Poetry: गौरैया | Naya Sabera Network
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गौरैया
मैं नन्ही - सी जान ,
ऊंँची है मेरी उड़ान।
भला मैं कैसे ?
थक के हार जाऊंँ ,
मेरी भी बने पहचान।
मेरी भी चाह है!
नन्हें नन्हें कदमों से चलती जाऊंँ ,
पंख पसारे गगन में उड़ती जाऊंँ।
माना कठिन है दौर ,
कहीं नही है मेरा ठौर,
रुकेंगे वहीं पे मेरे कदम,
जहांँ में होगा मेरा स्थान ।
मैं नन्ही - सी जान ,
चेहरे पर है मुस्कान।
(मौलिक रचना )
चेतना सिंह , प्रयागराज, उत्तर प्रदेश।
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