Poetry: जीना नहीं है मुझको.....!

Poetry: जीना नहीं है मुझको.....!
नया सवेरा नेटवर्क

जीना नहीं है मुझको.....!


मॉर्निंग वॉक से लेकर,

लंच-डिनर की टेबल तक....

महिलाओं में है...अब तो यह चर्चा...

चयन बहू का...कैसे किया जाय...?

चिंता हर पल इस बात की,

कहीं नीले ड्रम वाली...या फिर...

हनीमून पर मेघालय जाने वाली...!

कुल कलंकी ना मिल जाय....

चिंता की इसी कड़ी में....!

लड़कों में भी....चर्चा है ये आम...

शादी-ब्याह हम नहीं करेंगे....!

सुन लो डैडी-मॉम....

चिन्ता में मनुहार करें....और...

बारम्बार कहें यह मॉम....!

देखो प्यारे...खुद जैसी ही...

सोशल-सुशील...बहू मैं लाऊँगी...

सब अच्छा-अच्छा सा....!

उसको मैं सिखलाऊँगी,

बस बात मेरी तुम जाओ मान.....

संग-संग यह भी बतलाती मॉम...!

गृहस्थ आश्रम है सबसे प्यारा...

संतो ने बतलाया है....यह ज्ञान...

सुन-सुन कर रोज की बातें

सच मानो अब तो.....

सब पर बिफ़र रहा है नौजवान....

अक्सर पूछा करता है वह....!

कम से कम यह तो बतला दो मॉम...

कैसे जान सकोगी तुम.....?

उसका पिछला वाला ज्ञान....

कैसा रहा चरित्तर उसका....?

किसका-2 करती थी वह गुणगान....

कैसे पहचानोगी तुम....?

गऊ है वह ...या है बिल्ली,श्वान...

ऐसे प्रश्नों की जिज्ञासा सुन-सुन..

अटक-अटक सी जाती है जान...

संतति की अभिलाषा में....!

झुके -झुके से दिखते हैं बापू जान....

समझ ना पाते हैं कुछ भी....कि...

इसको समझाऊँ या खुद समझूँ आप

समझाने को जो दोनों मिलकर बैठे,

बोल रहा होता है वह सीना तान...

भाव कभी ना देना अनजाने को,

खोजो कोई नात-हीत अपनी पुरान

कुछ तो बचा हुआ होगा उसमें....!

रिश्ते-नातों का अभिमान....

कुछ बंधन से जो जकड़ी हो...!

कभी न अपनों से जो अकड़ी हो....

पल्लू-आँचल माँ-दादी का....!

जो बचपन से ही पकड़ी हो....

बात-विचार और संस्कारों से....!

जो अच्छी-खासी तगड़ी हो.....

अपने कुल-खानदान की.....!

बचा रखी जिसने पगड़ी हो....

संग में इसके तय यह भी करना....!

ना वह पागल-मूढ़- नकचढ़ी हो....

और...तभी फिक्स मेरी घुड़चढ़ी हो..

ऐसी ही कोई सलोनी ढूँढ़ के,

उसको ही बनाना तुम सब....!

मेरे जीवन की जान....क्योंकि...?

किसी भी दशा में मुझको.....!

नहीं गवांनी है अपनी जान....

और कहूँ क्या तुमसे मै....?

जग जाने है यह ज्ञान.....

चिंता...चिता समान...और....

यहाँ...जान है तो....है जहान....

सुनो-समझो और मानो....!

तुम सब मेरी यह छोटी सी बात....

वरना...नहीं समाना है मुझको....!

घर वाले नीले रंग के ड्रम  में...

नहीं इंटरेस्ट है कोई मेरा.....!

"मेघालय" जैसे...कार्यक्रम में...

मजे से जी लूँगा मैं....इस जग में ....!

खुद अकेले के ही श्रम में....

गृहस्थ आश्रम है सबसे सुंदर...!

जीना नहीं है....मुझको इस भ्रम में...

जीना नहीं है....मुझको इस भ्रम में...

रचनाकार.....

जितेन्द्र कुमार दुबे

अपर पुलिस उपायुक्त,लखनऊ

Admission Open 2025-26: ANJU GILL ACADEMY | Katghara, Sadar, Jaunpur  | Naya Sabera Network
विज्ञापन



नया सबेरा का चैनल JOIN करें