मकर संक्रांति मानव के अंतःकरण में मिठास लाती है : प्रो. आरएन त्रिपाठी | Naya Savera Network



अश्वनी तिवारी @ नया सवेरा 

हमारे देश के त्योहार हमारे समाज को सदा आध्यात्मिक सांस्कृतिक उत्सवधर्मिता की तरफ उद्वेलित करते रहते हैं।इसी प्रकार आज का त्योहार मकर संक्रांति है, जिसे हम पंजाब में 'लोहड़ी' और आसाम में 'बिहू' महाराष्ट्र में तिल गुड़ और अपने उत्तर भारत में 'खिचड़ी' अथवा मकर संक्रांति के रूप में मनाते हैं।
ज्योतिषीय और खगोल शास्त्रीय दृष्टि से इसलिए महत्वपूर्ण है कि सूर्य का दक्षिणायन से उत्तरायण होना यह बताता है की संपूर्ण दुनिया को प्रकाशित करने वाला सूर्य स्वयं और प्रकाशमान बनना चाहता है। अर्थात चरैवेति-चरैवेति,आगे बढ़ो। तातपर्य है कि आप चाहे जितने उन्नति पथ पर हैं लेकिन आध्यात्मिक की दृष्टि से अपने को और उन्नत बनाएं इसी में आपका और लोक का हित है, इससे यही प्रेरणा मिलती है।
मकर संक्रांति में तिल, गुड़, मीठा बिना किसी विषमता के वितरित होता है इससे सामाजिक समभाव व समरसता का प्रसार होता है। यह मिठास लोगों के अंतःकरण की मिठास बने,उनकी विनम्रता में वृद्धि हो,उनकी वैचारिकता बढ़े और जो आज विचारों की विपन्नता आ गई है वह समाप्त हो सके इसलिए बांटा जाता है क्योंकि प्रेम का  प्रवाह बांटने में ही सार्थक होता कहा गया है' जो बांटा जाता है वह प्रसाद होता है और जो इकट्ठा किया जाता है वह विषाद होता है इस त्योहार में सामूहिक भोज आयोजित किए जाते हैं माननीय योगी जी द्वारा स्वयं बहुत बड़ा खिचड़ी भोज गोरखपुर में आयोजित किया जा रहा है,जो विभिन्न पन्थो सम्प्रदायों का सात्मीकरण व समाजीकरण एक साथ करता है।
सामान्यतःभारत का मुख्य खाद्य पदार्थ चावल है और शास्त्रीय दृष्टि से जितने भी कर्मकांडीय कार्य होते हैं चावल अक्षत की दृष्टि से यानी बिना छति पहुंछाए हर जगह प्रयोग होता है इसलिए चावल में दाल का समिश्रण जो खिचड़ी में होता है का, तात्पर्य है की पौष्टिकता केवल प्रोटीन से शरीर की ही नहीं है बल्कि वैचारिक पौष्टिकता के लिए भी दाल चावल घी का सुखद सहयोग हो,जिससे खिचड़ी एक स्वादिष्ट सुपाच्य व्यंजन बन जाती है। 
पतंगबाजी सामाजिक समावेशन का एक ऐसा रूप है जहां सारे आकाश को संभाल लेना है प्राप्त कर लेना है। किसी की डोर टूट गई तो उसे फिर से भविष्य कीआशाओं  से जोड़ देना है। किसी के दुखते हुए दिल को सामाजिक समावेशन से सम्भालने का इससे अच्छा त्योहार भारत में और कोई नहीं है। ऋषि और कृषि संस्कृति में यही एक ऐसा त्यौहार है जो वैज्ञानिक दृष्टि से भारत के लोगों को उनके आत्मगौरव और शारीरिक दृष्टि से उनकी संतुष्टि संवर्धन का  सर्वमान्य और सर्वग्राही त्यौहार है 
आइए इस त्योहार पर इस मिठास को जितना अधिक हो सके लोगों में बांटे जितना अधिक हो सके बिना किसी लोकयश के दान दें, जितना अधिक हो सके लोगों के सहयात्री,सहचर बनकर उनके भावों को उनकी विषम परिस्थितियों में सहयोगी बने, शायद यही इसकी सबसे बड़ी सार्थकता है।
मकर संक्रांति एवं अपने जन्मदिन पर आप सभी के पदम् पाणि में प्रणाम करता हूँ। आप सब अपने विचारों के माध्यम से आशीर्वाद अवश्य दें कि हम भी कुछ इस समाज के लिए कर सकें।
  
प्रोफेसर आर.एन.त्रिपाठी
समाजशास्त्र विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय,वाराणसी।
पूर्व सदस्य उ.प्र. लोक सेवा आयोग एवं 
उ.प्र. उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग

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