आईवीआरआई ने रचा इतिहास: भारत में पहली बार स्वदेशी तकनीक से कुत्ते का सफल कूल्हा प्रत्यारोपण

आईवीआरआई ने रचा इतिहास: भारत में पहली बार स्वदेशी तकनीक से कुत्ते का सफल कूल्हा प्रत्यारोपण

निर्भय सक्सेना @ नया सवेरा 

बरेली। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, बरेली (आईवीआरआई) के वैज्ञानिक डॉ. रोहित कुमार एवं उनकी टीम ने देश में पहली बार स्वदेशी तकनीक से विकसित कूल्हा प्रत्यारोपण की सफल सर्जरी कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। इस कूल्हा प्रत्यारोपण की खासियत यह है कि यह पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक से विकसित किया गया है। अब तक कुत्तों के लिए आर्टिफिशियल हिप भारत में उपलब्ध नहीं था। यदि किसी कुत्ते को आर्टिफिशियल हिप की आवश्यकता होती थी, तो उसे केवल विदेश से ही मंगवाया जाता था, जिसका खर्च कम से कम 5 लाख तक आता था। 

आईवीआरआई के वैज्ञानिकों ने आर्टिफिशियल हिप बनाने के लिए पिछले लगभग 3 वर्षों से एक सुनियोजित अध्ययन करके विशेष रूप से भारतीय कुत्तों के अनुरूप सीमेंटेड पद्धति का कूल्हा ही नहीं, बल्कि उसमें उपयोग होने वाले उपकरणों को भी विकसित किया। 

आईवीआरआई ने रचा इतिहास: भारत में पहली बार स्वदेशी तकनीक से कुत्ते का सफल कूल्हा प्रत्यारोपण

डॉ. रोहित कुमार एवं उनकी तीम ने इस कार्य को एक चुनौती के रूप में लेते हुए शुरुआत में शहर के प्रसिद्ध ह्यूमन ऑर्थो सर्जन डॉ. आलोक सिंह की मदद कई बारीकियों को जानने का प्रयास किया। डॉ. आलोक सिंह और बरेली मेडिकेयर फर्म के श्री योगेश सक्सेना एवं देवेश सक्सेना जी की तकनीकी सहायता से गुजरात की लाइफ ऑर्थो केयर कंपनी से कुत्तों के लिए आर्टिफिशियल कूल्हा और उसमें उपयोग होने वाले उपकरणों को विकसित किया गया है। 

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तकनीकी डिजाइन और आकार निर्धारित करने का कार्य ने डॉ. टी साई कुमार एमवीएससी शोध कार्य और डॉ. कमलेश कुमार टी एस को पीएचडी शोध कार्य हेतु दिया। यह कार्य ए आई एन पी- डी आई एम एस सीए (डिमस्का) परियोजना के अंतर्गत डॉ. रोहित कुमार, डॉ. अमरपाल, डॉ. ए.सी. सक्सेना और डॉ. ए. एम. पावड़े की टीम द्वारा किया गया। डॉ. अमरपाल ने बताया कि इस तरह का कार्य देश में पहली बार एक सुनियोजित अध्ययन करके किया गया है और पहली सर्जरी देहरादून के, दूसरी बरेली के तथा तीसरी संभल पुलिस के कुत्तों में इसकी सफल सर्जरी कर उसे नया जीवन दान दिया गया है। डॉ. रोहित बताते हैं कि विकसित किया गया कूल्हा काफी सस्ता है और देश के स्वान मालिकों को इसके द्वारा कम खर्च पर उत्कृष्ट इलाज भविष्य में दिया जा सकेगा।

इस उपलब्धि पर संस्थान निदेशक डॉ त्रिवेणी दत्त ने पूरी टीम को इस कीर्तिमान के लिए शुभकामनायें दी तथा इस तकनीक को जल्द से जल्द देश के स्वान पालकों को उपलब्ध कराने एवं इस तकनीकी को इंडस्ट्री को हस्तांतरित करने हेतु प्रेरित किया।

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