा और पाठकों के बीच रखा।
दिल्ली से जुड़े डॉ. हिरण्य हिमकर ने कहा कि किताब में संगोपांग विवेचन किया है। स्वतंत्रता से पहले उन्होंने लिखा। उनका साहित्यिक काल लंबा रहा नाटक की एक विशेषता है कि उन्होंने छोटे छोटे वाक्य में अपने सोच को स्पष्टता को दर्शाया। आवारा मसीहा पढ़ रहे थे तो मन में प्रभाकर जी वहाँ नहीं थे, थे तो केवल शरतचन्द्र। समाज, विचार, व्यक्ति यह त्रिस्तर है प्रभाकर जी के रचनाओं की। व्यक्ति ही समाज का निर्माण करता है और मूल्यों को लेकर चलता है। प्रभाकर जी के नाटक में गणतंत्र की बात दिखलाई देता है। देश और लोकतंत्र सबसे ऊपर है । अंत में उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में बड़ा सूक्ष्म विवेचन किया गया। इस तरह किताब काफ़ी उपयोगी बन पड़ी है।
कार्यक्रम में महाराष्ट्र से जुड़ी डॉ.शेख शहेनाज़ अहेमद ने किताब पर अपने विचार रखते हुए कहा कि नेहरू की वसीयत में आज की सभी परिस्थिति देखने को मिलती है। उनके नाटकों में सभी सामाजिक मूल्य देखने को मिलते है जो व्यक्ति एवं समाज को मार्गदर्शित करता है। प्रभाकर जी गाँधी जी से बहुत प्रभावित थे इस लिए उनके नाटकों में भी दिखलाई पड़ता है। विश्वबंधुत्व के भाव भी सभी नाटकों में दिखलाई पड़ता है। कई नाटकों के उदाहरण देते हुए उन्होंने अपने वक्तव्य को पूर्णता दी।
महाराष्ट्र से प्रो. देवीदास क.वामणे ने बताया पारिवारिक जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए प्रभाकर जी ने 14 साल तक भाषा सीखा और आवारा मसीहा जैसा अद्भुत रचना रचा वह केवल उनके दृढ़ निश्चयी होने का प्रमाण है। उनके रचनाओं का विषय ही हुआ करता था संक्रमण काल और उसमें हो रहे मानवीय मूल्यों के विघटन को उजागर करता है। भारत के बदलते सामाजिक, नैतिक, पारिवारिक विघटन को दर्शाता है। राठोड़ जी ने इन सभी का सूक्ष्म विवेचन पुस्तक में किया है। पीढ़ियों के वैचारिक संघर्ष भी नाटक की विषय-वस्तु भी है। यह बात उन्होंने टूटते परिवेश रचना के संबंध में अपनी बात रखी। कहानियों पर अपनी बात रखते हुए कहा कि अंतर्जातीय विवाह की समस्या का जिक्र किया।
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कार्यक्रम की अध्यक्षता अतुल प्रभाकर ने की।अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में उन्होंने कहा कि मूलतः विष्णु प्रभाकर जी मूलतः कहानीकार अपने को मानते थे। उनका मानना था कि नाटक मंच से किया गया संवाद भी कहानी तो ही है। आगे उन्होंने कहा अतुल जी कि हमारा संयुक्त परिवार था और बाद में जो संयुक्त परिवार के हो रहे विघटन को देखते हुए नाटकों की रचना की। उनके साहित्य में सत्य घटनाओं को काल्पनिकता का पुट देकर उन्होंने कलम चला। मनोवैज्ञानिक उथल-पुथल भी विष्णु प्रभाकर ने अपने रचनाओं में इसे भी केंद्र में रखकर नाटक, कहानी रचा।
डॉ. संतोष सुभाषराव कुलकर्णी,जो महाराष्ट्र से हमारे बीच रहे उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित सम्मानित वक्तागणों का आभार प्रदर्शित किया। महाराष्ट्रा से ही डॉ.पल्लवी भूदेव पाटील ने इस कार्यक्रम का सफल सूत्र-संचालन किया। इस पुस्तक परिचर्चा में दिल्ली से डॉ. आलोक रंजन पाण्डेय, अध्यक्ष, सहचर हिंदी संगठन,गुजरात से डॉ. सुशीला व्यास,दिल्ली से डॉ. आरती पाठक, यू .पी .से डॉ. छवि सांगल, राजस्थान से बबीता काजल जी, असम से डॉ. अर्चना जी, आगरा से डॉ. राधा शर्मा, जयपुर से डॉ. दीपिका विजयवर्गीय, आगरा से डॉ. कंचन गुप्ता, प्रयागराज से डॉ. ऋतु माथुर, नांदेड़ महाराष्ट्र से दीपक पवार जी के साथ ही बंगलौर से डॉ. गगन कुमारी हलवार, महाराष्ट्र से ही डॉ. पढ़रीनाथ पाटिल,डॉ. प्रकाश शिंदें जी, अरजापुर से, डॉ. नीलू सिंह जी, डॉ. पूनम श्रीवास्तव जी उत्तर प्रदेश से जुड़े तथा कार्यक्रम संपन्न हुआ।
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