Poetry : साहस नहीं जला दे हरगिज़ तेज़ नहीं अंगारों में | Naya Savera Network

नया सवेरा नेटवर्क

साहस नहीं जला दे हरगिज़ तेज़ नहीं अंगारों में


साहस नहीं जला दे हरगिज़ तेज़ नहीं अंगारों में। 
 पतझड़ में भी स्मृतियों के पुष्प खिलेंगे ख़ारों में।।
 सहमी सहमी दुल्हन बैठी मन ही मन घबराये-
 मन मैला है मेल नहीं है डोली लिए कहारों  में।।

लड़खडाए पांव पथ पर धैर्य आपना खो दिये।। 
आप अपने हाथ से मर्यादा अपनी धो दिये।। 
रोक पाना कठिन आसूं छलछला कर झर गए-
आंख भर आयी निगोड़ी विवश होकर रो दिये।।

किसी का मत गला घोंटो  किसी का मत गला काटो।। 
चरण मत चूमना डर कर किसी का तलुआ मत चाटो।। 
शिखर को चूम लो बढ़ कर अंधेरे हार जायेगे-
दिये की भांति जग में तुम उजालों की किरण बांटो।।

लेखक— गिरीश जौनपुर।

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