एडेड कॉलेजों को सरकारी कॉलेज में बदल देना चाहिए : डॉ. प्रशांत त्रिवेदी | Naya Sabera Network
नया सवेरा नेटवर्क
उत्तर प्रदेश सरकार को एडेड कॉलेजों ( इंटरमीडिएट और डिग्री कॉलेज) को सरकारी कॉलेजों में बदल देना चाहिए। इस प्रकार के कॉलेज अपने उद्देश्य को भूल चुके हैं और यहां ऐसी समस्याएं उत्पन्न हो गईं हैं कि इन संस्थाओं के शैक्षणिक वातावरण में अत्यधिक गिरावट ला दी हैं।
वस्तुतः एडेड कॉलेजों की स्थापना समाज में शिक्षा के प्रसार के लिए समाज के कुछ महापुरुषों द्वारा समाज के सहयोग से की गई थी। जिसे बाद में सरकार ने अनुदान देना प्रारंभ कर दिया। इन कॉलेजों का संचालन सामान्यतः एक सोसाइटी के द्वारा निर्मित प्रबंधन समिति के द्वारा किया जाता है। व्यावहारिक रूप से प्रबंधन समिति का सचिव जिसे प्रबंधक कहा जाता है, उसी के द्वारा इन कॉलेजों का संचालन किया जाता है। प्रबंधन समिति के अध्यक्ष की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
कॉलेजों के लिए जमीन लोगों ने दान में दी थी। इसकी बिल्डिंग्स भी समाज के सहयोग से बनाई गई, बाद में सरकार ने भी इसके लिए सहयोग राशि दी। एडेड होने के बाद सरकार इन कॉलेजों के शिक्षकों और कर्मचारियों का वेतन भी देना प्रारंभ कर दिया। अंग्रेजी राज में सरकार शिक्षा पर ज्यादा पैसे खर्च नहीं करती थी और आजादी के बाद सरकार के पास ज्यादा पैसा था नहीं। इसलिए इन संस्थाओं ने शिक्षा के प्रसार में अहम भूमिका निभाई क्योंकि इन संस्थाओं में न्यूनतम शुल्क पर शिक्षा दी जाती है।
लेकिन आज इन संस्थानों का उद्देश्य बदल गया है। आज इन संस्थाओं के प्रबंधक निजी कॉलेजों की भांति इन कॉलेजों से ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना चाहते हैं। इसलिए अनेक तरीकों से वह पैसा कमा रहे हैं– जैसे फीस के अतिरिक्त कुछ पैसे लेकर, कॉलेज की जमीन का गैर शैक्षणिक कार्य हेतु उपयोग करके, शिक्षकों की नियुक्ति में पैसे लेकर आदि। दूसरा, ये संस्थाएं आज जातिवाद और स्थानीय भावना की गढ़ बन गई हैं। सामान्यतः इन कॉलेजों में प्रबंधन तंत्र किसी विशेष जाति का है, इसलिए उस जाति विशेष के लोग कॉलेज को अपना बपौती मानते हैं और अपने को श्रेष्ठ मानते हैं। चूंकि अभी तक कर्मचारियों की नियुक्ति भी प्रबंधन तंत्र करता रहा है इसलिए अपने घर परिवार और जाति विशेष के लोगों को ही तृतीय और चतुर्थ श्रेणी में नियुक्त किया है और ये लोग बड़ी संख्या में अपने कार्य में सक्षम भी नहीं हैं, लेकिन ये लोग प्रबंधन तंत्र से जुड़े हुए हैं और उनके दरबारी लोग हैं।
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इसलिए कॉलेजों में संगठन के सोपानक्रम का पालन न होकर जाति देखकर शिक्षकों और कर्मचारियों के साथ व्यवहार होता है। जब किसी व्यक्ति को, जहां वह कार्य करता है, उस संगठन में महत्व नहीं मिलता है तो वह अपने कार्य के प्रति उदासीन हो जाता है और संगठन के प्रति उसके दिल से अपनत्व खत्म हो जाता है। वह मजबूरी में केवल नौकरी करता है, संगठन में कुछ अच्छा कर नहीं पाता। अतः संगठन का समुचित विकास नहीं हो पाता है। इन कॉलेजों में यही हो रहा है, जातिवाद और स्थानीय कारणों से कुछ विशेष लोग छोड़ कर अन्य लोग उपेक्षित ही रहते हैं, इसलिए ये कॉलेज अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं।
तीसरा, इन कॉलेजों की भर्ती की व्यवस्था में भ्रष्टाचार होने के कारण बड़ी संख्या में ऐसे शिक्षक और कर्मचारी आ गए हैं कि अपने कार्य में सक्षम नहीं हैं। इन लोगों ने पूरे शैक्षणिक वातावरण को दूषित कर दिया है। हालांकि ऐसे लोगों का इन कॉलेजों में काफी महत्व है क्योंकि ये पढ़ाने के बजाय चाटुकारिता और दलाली में बहुत उच्च कोटि की योग्यता रखते हैं। इसलिए ये प्रबंधन तंत्र और बड़ी मात्रा में शिक्षकों के भी प्यारे होते हैं।
चौथा, इन कॉलेजों में सुपरविजन की व्यवस्था का अभाव है। कॉलेज और शिक्षकों तथा कर्मचारियों के प्रदर्शन को देखने के लिए कोई मजबूत तथा विश्वशनीय तंत्र नहीं है। यहां अच्छे प्रदर्शन का कोई प्रोत्साहन नहीं है और बुरे प्रदर्शन के लिए कोई दंड नहीं है।
सरकारी कॉलेजों में भी बहुत सी समस्याएं विद्यमान हैं। लेकिन वहां सरकारी पैसे से गुंडई नहीं होती। एडेड कॉलेज सरकारी पैसे पर जातीय और स्थानीय आधार पर गुंडई का अखाड़ा बन गए हैं। इन कॉलेजों पर सरकार ने अगर ध्यान नहीं दिया तो स्कूली और उच्च शिक्षा दोनों का हाल बहुत बुरा हो जाएगा। डिग्री तो लोगों के पास होगी लेकिन योग्यता बिल्कुल नहीं होगी। ये संस्थाएं एक जाहिल पीढ़ी को जन्म दे रही हैं।
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