बचपन जो कभी लौटकर नहीं आता...

–डॉ. मंजू मंगलप्रभात लोढ़ा, वरिष्ठ साहित्यकार

नया सवेरा नेटवर्क

एक था बचपन… कितना चंचल, कितना बेफिक्र!

वो बचपन जिसमें हम प्रतियोगिता की दौड़ में कभी शामिल नहीं होते थे। न तो हमारे माता-पिता हमसे कहते थे कि हर हाल में कक्षा में प्रथम आना है, न ही हर विषय में अव्वल होना अनिवार्य था। पाँच साल की उम्र तक तो स्कूल का नाम भी नहीं जानते थे — खेल ही हमारी दुनिया थी।

मुझे याद है, जब मैं बोर्ड की परीक्षा देने जाती थी, तो कितना डर लगता था… मैं पिताजी से कहती, “मुझे कुछ नहीं आता है” — और रोने लगती।

पर पिताजी का जवाब होता:

"बेटा, अगर कुछ नहीं आता है, तब भी परीक्षा में जरूर शामिल होना। कुछ नहीं आता तो बस प्रश्न पत्र पर  अपना नाम और रोल नंबर लिख कर आ जाना ।"

उनकी यह बात मेरे भीतर एक नया आत्मविश्वास भर देती थी।

और फिर मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा… आज तक किसी परीक्षा में असफल नहीं हुई।


आज के समय में हर बच्चे को हर क्षेत्र में 'सर्वश्रेष्ठ' होना है — चाहे वह पढ़ाई हो, खेल हो, या कला।

बचपन अब एक कोर्स बन चुका है, जिसमें हर घड़ी प्रतियोगिता है, हर कदम तुलना है।

बच्चा अभी जीना सीख भी नहीं पाता और उसे ‘अच्छा परफॉर्म’ करने की दौड़ में धकेल दिया जाता है।

यह भी पढ़ें | National: बीएसए बनने के लिए क्रिकेटर रिंकू सिंह के सामने हैं कई मुश्किलें

हमारा बचपन खुला था — खुले मैदान, खुला आकाश।

हम गुल्ली-डंडा खेलते-खेलते पूरा गाँव घूम आते थे।

ना धूप की परवाह, ना गर्मी का डर।

आज का बच्चा बिना ए.सी. के बैठ भी नहीं सकता, और नन्ही-सी उम्र में आंखों पर चश्मा चढ़ जाता है।


हमारी गर्मी की छुट्टियाँ लंदन या स्विट्जरलैंड नहीं होती थीं — हमारा गाँव ही हमारा स्वर्ग था।

मामा का घर, बड़ा-सा आंगन, आम के बगीचे, गलियों की खट्टी-मीठी कहानियाँ…

आज के बच्चे गाँव से अपरिचित हैं।

उनकी छुट्टियाँ अब "हिल स्टेशन" या "विदेश यात्रा" का नाम बन चुकी हैं।

संयुक्त परिवार था, चाचा-ताऊ, फूफी-बुआ, सब साथ रहते थे।

एक थाली में खाना, एक आंगन में हँसी।

आज तो हर किसी का अपना कमरा, अपना बाथरूम — और भावनाएँ? वो कहीं सिमट कर रह गई हैं।

सखी-सहेलियाँ अब स्क्रीन पर चैट बन गई हैं, और बर्थडे पार्टियाँ दिखावे का आयोजन।


हमारे समय में छोटी-छोटी खुशियाँ बड़े-बड़े अर्थ दे जाती थीं।

हमारे चेहरे पर मुस्कान देख खुश हो जाते थे।

आज इंसान की मुस्कान को भी जूम करके देखना पड़ता है।


हमें तो हर काम में फुर्सत ही फुर्सत थी।

और आज के बच्चों के पास समय ही नहीं।

छुट्टियों में भी ट्यूशन, कोचिंग, ऑनलाइन क्लासेस…

यह कैसी शिक्षा है जिसमें जीवन का ज्ञान ही गुम है?


माता-पिता पढ़े-लिखे नहीं थे, पर अनुभवों के सागर थे।

मां खड़े-खड़े हिसाब कर लिया करती थी — आज कैलकुलेटर के बिना लोग जोड़-घटाना नहीं कर पाते।

हम बीस तक की पहाड़ियाँ गा लेते थे, अब दो-दो का पहाड़ा भी मोबाइल पर ढूँढा जाता है।


आज के बच्चों के पास हर सुविधा है — एक्स्पोज़र है, संसाधन हैं।

पर साथ ही तनाव भी है, भय भी है, अकेलापन भी है।

बचपन जैसा सहज कुछ नहीं होता, पर वह छिनता जा रहा है।

हमने जीवन को बहुत जटिल बना लिया है।


यदि आने वाली पीढ़ी को एक सुंदर, स्वस्थ और सार्थक जीवन देना है —

तो हमें ही शुरुआत करनी होगी।

बच्चों को सिखाना होगा कि जीवन में केवल नंबर नहीं, संबंध, संस्कार, और संतुलन भी जरूरी हैं।

उन्हें बताना होगा कि असफलता अंत नहीं — एक अनुभव है।


कहीं ऐसा न हो कि हम उन्हें दुनिया तो दे दें, पर जीवन जीने की कला न दे सकें।

Gahna Kothi Bhagelu Ram Ramji Seth | Kotwali Chauraha Jaunpur | 9984991000, 9792991000, 9984361313 | Olandganj Jaunpur | 9838545608, 7355037762, 8317077790 And RAJDARBAR A FAMILY RESTAURANT in RajMahal Jaunpur
Ad



नया सबेरा का चैनल JOIN करें