सभी राज्य सरकारों को अपने सिविल सेवा आचरण नियमों में तत्काल संशोधन करना समय की मांग | Naya Sabera Network
- शासकीय अधिकारियों कर्मचारियों द्वारा अपने पद का रुतबा रील्स बनाकर या पोस्ट कमेंट्स में लिखना अनुशासनहीनता के दायरे में लाना ज़रूरी
- शासकीय कर्मचारीयों अधिकारीयों को सरकार का दामाद वाली छवि से निकालनें सख़्त आचरण नियम 2025 लागू करना तात्कालिक ज़रूरी - एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र
नया सवेरा नेटवर्क
साथियों बात अगर हम महाराष्ट्र में सिविल सेवा आचरण नियम 2025 लागू करने की करें तो, सरकारी पद मिलते ही कुछ लोग देश सेवा कम और कैमरा प्रेम ज़्यादा करने लगते हैं. कभी कुर्सी पर बैठकर स्लो मोशन एंट्री, तो कभी हथियार के साथ डायलॉगबाज़ी, अब ये सब आम बात हो गई है. सैलरी सरकारी है, लेकिन शौक पूरे फुल-टाइम रील स्टार वाले. ऐसे सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों पर महाराष्ट्र सरकार अब सख्त प्रतिबंध लगाने वाली है,इसके लिए सरकार सिविल सेवा आचरण नियम 1979 में संशोधन कर नए नियम लागू करेगी, ताकि सरकारी कर्मचारियों के सोशल मीडिया उपयोग को नियंत्रित किया जा सके।महाराष्ट्र के सीएम ने बुधवार, 19 मार्च को विधानसभा में इस बारे में एलान किया। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सिविल सेवा आचरण नियम 1979 में संशोधन कर नए नियम लागू किए जाएंगे, इससे सरकारी कर्मचारियों के सोशल मीडिया उपयोग को नियंत्रित किया जा सकेगा।इस दौरान उन्होंने कहा कि इस संबंध में जल्द ही एक सरकारी निर्णय (जीआर) जारी किया जाएगा। उन्होंने उन अधिकारियों को भी फटकार लगाई जो सरकार विरोधी समूहों में सक्रिय रहते हैं।सरकारी नीतियों के खिलाफ सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं। दो सदस्यों ने विधान परिषद में अधिकारियों के सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने का मुद्दा उठाया था, उन्होंने कहा कि अधिकारी रील बनाकर यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि पूरा सिस्टम वही चला रहे हैं।पुलिस अधिकारी ‘सिंघम’ जैसी फिल्मों से प्रेरित होकर रील बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों पर सख्त प्रतिबंध लगाने की ज़रूरत है,इसके बाद उन्होंने सवाल किया कि क्या सरकार इस पर कानून में संशोधन करेगी? इस सवाल पर सीएम ने जवाब देते हुए कहा कि महाराष्ट्र सिविल सेवा आचरण नियम 1979 में बनाए गए थे, चूंकि 1989 में सोशल मीडिया नहीं था,इसलिए उस समय के नियम केवल तब उपलब्ध मीडिया पर लागू होते थे।उन्होंने कहा, अभी सोशल मीडिया को लेकर कोई सख्त प्रावधान नहीं है, लेकिन आज कुछ अधिकारी सोशल मीडिया का दुरुपयोग कर रहे हैं, कुछ सरकारी नीतियों के खिलाफ पोस्ट कर रहे हैं,कुछ अपने आधिकारिक पद का इस्तेमाल खुद की महिमा बढ़ाने के लिए कर रहे हैं, ऐसे मामलों को रोकने के लिए नियमों में संशोधन अनिवार्य है। आगे कहा कि सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को सोशल मीडिया पर एक्टिव रहना चाहिए, लेकिन उनके आचरण को लेकर कुछ अपेक्षाएं भी हैं, उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि सोशल मीडिया का उपयोग नागरिकों से संवाद के लिए किया जाना चाहिए, न कि रील्स बनाकर फेम कमाने के लिए. इस दौरान उन्होंने साफ कहा कि सरकारी सेवाओं में अनुशासनहीनता किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं की जाएगी।बता दें जम्मू-कश्मीर और गुजरात सरकार पहले ही ऐसे कानून लागू कर चुकी हैं, अब महाराष्ट्र सरकार भी सिविल सेवा आचरण नियमों में संशोधन कर सोशल मीडिया उपयोग, व्यवहार और सहभागिता पर कानून बनाने जा रही है।
साथियों बात अगर हम जनता के कर्मचारियों अधिकारियों की सोच कर्मचारीयों की सरकारी दामाद वाली छवि से परेशान होने की करें तो, हर देश को चलाने के लिये एक सरकार की जरूरत होती है और उस सरकार को चलाने के लिये सरकारी नौकरों की, जो जनता की सेवा करें । लेकिन हमारे देश में सरकार जिन लोगों को सरकारी कर्मचारी बोलकर भर्ती करती है वो नौकर कम मालिक जैसा व्यवहार ज्यादा करते हैं । नौकर का काम मालिक की सेवा करना होता है और अगर वो ऐसा न करे तो उसे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ता है। लेकिन हमारे लोकतान्त्रिक देश में सरकारी नौकर कहीं से भी नौकर नहीं लगता है। वो काम करे न करे उसे पूरा वेतन चाहिये, क्योंकि ये उसका हक है । सरकारी नौकर एक ऐसा नौकर होता है जिसे एक बार मालिक नौकरी पर रख लें तो मालिक ही उसका नौकर बन जाता है । बात-बात पर यह नौकर हड़ताल की धमकी देता है और धरना-प्रदर्शन करता है।वेतन के अलावा इसे विभिन्न प्रकार की सुविधायें भी चाहिये। उसकी और उसके परिवार की सारी जिम्मेदारी सरकार की होती है। उसके मरने के बाद तक सरकार उसके परिवार का पालन पोषण करती रहती है। कहने को हमारा देश बहुत गरीब देश है, लेकिन हमारे राजनीतिक नौकरो को देखो तो उनकी सात पीढ़ीयों की बात छोड़ो उन्होंने इतना धन इकठ्ठा कर लिया है कि जब तक उसकी संताने इस धरती पर रहेगी उनको ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जीने के लिये हाथ-पैर हिलाने कि जरूरत नहीं होगी। राजनीतिक सेवक ही जनता के असली मालिक है और धर्म और जाति के नाम पर राजनीति करके धन कमाना ही उनका एकमात्र धर्महै। मेरा मानना है कि राजनीतिज्ञों का कोई धर्म नहीं होता और न ही जाति होती है, जिस तरफ उन्हें फायदा दिखता हो वो उसी तरफ चल देते है।
साथियों बात अगर हम सरकारी दामाद का सबसे बड़ा सटीक उदाहरण रेलवे विभाग की करें तो...रेल विभाग में सबसे ज्यादा सरकारी नौकर है, जो रेलों पर अपना पहला अधिकार समझते है।ये और इनका परिवार सारी जिन्दगी रेलों में मुफ्त सफर का आनन्द लेने को अपना अधिकार मानता है,ऐसे ही सभी विभागो के कर्मचारी अपने विभागों द्वारा जनता को दी जाने वाली सुविधाओं पर जनता से पहले अपना अधिकार मानते हैं, मेरा अनुमान है कि अगर सर्वेक्षण किया जाये तो पता लगेगा कि सरकारी विभागो ने जनता की सेवा कम अपने कर्मचारियों की सेवा ज्यादा की होगी, शायद सरकारी कर्मचारी काम नहीं करते ऐसा सरकार भी मानती है, तभी वो धीरे-धीरे नियमित पदों को समाप्त करके अस्थायी कर्मचारियो से काम चला रही है, जनता को अपने अधिकारों के लिये जागरूक होने की जरूरत है, क्योंकि जनता ही असली मालिक है, लेकिन उसे पता ही नहीं है कि नौकरों से काम कैसे लिया जाता है,जो नौकर काम न करे उसे नौकरी पर रहने का अधिकार कैसे हो सकता है और बिना काम के उसे वेतन किस बात का दिया जा रहा है।अगर हम किसी को किसी काम के लिये रखते है और वो काम नहीं होता है तो क्या उसको हम उसके पैसे देते है, लेकिन हमारे देश में ऐसा ही होता है? अब वो वक्त आ चुका है जब हमें सरकारी नेताओं,अफसरों और कर्मचारियों को दिये जाने वाले वेतन और भत्तों के एवज में पूरा काम करने की बाध्यता पैदा करनी होगी। अगर कोई नेता अपना काम नहीं करता तो उसे वापिस बुलाने का अधिकार जनता के पास होना चाहिये। इस बात का कोई तुक नहीं है कि अगर जनता से झूठे वादे करके कोई नेता चुन लिया जाता है तो जनता नेता के झाँसे में आकर की गई गलती के लिये पूरे पाँच साल तक सजा भुगते, ऐसे ही अगर कोई भष्ट्र और कामचोर व्यक्ति सरकार में अफसर या कर्मचारी नियुक्त हो जाता है तो सारी उम्र उसे झेला जाये, किसी भी वक्त ऐसा लगता है कि ये व्यक्ति सरकारी नौकरी के योग्य नहीं है या वो काम नहीं करना चाहता या वो भष्ट्र है तो उसे तुरन्त नौकरी से निकाल देना चाहिये । कुछ लोगों का कहना है कि ऐसा करना से उसका परिवार मुश्किल में आ जाता है, लेकिन ये सोचना हमारा काम नहीं है ये सोचने का काम उस व्यक्ति का है जो ऐसा करता है । जब उसे अपने परिवार की चिन्ता नहीं तो हम उसके परिवार की चिन्ता क्यों करें । अब ये जरूरी हो गया है कि सरकारी सेवाओं के नियमों में बदलाव किया जाये, ताकि जो सही काम न करे उसे बाहर का रास्ता दिखाया जा सके ।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि सभी राज्य सरकारों को अपने सिविल सेवा आचरण नियमों में तत्काल संशोधन करना समय की मांग।शासकीय अधिकारियों कर्मचारियों द्वारा अपने पद का रुतबा रील्स बनाकर या पोस्ट कमेंट्स में लिखना अनुशासनहीनता के दायरे में लाना ज़रूरी।शासकीय कर्मचारीयों अधिकारीयों को सरकार का दामाद वाली छवि से निकालनें सख़्त आचरण नियम 2025 लागू करना तात्कालिक ज़रूरी हैँ।
-संकलनकर्ता लेखक - क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र 9284141425
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