दु:ख के बादल | Naya Sabera Network

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नया सवेरा नेटवर्क

दु:ख के बादल

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दु:ख से घिरे हुए बादल , 

रुक रुक कर बरस रहे हैं। 


कोना कोना भीग रहा , 

एक एक करके  अपने , 

हमसे बिछड़ रहे हैं। 


धैर्य  हमारा टूट रहा , 

अपनों से नाता छूट रहा। 


किस्मत की मारी , 

हाय! बनी बेचारी ! 

कलेजा फट रहा है, 

दिल तड़प रहा है। 


गर्जना हो रही है, 

एक के ऊपर एक

बिजली गिर रही है , 

कैसे संँभालें चेतना !

अंँखियों से आंँसू बह रहे हैं। 


मानवता दहलीज पे

सांँसें तोड़ रही है, 

विकल्प है तो  बतलाओ ! 

कोई है ! तो समझाओ , 


भरोसा उठ गया है, 

तड़प तड़प के ,

आंँचल सिमट रहा है। 

(मौलिक रचना ) 

चेतना सिंह , प्रयागराज , उत्तर प्रदेश

३०/४/२०२५, ११:३१ पूर्वाह्न


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